रेप पीड़िता से बार्गेनिंग पर उतारू हुई सरकार, कोर्ट ने कहा पूरा दे दो नहीं तो…

दुष्कर्म पीड़िताओं के हकमुंबई। मुंबई हाईकोर्ट ने बुधवार को दुष्कर्म पीड़िताओं के हक में बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि रेप पीड़िता भिखारी नहीं होती हैं। सरकार उन्हें कोई खैरात नहीं दे रही है। ऐसे लोगों को मुआवजा देना सरकार की जिम्मेदारी है। 14 साल की रेप पीड़िता की याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस मंजुला चेल्लुर और जस्टिस जीएस कुलकर्णी ने ये फैसला दिया है। उन्होंने इस मामले में महाराष्ट्र सरकार के रवैये को भी निर्दयी करार दिया है।

हाईकोर्ट की बेंच को बताया गया कि रेप पीड़िता ने साल 2016 अक्टूबर में याचिका दाखिल की थी। जिसके बाद सरकार ने मुआवजे के तौर पर उसे 1 लाख रुपए दिया था। वहीं दुष्कर्म पीड़िता ने राज्य सरकार से मनोधैर्य योजना के तहत 3 लाख रुपए के मुआवजे की मांग की थी। पीड़िता ने बताया कि एक शख्स ने शादी का झांसा देकर उससे रेप किया।

वहीं राज्य सरकार ने भी हाईकोर्ट के सामने अपना पक्ष रखते हुए बताया था कि वह सिर्फ 2 लाख रुपए मुआवजे के तौर पर पीड़िता को देगी। क्योंकि उसे लगता है कि घटना दोनों की रजामंदी से हुई थी। राज्य सरकार के इस बयान पर हाईकोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि 14 साल की लड़की से इन सब की समझ होने और ऐसे मेच्योर डिसीजन लेने की उम्मीद नहीं की जा सकती।

न्यायधीशों की पीठ ने कहा कि सरकार का दुष्कर्म पीड़िता के प्रति इस तरह का रवैया निर्दयी और क्रूर है। राज्य सरकार का इस तरह का रवैया उन्हें कतई पसंद नहीं आया। उन्होंने कहा कि जब तक सरकार इस तरह के मामलों में दिल और आत्मा से सोचने और फैसले लेने का काम नहीं करती, तब तक कुछ भी नहीं हो सकता है।

कोर्ट में मौजूद बोरीवली के डिप्टी कलेक्टर से बेंट ने यह भी कहा कि अगर आपके किसी रिश्तेदार या परिवार के किसी सदस्य के साथ ऐसी घटना हुई होती तो आपको कैसा लगता? सरकार को ऐसे मामलों में दिल से सोचना चाहिए। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह ऐसे विक्टिम्स की मदद करे।

 

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