जानिए आखिर क्यों प्रधानमंत्री इस डांसर को राष्ट्रपति क्यों बनाना चाहते थे…

नई दिल्ली : 7 जुलाई 1977. संसद का मानसून सत्र चल रहा था. नीलम संजीव रेड्डी लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे हुए थे. इस बीच एक मार्शल उनके पास एक पर्ची लेकर आया हैं। वहीं  ये पर्ची कांग्रेस के नेता करण सिंह की तरफ से आई थी। वहीं  ये सब उस समय हो रहा था, जब संसद मॉनसून सेशन की सबसे तीखी बहस का गवाह बन रहा था। पर्ची का मजमून बांचने से पहले बात उस बहस की हैं।

 

प्रधानमन्त्री

 

 

बता दें की  मॉनसून सत्र के कुछ दिन पहले ही अंग्रेजी अखबार स्टेट्समैन में एक खबर छपी. इस खबर के साथ छपी एक फोटोकॉपी ने सदन में नई बहस खड़ी कर दी. अखबार में छपी इस फोटोकॉपी के मुताबिक संजय गांधी ने मनेका गांधी के लिए 25 हजार फ्रैंक (फ्रांस की मुद्रा) का स्विस बैंक ड्राफ्ट निकाला था. इस बात पर सत्ता पक्ष के लोग अपने ही वित्त मंत्री एच. एम. पटेल को घेरे हुए थे। पटेल लगातार कह रहे थे।

 

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इस दस्तावेज की सत्यता नहीं स्थापित की जा सकती. सत्ता पक्ष के सदस्य पटेल की इस सफाई से संतुष्ट नहीं थे. सत्ता पक्ष के लोग संजय गांधी और उनके बहाने से इंदिरा गांधी को घेरने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देना चाह रहे थे। लेकिन इससे एक सप्ताह पहले ही संजय और मनेका की हवाई अड्डे पर सुरक्षाकर्मियों के साथ झड़प हुई थी।

देखा जाये तो इस मामले में मनेका का पासपोर्ट जब्त कर लिया गया था. विपक्ष इसे एक मौके की तरह भुना लेना चाह रहा था। हालात यहां तक पहुंच गए कि लेफ्ट के ज्योतिर्मय बसु एक मैग्नीफाइंग ग्लास लेकर आए थे।   लेकिन इस बार-बार स्पीकर रेड्डी को कह रहे थे कि आप भी देखिए. सब नजर आ जाएगा। सदन में हो रहे इस हंगामे पर रेड्डी बिफर गए. उन्होंने सदस्यों को फटकार लगाते हुए कहा  हैं की “आप मुझे इससे बुरा सिर दर्द नहीं दे सकते।

 

दरअसल ऐसे माहौल में जब करण सिंह की पर्ची रेड्डी तक पहुंची, तो उन्हें लगा कि इसका संबंध संसद की फिलहाल की कार्यवाही से होगा. जब उन्होंने पर्ची खोली तो इसमें कांग्रेस के समर्थन की बात लिखी गई थी। जहां मोरारजी देसाई उस समय संसद में ही थे और पूरे घटनाक्रम को देख रहे थे। वो जान गए कि अब उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा था। थोड़ी देर में मोरारजी देसाई की तरफ से एक पर्ची मार्शल को सौंपी गई। लेकिन  इस पर्ची में लिखा था, “आपकी उम्मीदवारी का जनता पार्टी समर्थन करती है।

इसके बाद उन्होंने डीएमके के प्रमुख करुणानिधि से बात की हैं। रेड्डी को उनकी तरफ से भी समर्थन का आश्वासन मिला. इसके बाद उन्होंने लोकसभा के सभापति के पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी मां का आशीर्वाद लेने अनंतपुर आंध्रप्रदेश के लिए निकल गए हैं। जहां उनका राष्ट्रपति बनना तय हो चुका था।

ऐसा नहीं था कि उस चुनाव में किसी और ने नामांकन दाखिल नहीं किया था। वहीं नीलम संजीव रेड्डी के अलावा 36 और नामांकन दाखिल किए गए थे। जहां उस समय के रिटर्निंग ऑफिसर अवतार सिंह रिखी ने 36 नामांकन रद्द कर दिए थे। 21 जुलाई, 1977 को नामांकन वापिस लेने की आखिरी तारीख थी। 3 बजे दोपहर नीलम संजीव रेड्डी देश के छठे राष्ट्रपति घोषित कर दिए गए।

 

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