जलती बस में बेटी को सीने से लगाए लपटों से लड़ती रही मां, आग से हारी जिंदगी

लखनऊ : आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे पर कुछ ही पल में चार जिंदगी मौत के आगोश में समा गईं। वहीं मौत से पहले सभी ने जिंदगी के लिए संघर्ष किया।

आग

जहां बस में सवार डॉक्टर ज्योति छह वर्ष की बेटी को सीने से लगाए चीखती रहीं, लेकिन कोई भी मदद की हिम्मत नहीं जुटा सका। लेकिन मां के कलेजे से लिपटी बेटी का शव देख हर किसी की आंखें भर आईं।

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बता दें की रविवार की रात करीब एक बजे आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर बस से आग की लपटें उठती देख मौके पर लोग जुट गए। इस बीच कुछ वाहन सवार भी रुके, लेकिन भयंकर आग देखकर वे मदद की हिम्मत नहीं जुटा सके।

प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो ज्योति अपनी छह वर्ष की बेटी को सीने से लगाए बस में इधर उधर दौड़ रही थी। वो मदद के लिए चीख रही थी, लेकिन बस के शीशे बंद होने के कारण लोग उसकी चीख सिर्फ महसूस कर पा रहे थे।

ज्योति ने बस का शीशा तोड़ने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। वहीं बस के चालक और परिचालक ने भी बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन बस लॉक होने के कारण वह खुद को बचा नहीं सके।

दरअसल लोगों की मानें तो पुलिस और दमकल के पहुंचने तक बस को आग ने अपने आगोश में ले लिया था। आग बुझने के बाद बस के अंदर का मंजर देख लोगों का दिल दहल गया। ज्योति और बेटी नीति का शव बस की गैलरी में पड़ा था। दोनों शव एक दूसरे से चिपके हुए थे। कुछ दूरी पर चालक और परिचालक के शव पड़े थे।

रविवार रात का खौफनाक मंजर जिसने देखा वो शायद ही उसे भुला सके। लोगों की आंखों के सामने चार लोगों ने तड़प तड़प कर दम तोड़ दिया और मौजूद लोग चाहकर भी मदद नहीं कर सके। दुखी मन से लोग यही कह रहे थे कि ऐसी मौत दुश्मन को भी न मिले।

डॉ. ज्योति जैक निर्वाण लखनऊ पीजीआई में डॉक्टर के रूप में तैनात थीं। परिजनों की मानें तो वह पीजीआई के रिसर्च सेक्शन में तैनात थीं। वहीं उनके पति निशांत कुमार राजभवन में बतौर डॉक्टर तैनात हैं। ज्योति दिल्ली एक रिसर्च सेमिनार में शामिल होने के लिए गई थीं। परी चौक से वो बेटी के साथ बस में सवार हुईं थीं।

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