जानिए अमिताभ बच्चन का जेब में हाथ रखकर बात करना उनका स्टाइल नहीं बल्कि मजबूरी थी…

नई दिल्ली : अगर इस डायलॉग से भी आपको कुछ याद नहीं आया, तो फिर आपको तुरंत बादाम खाना शुरू कर देना चाहिए. अब अगर मैं कहूं शराबी, तो आपके दिमाग में सबसे पहले क्या आएगा? चाहे जो आए, 1984 की अमिताभ बच्चन की फिल्म ज़रूर याद आएगी।

 

अभिताभ बच्चन

वहीं ‘शराबी’, जिसके डायलॉग्स के साथ-साथ गाने भी सुपरहिट थे. कहते हैं जब तक कोई शराबी ना हो, तब तक वो शराबी की एक्टिंग नहीं कर सकता हैं। ऐसा कहा जाता है कि रियल लाइफ में शराब को हाथ न लगाने वाले अमिताभ बच्चन ने बड़े पर्दे पर एक असली शराबी की एक्टिंग करके सबको गलत साबित कर दिया था। वहीं  शराबी’, 18 मई 1984 को रिलीज़ हुई थीशराबी’, 18 मई 1984 को रिलीज़ हुई थी।

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दरअसल अमिताभ ने एक बार अपने ब्लॉग में फ़िल्म के बारे में काफी कुछ बताया था ये भी कि फिल्म का आईडिया कब और कैसे आया हैं जहां उनके मुताबिक़-

1983 में हम लोग वर्ल्ड टूर कर रहे थे। लेकिन फ़िल्म जगत के लिए वो अपने आप में एक अनोखे तरह का फ़िल्मी दौरा था. हम न्यूयॉर्क सिटी से त्रिनिदाद और टोबैगो के लिए फ्लाइट में जा रहे थे। तब प्रकाश मेहरा भी मेरे साथ ही थे। जहां बातचीत के दौरान प्रकाश मेहरा ने मुझसे कहा कि क्यों ना हम बाप-बेटे के रिश्तें पर एक फ़िल्म बनाएं, जिसमें बेटा शराबी हो हम आधे रास्ते में पहुंच चुके थे. हवा में करीब 35,000 फीट की ऊंचाई पर थे, अटलांटिक ओशियन के ऊपर हैं।

# जब अमिताभ को डायलॉग छोटे करवाने पड़े

दरअसल शूट के पहले ही दिन अमिताभ ने एक बात नोटिस की हैं।उनके डायलॉग बहुत ही ज़्यादा लंबे थे. फ़िल्म में ज़्यादातर उनका किरदार नशे की हालत में रहता था।

इस पर उन्होंने प्रकाश मेहरा से कहा कि अगर डायलॉग इतने ही लंबे रहेंगे, तो फ़िल्म कम से कम 5 घंटे की बनेगी। क्योंकि एक आदमी जब नशे की हालत में होता है तो उसे बड़े डायल़ॉग बोलने में वक़्त लगता है। इसलिए उन्होंने प्रकाश मेहरा को सलाह दी कि फ़िल्म में उनके डायलॉग छोटे रखें जाएं। ऐसा किया भी गया हैं।

# मजबूरी से जन्मा आइकॉनिक स्टाइल

अमिताभ ने पूरी फ़िल्म के दौरान अपना बायां हाथ अपनी जेब में ही रखा था। ये किया तो एक मजबूरी में गया था लेकिन फैंस के लिए वो एक स्टाइल बन गया। उस दौरान अमिताभ के हाथ में भयंकर चोट लगी थी। जहां उनके शब्दों में कहा जाए तो-

‘शराबी’ की शूटिंग के समय एक दिवाली बॉम्ब मेरे हाथ पर गिर गया था।शूटिंग कैंसिल नहीं की जा सकती थी। डेट को भी आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था। जहां  मैं भी किसी तरह की देरी करना नहीं चाहता था।इसीलिए मैंने शूटिंग नहीं रोकी हैं। मेरे हाथ का पूरी तरह से भर्ता बन गया था। वो बिल्कुल कच्चे-पक्के तंदूरी चिकन के जैसा लग रहा था। मेरे हाथ का हर एक हिस्सा गल गया था। लेकिन मैंने अपना काम नहीं छोड़ा हैं।

 

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