उत्तराखंड में निकाय चुनाव की तैयारियां जोरों पर, छोटी सरकारों के लिए इम्तिहान की घड़ी…

लोकसभा चुनाव की थकान सियासी दलों पर अब भी है, लेकिन ‘छोटी सरकार’ की चुनौती इतनी बड़ी है कि निकाय चुनाव में सियासी दलों का जमकर पसीना बह रहा है। जिस चुनाव को आम तौर पर जिला स्तरीय पदाधिकारियों के भरोसे छोड़ दिया जाता था, वहां पर त्रिवेंद्र सरकार के मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर है। बाजपुर में कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य, तो श्रीनगर में राज्यमंत्री डॉ. धन सिंह रावत डेरा डाले हुए हैं। आराम से कांग्रेस भी नहीं है।

एक छोटे से चुनाव की रणनीति के लिए जब हरीश रावत, प्रीतम सिंह और इंदिरा हृदयेश जैसे दिग्गजों को माथापच्ची करनी पड़ी है, तो समझा जा सकता है कि मसला कितना फंसा हुआ और अहम है। इन स्थितियों के बीच, नगर निकाय पार्ट टू के चुनाव में कौन जीतता है और कौन हारता है, यह जानना दिलचस्प होगा। दोनों दलों के लिए अपने अपने लिहाज से नतीजे बेहद अहमियत रखते हैं।

भाजपा अपराजित रहने का संदेश देने के लिए जीतना चाहती है। कांग्रेस जीतना चाहती है ताकि जता सके कि वह अब भी बाजी पलटने का माद्दा रखती है। बात सिर्फ नगर निकाय पार्ट टू के चुनाव तक की नहीं है। पिथौरागढ़ उपचुनाव होना है। पंचायतों में घमासान छिड़ना है। निकाय चुनाव पार्ट टू में जो जीतेगा, बाकी चुनावों के लिए उसे ऊर्जा मिलेगी। इसलिए जोर किसी ओर से कम नहीं है।

जीत के आत्मविश्वास के साथ मैदान में भाजपा

2018 में हुए निकाय चुनाव में भाजपा ने 84 में से 35 नगर निकायों में जीत दर्ज की थी। इन निकायों में उसके मेयर/अध्यक्ष चुने गए थे। सात नगर निगमों में से पांच में उसे जीत हासिल हुई थी। भाजपा के पास निकाय चुनाव में जीत का आत्मविश्वास है। उसके पास मजबूत संगठन और कसी हुई रणनीति है। मगर दिक्कत यह है कि नगर निकाय का चुनाव बहुत ही स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जाता है और इसके नतीजे अप्रत्याशित भी होते हैं, इसलिए भाजपा इस सच्चाई को कैसे अपने अनुकूल बनाती है, यह सवाल सामने है।

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पार्टी सत्ता में है, यह उसके लिए प्लस प्वाइंट है, लेकिन एक छोटे चुनाव में जिस तरह से उसके मंत्रियों की साख दांव पर लग गई है, उससे पार्टी पर कहीं न कहीं दबाव भी है। जिस बाजपुर निकाय में चुनाव हो रहा है, वह कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य की विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है और विधानसभा का नाम ही बाजपुर है। इसी तरह, जिस श्रीनगर निकाय में चुनाव हो रहा है, वह राज्यमंत्री डॉ.धन सिंह रावत की विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है और विधानसभा का नाम ही श्रीनगर है।

बाजी पलटने को तैयार कांग्रेस
2018 में हुए निकाय चुनाव में कांग्रेस ने 84 में से 25 नगर निकायों में जीत दर्ज की थी। यह प्रदर्शन अच्छा माना गया है। सत्ता पर काबिज भाजपा के मुंह से कांग्रेस ने उस हरिद्वार और कोटद्वार नगर निगम के मेयर की सीटें छीनीं, जो कि शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक और वन मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत की विधानसभा क्षेत्र के अहम हिस्से हैं। लोकसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस बुरी तरह हारी हो, लेकिन 2018 के निकाय चुनाव का प्रदर्शन को जब भी वह याद करती है, उसका मनोबल बढ़ता है।

फिर बाजपुर और श्रीनगर दोनों ही निकायों की पृष्ठभूमि देखें, तो यहां पर कांग्रेस का प्रभाव पूर्व में रहा है। भंग बोर्ड में बाजपुर में कांग्रेस का ही अध्यक्ष था, जबकि श्रीनगर में निर्दलीय के हाथ में कमान थी। कांग्रेस के मौजूदा और पूर्व विधायकों की पूरी फौज इन दोनों निकायों में उतरी हुई है, हालांकि पार्टी का संगठनात्मक ढांचा कमजोर है और रणनीति बहुत ज्यादा चाक चौबंद नहीं है, लेकिन पूरी तरह से स्थानीय समीकरणों पर टिके इस चुनाव में किसी भी तरह के परिणाम निकलने की प्रवृत्ति कांग्रेस की उम्मीदों को बढ़ा रही है।

इधर सांसद ने लगाई ताक, उधर पूर्व सांसद जुटे

श्रीनगर निकाय चुनाव के लिए गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत ने भी काफी समय दिया है। रावत ने छात्र राजनीति श्रीनगर में रहकर ही की है। इसलिए अलावा, राज्य बनने से पहले वह निकाय-पंचायत प्रतिनिधियों की कोटे वाली विधान परिषद सीट से ही निर्वाचित हुए थे। इस लिहाज से उनका श्रीनगर निकाय से कनेक्शन बना है। फिर राज्य मंत्री धन सिंह रावत के साथ उनकी जोड़ी बहुत पहले से रही है। इसलिए श्रीनगर में वह डटे रहे हैं। दूसरी तरफ, बाजपुर सीट पर भाजपा के लिए पूर्व सांसद बलराज पासी ने भी खूब काम किया है। कांग्रेस की बात करें, तो इस निकाय में नेता प्रतिपक्ष डॉ.इंदिरा हृदयेश ने तो मेहनत की ही है, पूर्व सांसद केसी बाबा और महेंद्र सिंह पाल ने भी पूरा जोर लगाया है।

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रुड़की का मैदान भी तैयार, जल्द होगा घमासान
श्रीनगर और बाजपुर में निकाय चुनाव निबटते ही रुड़की नगर निगम के लिए चुनावी अखाड़ा तैयार होने जा रहा है। हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार, इस सप्ताह तक इस सीट के लिए आरक्षण तय होना है। वेैसे, एकल चुनाव होने पर जिस तरह की व्यवस्था रही है, उसमें इसका सामान्य होना तय माना जा रहा है। इन स्थितियों के बीच, भाजपा और कांग्रेस के लिए यहां भी मामला प्रतिष्ठा से जुड़ा होगा। शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक के लिए सबसे बड़ा इम्तिहान होने जा रहा है। क्योंकि 2018 के निकाय चुनाव में हरिद्वार नगर निगम के मेयर पद पर भाजपा उम्मीदवार हार गया था। केंद्रीय मानस संसाधन विकास मंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक के हरिद्वार संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत ही रुड़की नगर निगम शामिल है। इसलिए चुनाव से निशंक का कनेक्शन भी जुडे़गा। कांग्रेस की बात घूम फिर कर दिग्गज हरीश रावत और प्रीतम सिंह पर आकर टिकेगी।

पूरे देश में भाजपा की लहर चल रही है। कांग्रेस का सफाया हो रहा है, तो ऐसे में निकाय चुनाव में भाजपा की जीत पर कोई संशय ही नहीं है। भाजपा का विजय अभियान जारी रहेगा। लोगों को पता है कि विकास के लिए निकायों से लेकर राज्य और केंद्र तक एक ही पार्टी की सरकार होने का कितना लाभ मिलता है।
-अजय भट्ट, प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा।

यह पूरी तरह से स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जाने वाला चुनाव है। 2018 में निकाय चुनाव में कांग्रेस को जनता का साथ मिला। इस बार के चुनाव में भी कांग्रेस के प्रत्याशी विजय हासिल करेंगे। भाजपा छल प्रपंच करके सत्ता में तो आ गई है, लेकिन उसकी असलियत किसी से छिपी नहीं है। कांग्रेस दोनों जगह जीतेगी।

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