जानिए अपने मासिक धर्म के दर्द को ऐसे बयां करें महिलायें, आईआईटी छात्र की ये काम आई अनूठी पहल…

मासिक धर्म को लेकर आज भी देश में खुलकर बोलना या उस पर चर्चा करना ठीक नहीं समझा जाता। ये सब बातें शर्म या संकुचित भावना के दायरे में ही रहती हैं। नतीजा, खासतौर पर कामकाजी महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान शारीरिक और मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ती है। दिल्ली आईआईटी के छात्र हैरी ने इस दिशा में एक अनूठी पहल की है।

दर्द

बतादें की उन्होंने सोशल मीडिया पर रेड डॉट कैम्पेन शुरू कर महिलाओं को मासिक धर्म के बारे में खुलकर बोलने, अपने दर्द को बयां करने और उसका समाधान तलाशने का एक विकल्प तैयार किया है। महिलाओं को 24 घंटे के भीतर उनके सवालों का जवाब मिलेगा। इस मुहिम में एम्स की स्त्री रोग विशेषज्ञ भी शामिल हैं।

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यह आईआईटी में टेक्सटाइल टेक्नॉलोजी के छठे सेमेस्टर में पढ़ रहे हैरी सहरावत का कहना है कि अगस्त 2018 में उनके साथ एक घटना हुई थी। परीक्षा चल रही थी, सभी अपनी तैयारी में लगे थे। परीक्षा के बाद मेरी एक क्लासमेट कुछ उदास दिखी। मैंने पूछा तो मालूम हुआ कि पेपर अच्छा नहीं हुआ। वजह, परीक्षा वाली रात को मासिक धर्म के चलते उसे अत्यधिक पीड़ा से गुजरना पड़ा।

तभी से मेरे दिमाग में ये बात घूमने लगी कि महिलाओं के लिए इस विषय पर कुछ करना होगा। अब ये विषय ऐसा था कि इस पर महिलाएं खुद भी कुछ बोलना पसंद नहीं करती। एक शोध में पता लगा कि मासिक धर्म के दौरान कष्ट सहने वाली चालीस फीसदी महिलाएं अपने नियमित कामकाज को मिस करती हैं। वे किसी को कुछ बता नहीं पाती। बॉस और सहकर्मी सामने बैठे हैं, लेकिन वह अपनी पीड़ा को किसी के साथ शेयर नहीं कर पाती।

वहीं किसी महिला को मासिक धर्म के दौरान लगातार खड़े रहकर काम करना है, सफर पर जाना है या कोई ऐसा काम जो दफ्तर और कम्पनी की प्रतिष्ठा से जुड़ा हो, वह दे दिया जाए तो उसकी पीड़ा और अधिक बढ़ जाती है। कई बार वह काम गलत हो जाता है, जिसका खामियाजा कम्पनी और उस महिला कर्मी, दोनों को भुगतना पड़ता है।

वह फोटो फेसबुक पर दो लोगों को टैग करते हुए शेयर करना होगा। इसमें महिला अपने मासिक धर्म की पीड़ा के बारे में बता सकती है। इससे जुड़ी कोई स्टोरी या आर्टिकल सांझा कर सकती हैं। अगर कोई सवाल हैं तो उसके बारे में खुलकर बोलें। एम्स की महिला रोग विशेषज्ञ 24 घंटे के भीतर महिलाओं के प्रश्नों का उत्तर देंगी। इसके लिए महिलायें http://periodpain.in/ या sanfe वेबसाइट पर अपने सवाल या कोई अन्य जानकारी भेज सकती हैं।

दरअसल यह कैम्पेन देश के सभी मेट्रो सिटी में शुरू किया जा रहा है। हमारा मकसद है कि ज्यादा से ज्यादा लोग जब महिलाओं की इस पीड़ा को समझने लगेंगे तो उनकी सोच में बदलाव आएगा। कई देशों में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को छुट्टी या दूसरे तरीके से कुछ राहत दी जाती है। हमारे देश में अभी ऐसा कुछ नहीं है।

हैरी बताते हैं, जब लोगों की सोच बदलेगी तो वे महिलाओं की इस वेदना को समझने लगेंगे। जिस दिन यह हो जाएगा तो महिलाओं को मासिक धर्म के दिनों में शर्म या पीड़ा नहीं सहनी पड़ेगी। दफ्तर या किसी अन्य कार्यस्थल पर महिला को सभी का सहयोग मिलेगा, यही हमारा लक्ष्य है।

 

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