आभूषण निर्माण में कुशलता से सशक्त होतीं जनजातीय महिलाएं 

बांधा टोला (कान्हा टाइगर रिजर्व)। रोजमर्रा की जरूरतों के लिए जंगल पर आश्रित बांधा टोला की महिलाओं को तब अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ा, जब उनके पूरे गांव को अन्य सैकड़ों बैगा जनजातीय गांवों के साथ मध्यप्रदेश के इस प्रसिद्ध बाघ अभयारण्य के पारंपरिक आवास से बाहर निकलना पड़ा।

जनजातीय महिलाएं 

लेकिन, आज वे सशक्त महसूस कर रहीं हैं और अपने वन-आश्रित जनजाति के लिए एक बेहतर भविष्य देख रहीं हैं। इसके साथ वे इस तथ्य से भी खुश हैं कि एक नए स्थान पर आने के बाजवूद उनकी संस्कृति और परंपरा समृद्ध हो रही है।

उनमें आत्मविश्वास बाजार में दुर्लभ जनजातीय आभूषण के बेचे जाने की छोटी मगर शक्तिशाली पहल की वजह से पैदा हुआ है। बैगा महिलाएं इन आभूषणों को अपने हाथों से बनाती हैं और इसे इतिहास में इनके जनजातीय क्षेत्र से बाहर पहली बार बेचा जा रहा है।

कान्हा बाघ अभयारण्य के प्रशासक और लास्ट वाइल्डरनेस फाउंडेशन (एलडब्ल्यूएफ) के दिमाग की उपज, यह पहल न केवल भारत की सबसे गरीब जनजातियों में से एक की जिंदगी को बेहतर कर रही है और दूसरों के साथ कदम से कदम मिलाने के लिए आत्मविश्वास भी पैदा कर रही है, बल्कि इस प्रयास से उन लोगों के घरों में भी यह जनजातीय आभूषण पहुंच पाया है, जो इस मृतप्राय कला की सराहना कर रहे हैं।

वन अधिकारियों ने कहा, “इसकी प्रतिक्रिया जबरदस्त है, क्योंकि लोग इसे प्यार कर रहे हैं और इसकी मांग बढ़ रही है।”

एक बच्चे की मां सुनीता ध्रुवे (25) कहती हैं कि उन्हें इस बात का कोई आभास नहीं था कि बड़े शहर के लोग उनके कार्य को पसंद करेंगे। ऐसा लग रहा है कि वे हमारी संस्कृति को पसंद कर रहे हैं।

ध्रुवे ने इस आईएएनएस से कहा, “हम (बैगा) अपना खुद का आभूषण बनाते हैं। इन नेकलेसों को बनाने मे मुश्किल से कुछ घंटे ही लगते हैं। अगर हम मजदूर के तौर पर काम करते हैं तो हमें पूरा दिन, समय और ऊर्जा लगाने के बाद 100 रुपये मिलते हैं। इसके अलावा बड़े कांट्रेक्टर और बड़े शहर के लोग हमें नीचा दिखाते हैं। लेकिन, नेकलेस बनाने का काम हम घर के अन्य कामों के साथ कर सकते हैं।”

वह लास्ट वाइल्डरनेस फाउंडेशन द्वारा दी गई सामग्रियों से नेकलेस और ब्रेसलेट बनाती हैं। फाउंडेशन इसके साथ ही बने हुए आभूषणों को उनसे लेकर दुकानों व ई-मार्केट में बेच देता है।

यह कार्य 2017 में केवल एक बैगा महिला से शुरू किया गया था। इस परियोजना में बीते साल से तेजी आई और जंगल के कोर क्षेत्र में 10 किलोमीटर के अंदर बसे तीन विभिन्न गांवों की 50 बैगा महिलाएं मौजूदा समय में रंगीन ब्रेसलेट और नेकलेस बनाती हैं और इससे अपनी जीविका चलाती हैं।

एक अन्य जनजातीय महिला संजू बोपचे ने कहा, “अपने खुद के आय का स्रोत होना काफी अच्छा है। अब मैं पैसे के लिए अपने पति पर निर्भर नहीं हूं। मेरे पास अब अपनी बचत है और अब मुझे हर एक छोटी चीज के लिए उन्हें खुश करने की जरूरत नहीं है।”

बोपचे ने कहा कि उन्होंने सबसे पहले खुद कमाए गए पैसे से पास के शहर के साप्ताहिक बाजार से अपने लिए मेक-अप का सामान और अपने बेटे के लिए एक खिलौना खरीदा।

महिलाएं हालांकि अपने काम को कर सशक्त महसूस कर रही हैं, लेकिन उनमें अपने शिल्प कौशल और उद्यमिता के लिए ज्यादा कमाई के लिहाज से भविष्य में और ज्यादा सशक्त होने का भाव उत्पन्न हो रहा है।

महिलाओं को आभूषणों को बनाने के लिए जिस चीज की भी जरूरत होती है, फाउंडेशन उसे उपलब्ध कराता है, जिससे महिलाएं प्रति पीस 50-100 रुपये कमाती हैं। आभूषणों को कान्हा बाघ अभयारण्य के मुक्की जोन स्थित रिसॉर्ट और दुकानों और इ-कामर्स प्लेटफार्म पर 600 से 1000 रुपये प्रति पीस बेचा जाता है।

अपनी मां प्रमोदिनी से आभूषण कला सीखने वाली 16 वर्ष की इंद्रावती ने कहा कि 50 से 100 रुपये काफी नहीं हैं।

इंद्रावती ने कहा, “यह एक जंगल के गांव में रहने वाले लोगों के लिए काफी हो सकता है, लेकिन मैं जानती हूं कि शहर के लोग इस शिल्पकला के लिए ज्यादा पैसे चुकाते हैं। मैंने बीते तीन माह में 6,000 रुपये कमाए हैं। लेकिन यह और ज्यादा होता, अगर मैं इसे बाजार में खुद बेचती।”

कान्हा बाघ अभयारण्य के सहायक निदेशक एस.के. खरे ने कहा, “फाउंडेशन और वन विभाग के लिए यह पहल बैगा संस्कृति को संरक्षित करने और उन्हें सशक्त कर वन पर उनकी निर्भरता को घटाने का प्रयास है। इसके साथ ही उनके अपने उद्यमशिलता को शुरू करने के लिए आत्मविश्वास बढ़ाने का प्रयास है।”

उन्होंने साथ ही कहा कि इस पहल से बैगा समुदाय और वन विभाग के बीच विश्वास की भावना विकसित हुई है।

खरे ने कहा, “सभी जनजातीय आभूषणों को शहरी लोगों के लिए बनाया जाता है। नेकलेस एक 20 लाइन का मूंग दाना नेकलेस होता है, जबकि वास्तविक में यह 40 से ज्यादा मूंगा दाने का होता है, जिसे जनजातीय महिलाएं पहनती हैं। उसी तरह ब्रेसलेट प्राय: जनजातीय महिलाएं नहीं पहनती हैं, लेकिन इसकी प्रतिक्रिया अच्छी है।”

लास्ट वाइल्डरनेस फाउंडेशन की विद्या वेंकटेश ने कहा, “यह शानदार अनुभव है और यह पहली बार है कि उनके आभूषण को बाजार मे लाया गया है और स्मारिका दुकानों के पास कुछ स्थानीय चीजें बेचने के लिए हैं। हमें सच में काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है, लेकिन सबसे अच्छी प्रतिक्रिया ऑनलाइन स्टोर विदेशी पर्यटकों से मिली है।”

मौजूदा समय में बैगा महिलाएं बाजार में बेचने के लिए केवल दो तरह के आभूषण ‘नेकलेस और ब्रेसलेट’ बनाती है। वेंकटेश ने कहा कि इस प्रोजेक्ट को बेहतरीन प्रतिक्रिया मिली है, इसलिए वे इसमें दो और उत्पाद जोड़कर इस परियोजना का विस्तार करना चाहती हैं, जिसमें एक चार लाइन वाले एंकलेट और दूसरा बिछुआ है।

वेंकटेश ने कहा, “इन जनजातीय महिलाओं ने इस सीजन पर्यटकों के लिए कार्यशालाओं का अयोजन किया था। उनका आत्मविश्वास ऊंचे स्तर पर है और वे धीरे-धीरे अपने कार्य और कला की अहमियत समझ रही हैं। यह इन महिलाओं के लिए एक बहुत बड़ा बदलाव है, जो पहले वन रक्षकों को देख कर ही भाग जाया करती थी।”

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