जानें एक ऐसी महिला के बारे में जिन्होंने थायराइड कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी पर हंसकर हासिल की जीत 

आज विश्व भर में कैंसर की बीमारी से कोई अछूता नहीं है, कैंसर ने पूरे विश्व को जकड़ा हुआ है। इस जानलेवा बीमारी के नाम से भी लोग दूरी बनाना बेहतर समझते हैं। कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी की वजह से काफी लोग हार मान लेते हैं लेकिन ऐसे में एक महिला ऐसी भी हैं जिन्होंने मुसीबत की इस घड़ी में आसानी से हंसकर कैंसर पर जीत पाई। कैंसर से जीत पाने के लिए सभी को हिम्मत के साथ, एक साथ खड़े होकर इसका सामना करना होगा।

जानें एक ऐसी महिला के बारे में जिन्होंने कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी पर हंसकर हासिल की जीत 

आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने थायराइड कैंसर से जंग लड़ी और इस लड़ाई में जीत उनकी हुई। हम बात कर रहे हैं दिल्ली की रहने वाली मिनाक्षी यादव की। मिनाक्षी पेशे से एक टीचर हैं। मिनाक्षी से हमने कुछ सवाल-जवाब किए और उनसे बात करने पर उन्होंने बताया कि कैसे इस लड़ाई में उनकी जीत हुई और कैंसर की हार हुई।

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कैंसर का पता चलने पर आपका पहला रिएक्शन कैसा था?

मिनाक्षी बताती हैं, मेरे गले के पास एक छोटी सी गांठ हो रही थी और रोजमर्रा के कामों के चलते, मैं उसे नजरअंदाज कर रही थी। मैं उन दिनों मायके गयी थी। मेरी भाभी ने भी मुझे डाक्टर से चैकअप कराने को कहा, मेरी भाभी पेशे से डाक्टर हैं। उनके कहने पर मैं चैकअप के लिए चली गयी। मिनाक्षी आगे बताती हैं, मैं अगले दिन स्कूल से आकर रिर्पोट लेने अकेले ही चली गयी।

मेरे मन ये तो पहले से ही था, कि रिर्पोट में कुछ तो जरूर आयेगा। लेकिन रिर्पोट देखने के बाद मुझे पता चला कि मुझे थायराइड कैंसर है, तो मैं बहुत डर गई थी, मेरा पहला रिएक्शन था कि अब आगे क्या..क्योंकि हम सभी को लगता है कि कैंसर मतलब मौत। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लोगों को इस बीमारी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है, लेकिन मुझे लगता है कि कैंसर आपको मारे या ना मारे लेकिन कैंसर का डर आपको जरूर मार सकता है।

कैंसर के कौन से लक्षण आपको दिखाई दिए?

मैं स्कूल और घर दोनों की जिम्मेदारियां निभाती थीं और उसी दौरान मेरे गले के पास गांठ बनने लगी। लेकिन मुझे पता हीं नहीं चला, क्योंकि वह गांठ मुझे दर्द नहीं देती थी।

घर और बाहर की दोहरी जिम्मेदारी के कारण मैं डाक्टर से चैकअप कराने का बस सोचती ही रह जाती। इसी बीच मेरे शरीर में कैंसर विकसित होता चला गया। सीधे शब्दों में कहें तो सही लाइफस्टाइल होना बहुत जरूरी है। परिवार की जिम्मेदारियां और करियर एक तरफ है लेकिन उसके साथ अपना ख्याल रखना भी जरूरी है।

फैमिली ने कैसे सपोर्ट किया?

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जब मेरी रिर्पोट आयी तो मुझसे पहले मेरे पति (संजीत सिंह) ने मेरी रिर्पोट आनलाइन देख ली। मेरे घर पहुंचने पर जब मैंने उनसे इस बारे में बताया तो उन्होंने मुझे समझाया कि सब ठीक हो जाएगा। लेकिन मैं वो पूरा दिन रोती रही और अपने 8 साल के छोटे से बेटे के बारे में सोचती रही कि उसका क्या होगा। कैंसर का पता चलने पर मुझे सिर्फ उसका चेहरा ही याद आ रहा था।

फैमिली ने कैसे सपोर्ट किया?

लेकिन मेरे पति व पूरे परिवार ने मुझे बहुत हिम्मत व मजबूती दी। जिसके बाद अगले दिन मुझे लगा कि मैंने अपना एक दिन रोकर क्‍यों गंवा दिया। मेरे पास अब लिमिटेड दिन हैं और जितने भी दिन हैं, उन दिनों को अच्छे से बिताउं। रोज प्रार्थना करती थी कि मुझे मरना नहीं है, मुझे अपने बच्चे के लिए जिंदा रहना है।

मिनाक्षी बताती है कि जब रिश्तेदार भी मुझसे मिलने आते और सांत्वना देते तो मैं उन्हें भी हंसकर यही कहती थी कि मुझे कुछ नहीं हुआ जल्दी ठीक हो जांउगी। परिवार ने भी कभी ऐसा माहोल नहीं बनने दिया जिससे मुझे महसूस हो कि मुझे कैंसर है। परिवार की हिम्मत से मुझे हिम्मत मिलीं और मेरे बच्चे के लिए मैं मजबूत बनी।

आखिर में, मैं अपने पति के बारे में बताना चाहूंगी कि उनका प्यार और सपोर्ट के कारण ही मैं ये जंग जीत पाई। क्‍योंकि जिस वक्‍त डाक्‍टर ने सबको मेरे पास आने से भी मना किया था, उस वक्‍त भी मेरे पति ने मुझे अकेले नहीं छोड़ा। उनको थैक्यू बोलना भी बहुत छोटा शब्द होगा।

सर्जरी के बाद आपको कैसा लगता था?

सर्जरी से पहले ही डाक्‍टर ने हमें कुछ रिस्‍क बताए थे। डाक्‍टर का कहना था कि सर्जरी के बाद मेरी आवाज भी हमेशा के लिए जा सकती है। लेकिन उस दौरान मेरे मन में यही एक बात चल रही थी, कि मुझे सही सलामत वापस आना है और यही बात मैंने सर्जन को भी कही। मिनाक्षी बताती हैं, हालांकि सर्जरी के बाद मुझे कमजोरी जरूर महसूस हुई, लेकिन मैने मन मे ठीक होने की ठानी थी।

जिसकी वजह से शायद मुझे बीमारी में भी बहुत भूख लग रही थी और मैने ऑपरेशन के तुरंत बाद मैंने कहा मुझे बहुत भूख लग रही है। मैने कभी भी अपने गले के निशान को छुपाने की कोशिश नहीं की। मेरे लिए यह एक ऐसा पल है जिससे मुझे गर्व महसूस होता है कि मैंने ये जंग लड़ी और जीत हासिल की। अब मैं लोगों को बता सकती हूं कि कैंसर का मतलब केवल मौत ही नहीं, जंग जीतकर जीना भी है।

कैंसर से लड़ाई जितने के बाद रिकवरी कैसे की, क्‍या परेशानियां आई?

सर्जरी के बाद जब मैंने बोलने की कोशिश की, तो मैं बोल नहीं पा रही ही थी। मेरी आवाज में बस केवल फुसफुसा‍हट थी। बोलने की कोशिश में दर्द हुआ, ले‍किन मैं धीरे-धीरे बोलने की प्रेक्टिस करती रही और बोलने लगी। कुछ शब्‍द मेरे साफ नहीं आते थे, पर मैनें कोशिश जारी रखी। और आज मैं सबकुछ साफ सही बोलती हूं। सर्जरी के बाद मुझसे कुछ भी खाया-पीया नहीं जा रहा था। मैं पानी बहुत कम पीती थी, लेकिन सही होने की मेरी जिद्द में, मैं 1 महीना पानी पीने की कोशिश में लगी रही।

मिनाक्षी आगे बताती हैं, उस दौरान मेरे मूड पर भी बहुत बदलाव आये। मुझे लाइट पसंद नहीं थी और मेरे स्‍वभाव में चिड़चिड़ापन आ गया था। सबसे बड़ी बात की मैं अपने बच्‍चे के सामने होने के बाद भी उससे नहीं मिल पाती थी। मुझे उस वक्‍त इस तरह की दवाईयां दी जा रही थी। जिसके कारण मेरे कमरे में आना सबको मना था। इसके अलावा मुझे सबकुछ लिक्विड ही खाने को कहा गया था। जिसमें मैं चीकू, केला इस तरह के सॉफ्ट फल और जूस पीती थी।

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मिनाक्षी अपनी पुरानी यादों को याद करते हुए कहती हैं, मुझे आज भी याद है जब मैं बीमारी से ठीक होने के बाद पहली बार इन्‍टरव्‍यू देने गई। मुझे पहली बार इन्‍टरव्‍यू देने के लिए डर लगा, जबकि मैं पेशे से टीचर रह चुकी थी। मैं घर पर खाली नहीं बैठना चाहती थी इसलिए मैं कोशिश करती रही और अब मेरी पहले जैसे बिजी लाइफ हो गई है।

कैंसर से जूझ रहे लोगों को आप क्या कहना चाहेंगी?

मैं यही कहना चाहूंगी कि कैंसर से जीतने के लिए पॉजिटिव सोच रखना बहुत जरूरी है। अगर आप अच्‍छा अच्छा सोचते हो, तो सब अच्‍छा ही होता है। आजकल हर बीमारी का इलाज संभव है।

खुद को खुश रखें और सकारत्‍मक सोच को बनाए रखें। इसके अलावा अच्छी डाइट, टेंशन फ्री वातावरण और रोजाना थोड़ा बहुत वर्कआउट बीमारी से जीतने में काफी मदद करते हैं।

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