#तवायफ की कहानी…

तवायफ की कहानी कविता तवायफ की कहानी

पूजा अग्निहोत्री

तेरी इस सुर्ख ज़िन्दगी के किस पन्ने पे रुकूँ मैं ,

तेरी दास्ताँ को मुझे, चंद शब्दों में लिखना है

कहीं ठहरना है , समझना है , कुछ देखना है

तेरे उन जख्मों को पुचकार के , उनका हाल पूछना है

वो पहली रात तो तुझे याद ही होगी ,

जब तेरा जमीर बिका था , वक्त रोया था

वो सिर्फ चंद नोटें थी , या इंसान का सच

जिनमें तेरे जिस्म की रूह का , सौदा हुआ था

क्या कुछ बताना चाहोगी , या बस खमोश रहोगी

कि एक लड़की से तवायफ़ के सफ़र में क्या – क्या हुआ था ?

तुम्हारी ख़ामोशी भी मंजूर है मुझे , जानती हूँ आसान नहीं

उस वक्त को बताना , जब रिश्तो का सच मुस्कान लिए रोया था

तो अब कह दो कि मैं रुकूँ , या लौट जाऊँ

नहीं तो तुम्हारी खामोशी को मैं , ना जाने किन किस्सों से जोड़ूंगी

या फिर डर है तुम्हें , कि मैं भी इसी इंसानियत का मारी हूँ

तुम्हारी दास्ताँ का , ना जाने कहाँ कोई नया खरीददार ढूँढूंगी

क्या कुछ बताना चाहोगी , या बस खमोश रहोगी

कि एक लड़की से तवायफ़ के सफ़र में क्या -क्या हुआ था ?

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