जाने आखिर क्यों मनाते हैं जन्माष्टमी का पर्व, कैसे रखें व्रत और करें पूजा..
जन्माष्टमी हिन्दू धर्म में मनाने वाला सबसे प्रसिद्ध पर्व है। आज के दिन श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। श्री कृष्ण की दो माँ थी, साथ ही उनके दो पिताजी भी थे, कृष्णा की प्रेमिकाए भी दो थी या यों कहे की अनेक। देवताओं में भगवान श्री कृष्ण विष्णु के अकेले ऐसे अवतार हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव के अलग रंग दिखाई देते हैं।
उनका बचपन गोकुल की गलियों में लीलाओ से भरा पढ़ा हैं। महाभारत में गीता के उपदेश से कर्तव्यनिष्ठा का जो पाठ भगवान श्री कृष्ण ने पढ़ाया है आज भी उसका अध्ययन करने पर हर बार नये अर्थ निकल कर सामने आते हैं। भगवान श्री कृष्ण के जन्म लेने से लेकर उनकी मृत्यु तक अनेक रोमांचक कहानियां है।
श्री कृष्ण के जन्मदिन को हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले और भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानने वाले जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की कृपा पाने के लिये भक्तजन उपवास रखते हैं और श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं।
जन्माष्टमी श्री कृष्ण के जन्म को ही कहा जाता हैं ग्रंथों के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय हुआ था। अत: भाद्रपद मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग हो तो वह और भी भाग्यशाली माना जाता है इसे जन्माष्टमी के साथ साथ जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
इस वर्ष जन्माष्टमी 24 अगस्त को मनाई जाएगी।
निशिथ पूजा– 00:01 से 00:45
पारण– 05:59 (24 अगस्त) सूर्योदय के पश्चात
रोहिणी समाप्त- सूर्योदय से पहले
अष्टमी तिथि आरंभ – 08:08 (23 अगस्त)
अष्टमी तिथि समाप्त – 08:31 (24 अगस्त)
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व्रत-पूजन कैसे करें
-उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
-उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएँ।
-पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें।
इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें-
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥
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-अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए ‘सूतिकागृह’ नियत करें।
-तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
-मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो।
-इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें।
-पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः निर्दिष्ट करना चाहिए।
फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें-
‘प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।’
अंत में प्रसाद वितरण कर भजन-कीर्तन करते हुए रतजगा करें।