आखिर क्यों ज़रूरी होता है देवताओं की पूजा में नारियल, जानिए पूरी कथा

नारियल का अस्तित्वहिन्दू धर्म में हर धार्मिक कार्यक्रम में नारियल का उपयोग किया जाता है। हिन्दुओं के शास्त्रों में भी बिना नारियल के की गई पूजा को अधूरा बताया गया है। लेकिन क्या आप जानते है हमारी पूजा-पाठ में नारियल का अस्तित्व कहा से आया और पूजा में इसका इतना क्या महत्व होता है? आखिर सदियों से कैसे नारियल हमारी पूजा-पाठ का इतना अहम हिस्सा बना हुआ है? अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको बताते है हिन्दुओं के धार्मिक कार्यक्रमों में नारियल की अहमियत के बारे में।

कथा के अनुसार :-

ये कहानी प्राचीन काल के राजा सत्यव्रत से जुडी है। राजा सत्यव्रत को स्वर्गलोक की सुन्दरता अपनी और आकर्षित करती थी और उनकी एक ही इच्छा थी कि किसी भी तरह धरती से स्वर्गलोक जा सके। परंतु उन्हें स्वर्ग जाने का रास्ता नहीं पता था। उन्होंने कई बार तरह-तरह की कोशिशें भी की लेकिन नाकाम रहे।

इन सब के बीच एक बार उनके राज्य में सुखा पड़ा। राजा सत्यव्रत ने अपनी प्रजा के हित में सभी पीड़ित परिवारों के लिए सारे संभव इन्तजाम कर दिए। लेकिन राजा को नहीं पता था की इन परिवारों में एक परिवार ऋषि विश्वामित्र का भी था। उस समय विश्वामित्र अपने परिवार से दूर तपस्या कर रहे थे और लंबे समय से घर नहीं लौटे थे।

कुछ समय बाद जब विश्वामित्र अपने घर वापस आए तो उनके परिवारवालों ने पूरी घटना का वर्णन किया। विश्वामित्र फ़ौरन राजा से मिलने उसके दरबार पहुंचे और उनका धन्यवाद किया।

लेकिन मौका देख राजा ने शुक्रिया के बदले विश्वामित्र से एक वरदान देने का निवेदन किया।

विश्वामित्र ने राजा का निवेदन स्वीकार करते हुए वरदान मांगने की आज्ञा दे दी। तब राजा ने वरदान में माँगा की वो स्वर्गलोक जाना चाहता है। विश्वामित्र ने राजा की बात मान ली और एक ऐसा मार्ग तैयार किया जो सीधा स्वर्गलोक जाता था।

सत्यव्रत खुश हो गए और उस मार्ग के जरिये स्वर्गलोक के पास पहुंचे ही थे की इंद्र ने उन्हें वापस नीचे धकेल दिया। राजा सीधे धरती पर गिरे और विश्वामित्र के पास रोते हुए पहुंचे और सारी घटना का वर्णन करने लगे।

विश्वामित्र देवताओं के इस प्रकार के व्यवहार से क्रोधित हो उठे और सीधे उनसे बात करने निकल पड़े। जिसके बाद देवताओं और विश्वामित्र की आपसी सहमति से एक हल निकाला गया जिसके मुताबिक राजा के लिए एक अलग स्वर्गलोक का निर्माण करने का आदेश दिया गया।

राजा सत्यव्रत के लिए ये नया स्वर्ग धरती और देवताओ के बीच बनाया जा रहा था। लेकिन अभी भी विश्वामित्र को इस बात का डर था कि अगर ये नया स्वर्ग हवा में डगमगा गया तो राजा फिर धरती पर आ गिरेंगे।

जिसका हाल निकलते हुए विश्वामित्र ने इस स्वर्गलोक के ठीक नीचे एक खंबे का निर्माण किया जिसने उसे सहारा दिया हुआ था।

मान्यताओं के मुताबिक, यह खम्बा सदियों तक अपनी जगह पर टिका रहा। पर आखिर में खम्बा एक पेड़ के मोटे तने के रूप में बदल गया और राजा सत्यव्रत का सर एक फल बन गया। जिसके बाद से ही इस पेड़ को नारियल का पेड़ और राजा के सिर को नारियल कहा जाने लगा।

आखिर में विश्वामित्र की महानता के फलस्वरूप इस नारियल के फल को धार्मिक अनुष्ठानों में इस्तेमाल किया जाने लगा। जो बाद में हिन्दुओं की पूजा-पाठ में भी महत्वपूर्ण माना जाने लगा। ये परंपरा सदियों से यूं ही चली आ रही है जिसको कई और प्रकार से लाभकारी बताया गया है।

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