जानिए बाबा बर्फानी से जुड़ी ये खास बातें, मुसलमान गड़रिए ने खोजी थी गुफा
भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में अमरनाथ गुफा एक है. इस गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग बनता है. इसलिए इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं. इस जगह को बाबा बर्फानी भी कहा जाता है. इस गुफा के बारे में कई बातें आप जानते होंगे और कुछ बातें नहीं जानते होंगे. आज सोमवार है और आज के दिन महादेव की पूजा की जाती है. आइए बाबा बर्फानी की कुछ खास बातें जानते हैं.
इस गुफा के बारे में सबसे पहले सोलहवीं शताब्दी में एक मुसलमान गड़रिए बूटा मलिक को चला था. आज भी मंदिर का चौथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है.
पशुओं को चराते हुए जंगल में इस गड़रिए की मुलाकात एक साधू से हो गई थी. साधू ने बूटा को कोयले से भरी एक कांगड़ी दी. जब घर पहुंचकर उसने कांगड़ी में कोयले की जगह सोना पाया तो वह बहुत हैरान हुआ और उसी समय साधू का धन्यवाद करने के लिए गया परन्तु वहां साधू की जगह एक विशाल गुफा मिली और उसी दिन से यह स्थान एक तीर्थ बन गया.
इस गुफा का आकार लगभग डेढ़ सौ फुट है. इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदें टपकती रहती हैं. इन बूंदों के एक स्थान पर टपकने से से ही दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है.
इस शिवलिंग का आकार चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ घटता-बढ़ता रहता है.
हैरानी की बात ये है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि ऐसी गुफाओं में आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है, जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाती है.
स्वयंभू की गुफा से कुछ दूरी पर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही हिमखंड र्निमित होते हैं.
गुफा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरत्व की कथा सुनाई थी, जिसे सुनकर उसी समय जन्मे शुक शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये थे.
जिन भक्तों पर शिव पार्वती प्रसन्न होते हैं, उन्हें कबूतरों के जोड़े के रूप में प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होते हैं.
कुछ धर्माचार्यों का मत है कि शिवजी जब पार्वतीजी को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने जिन स्थानों पर छोटे-छोटे अनंत नागों को, माथे के चंदन को, पिस्सुओं को और गले के शेषनाग को छोड़ा था वे सब अनंतनाग, चंदनबाड़ी, पिस्सू टॉप और शेषनाग नाम से प्रसिद्ध हुए हैं.