जानिए क्यों रमजान के पवित्र माह में भी शर्मिंदा होती हैं मुस्लिम महिलाएं

नई दिल्ली। जहां दुनिया इतनी तरक्की कर रही वहीं समाज महिलाओं की स्वतंत्रा पर पाबन्दी लगाए बैठा है। महिलाएं अपनी समस्याओं का खुलकर इजहार नहीं कर पातीं। रमजान के पवित्र माह के दौरान ऐसी ही कुछ परेशानियों के रूबरू हैं मुस्लिम महिलाएं। रमजान के महीने में मासिक धर्म से गुज़र रही मुस्लिम महिलाएं रोज़ा नहीं रखती हैं इसकी वजह से उन्हें बेहद शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। मुस्लिम महिलाएओं की ऐसी ही समस्याओं और चुनौतियों के बारे में आइए जानते हैं..

जानिए क्यों रमजान के पवित्र माह में भी शर्मिंदा होती हैं मुस्लिम महिलाएं

ऐसी समस्याओ से जूझ रहीं महिलाओं का कहना है कि वो छुपकर खाती हैं ताकि घर के पुरुषों को पता न चले जबकि अन्य का कहना है कि उन्हें माहवारी के बारे में झूठ बोलना पड़ता है। सोफ़िया जमील ने बताया कि, “कुछ लोग इस समस्या को स्वीकार ही नहीं करना चाहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ये इस्लाम धर्म को नकारात्मक तरीके से दिखाता है।

एक 21 वर्षीय ब्यूटी ब्लॉगर कहती हैं, “मेरी मां मुझसे कहती थीं अगर माहवारी हो रही है तो पुरुषों को पता न चले सिर्फ़ घर की लड़कियों को पता चले। मैं जब भी पानी पी रही होती और पिता को आते हुए देखती तो अपना गिलास रख देती और चली जाती। मेरी मां मेरे कमरे में खाना रख देती और मुझसे कहतीं कि चुपचाप खा लो।

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पाकिस्तानी मूल की सोफ़िया कहती हैं, एक बार मेरे भाई ने मुझे खाते हुए देख लिया, मुझे अपने दांत चबाने पड़े और वो मुझे घूर रहा था।  वो मुझे खाते हुए पकड़ने की कोशिश करते ताकि मुझे शर्मिंदा कर सकें। माहवारी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और मेरा धर्म कहता है कि मासिक धर्म में मैं रमज़ान न रखूं क्योंकि मैं पवित्र नहीं हूं। यहाँ तक माहवारी एक ऐसा विषय है जिसके बारे में उनकी मां भी बात करते हुए शर्माती थीं और किशोरावस्था तक उन्होंने इस बारे में उन्हें नहीं बताया था।

क्या होता है रमजान का पवित्र माह

रमज़ान के महीने में उपवास करने वाले मुसलमान सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक कुछ नहीं खा पी सकते हैं। वो न ही शारीरिक संबंध बना सकते हैं। रोज़ा रखने से पहले हर दिन रोज़े की नीयत करनी होती है। रोज़े की नीयत रात को सोने से पहले या सहरी के वक़्त की जा सकती है।

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लेकिन माहवारी से गुज़र रही महिलाएं न रोज़ा रख सकती हैं, न कुरान पढ़ सकती हैं और न ही मस्जिद में जा सकती हैं। गर्भवास्था, बीमारी, शारीरिक या मानसिक कमज़ोरी, अधिक उम्र होने, यात्रा पर होने, उपवास की वजह से जीवन को किसी तरह का ख़तरा होने या अधिक प्यास लगने की स्थिति में भी रोज़ा छोड़ा जा सकता है।

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