दर्दनिवारक ‘पैरासिटामॉल’ से हो सकती है हानिकारक

बुखार जैसी बीमारियों के लिए पैरासिटामॉल को सबसे अच्छी दवाईयों में से एक माना जाता है। लोगों का मानना है कि बुखार जैसी बीमारियों को दूर करने में ये दवाई किसी चमत्कार से कम नहीं है।


लेकिन इसे हानिकारक बताने वाली खबरें भी कुछ कम नहीं हैं। पहले जहां कहा जाता था कि ये दवाई गर्भवती महिलाओं और गर्भस्थ शिशुओं के लिए हानिकारक है, लेकिन अब ये भी कहा जा रहा है कि ये 7 साल से छोटे बच्चों के लिए भी हानिकारक है। हालांकि कुछ जानकारों का कहना है कि ये दवा सामान्य परिस्थितियों में सबसे सुरक्षित है।

अब एक शोध ने इस दवा को लेकर लोगों की चिंताए और अधिक बढ़ा दी हैं। ये शोध कहता है कि इससे बच्चों को अस्थमा होने का खतरा होता है। ये शोध ब्रिटेन की ब्रिस्टल तथा ओस्लो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने किया है। उनका कहना है कि दवा से बच्चों को अस्थमा होने का खतरा 3 साल की उम्र के बाद से दिखाई दे सकता है।

वैज्ञानिकों ने इस शोध में 1,14,500 महिलाओं के डाटा का अध्ययन किया और उनके बच्चों के सात साल के होने तक जांच की। फिर वैज्ञानिकों ने दावा किया कि इस ड्रग से शरीर में फ्री रैडिकल्स बढ़ जाते हैं। बच्चों के इससे एक तरह की एलर्जी भी हो जाती है, जिससे आगे जाकर दमा का खतरा बढ़ जाता है।
दमा का खतरा 29 फीसदी बढ़ जाता है.

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ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी की डॉ. मारिया मागुंस का कहना है कि पैरासिटामॉल बच्चों को बुखार में दी जाने वाली प्रचलित दवा में से एक है। इससे उनमें दमा की चपेट में आने की आशंका 29 फीसदी बढ़ जाती है। वहीं अगर गर्भवती महिलाएं इस दवा का सेवल करें तो बच्चों में 3 साल की अवस्था में पहुंचने तक दमा की शिकायत होने की संभावना 13 फीसदी तक बढ़ जाती है।
मानसिक बीमारी का भी खतरा
एक अन्य शोध में पता चला कि पैरासिटामॉल से मानसिक बमारियों का खतरा बढ़ जाता है। ये शोध यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के शोधकर्ताओं ने किया। शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि गर्भावस्था के दौरान यदि महिलाएं पैरासिटामॉल के सेवन करें तो इससे गर्भस्थ शिशु के दिमाग के विकास पर गलत असर पड़ता है। इससे गर्भ में पल रहे शिशु के हार्मोन्स में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है। जिससे मानसिक विकास प्रभावित होता है।

इस शोध में 1996 से लेकर 2002 के बीच जन्मे 64,000 शिशुओं से जुड़े डाटा का अध्ययन किया गया। लेकिन बाद में इस अध्ययन में सामने आए नुकसान को ब्रिटेन के एनएचएस ने पर्याप्त वैज्ञानिक तथ्यों के न होने के आधार पर खारिज कर दिया।

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