इन दो युवको का एक छोटा सा प्रयास बचाता है कई लोगों की जान 

दुनिया में कई देश हैं और हर देश में अलग-अलग धर्म और संप्रदाय के लोग रहते हैं। ये लोग जिस धर्म को मानते हैं और जिस भी गुरू की पूजा करते हैं, वह अपने दिन की शुरुआत धर्म के नियमों के अनुसार करते होंगे। जो हिंदू है वो अपने भगवान की पूजा करके अपने दिन की शुरुआत करता है, जो इसाई है, वो अपने जीजस की प्रार्थना करके अपने दिन की शुरुआत करता है। जो मुस्लिम है, वो अल्लाह की इबादत के साथ अपने दिन की शुरआत करता है और जो सिख है, वो गुरुद्वारे में माथा टेक कर अपने दिन की शुरुआत करता है।

इन दो युवको का एक छोटा सा प्रयास बचाता है कई लोगों की जान 

हमें बचपन से ही सिखाया जाता है कि हिंदू, मुस्लिम, सिख और इसाई एक ही ईश्वर की संतान हैं। इसलिए अगर हम अपने अपने धर्मों की पूजा न कर मानवता का गुण दूसरों को सिखाएं और दूसरों के साथ मानवता भरे कार्य करें, तो उसमें सबसे बड़ा पुण्य मिलता है।

इन दो युवको का एक छोटा सा प्रयास बचाता है कई लोगों की जान 

आप सोच रहे होंगे कि यह बात मैं आपसे क्यों कर रहा हूं। इसका जवाब आपको आगे मिल जाएगा। क्योंकि इस लेख में मैं आगे ऐसे दो युवकों का जिक्र करने जा रहा हूं, जो हर रोज अपने दिन की शुरुआत ऐसे काम से करते हैं, जिसके जरिए सैकड़ों जिंदगियां मौत के मुंह में समाने से बच जाती हैं।

इन दो युवको का एक छोटा सा प्रयास बचाता है कई लोगों की जान 

अब आप सोच रहे होंगे कि यह कैसे संभव है? तो आपको बता दें कि हम जिन युवकों का जिक्र कर रहे हैं, वह मुंबई के रहने वाले हैं। इन दोनों युवकों ने अपने धर्म और पूजा-पाठ को तवज्जो न देकर मानवता की मिसाल पेश की है और ये युवक अपने हर दिन की शुरुआत ऐसे काम से करते हैं, जिसे शायद हम भी कर सकते हैं और कई जिंदगियों को खत्म होने से बचा सकते हैं। हालांकि यह विडंबना ही है कि इन युवकों को देखकर तो हम यही सोचते हैं कि यह काम बहुत नेकी का है और सभी धर्मों से ऊपर है। लेकिन जब बात अपने पर आए, तो हम यही कहते हैं कि यह काम हमारा थोड़े है…।

हम जिन युवकों की बात कर रहे हैं, उनमें से एक का नाम है मुश्ताक अंसारी और दूसरे का नाम है इरफान माचिसवाला। यह दोनों ही युवक सुबह होते ही सबसे पहले उस काम को निपटाते हैं, जो दूसरों की जान बचाता है। यह सुबह अपने दिन की शुरुआत मुंबई की सड़कों पर हुए गड्ढों को पाटने के साथ करते हैं। आप सोच रहे होंगे कि यह कैसा काम है और यह काम तो मुंबई महानगरपालिका का है। तो आपको बता दें कि जब हम एक हाथ बढ़ाएंगे, तो प्रशासन हमसे एक हाथ आगे प्रयास करेगा।

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आखिर मुश्ताक और इरफान का इस कार्य में कोई स्वार्थ नहीं, फिर भी यह दोनों मुंबई के सड़कों पर बने गड्ढ़ों को इसलिए पाट रहे हैं, जिससे यहां हर रोज होने वाले सैकड़ों एक्सीडेंट की संख्या में कमी आ सके और लोग प्रशासन की लापरवाही से अपनी जान न गवाएं। ये दोनों ही युवक समाजसेवी तो हैं ही, इसके साथ ही यह दोनों काफी काबिल भी हैं। यही कारण है कि उन्होंने बीएमसी और यहां के प्रशासन को एक सबक सिखाने के लिए यह काम शुरू किया।

इन दो युवको का एक छोटा सा प्रयास बचाता है कई लोगों की जान 

यह दोनों युवक बताते हैं कि मुंबई के अनेक इलाकों जैसे माहिम, बांद्रा, धारावी और अंधेरी समेत अन्य जगहों पर बनी सड़कें बारिश में खराब हो जाती हैं और यहां पर कई गड्ढे हैं, जिनके कारण हर साल कई लोगों की मौत हो जाती है। ऐसे में बीएमसी तो इनकी मरम्मत के लिए कुछ प्रयास करती नहीं और न ही एमएमआरडीए ही इनकी सुध लेता है। इन गड्ढों के कारण हमने कई हादसों को होते देखा है, जिनमें लोगों ने अपनी जान गंवाई है या फिर चोटिल हुए हैं। जिसके बाद हमने ही इन्हें डंपर चालकों द्वारा फेंके गए मलबों के द्वारा इन गड्ढों को भरने का काम शुरू कर दिया है।

इरफान बताते हैं कि सुबह उठने के बाद जहां लोग पूजा-पाठ में लग जाते हैं। वहीं हमारा सबसे पहला काम यही होता है कि हम सड़कों पर बने गड्ढों को इन मलबों के जरिए भर दें। जिससे कोई निर्दोष जिंदगी इसकी चपेट में आकर अपना जीवन न गंवा दे। इरफान कहते हैं कि इस काम को करने के बाद ही आगे का काम जारी करते हैं। उन्होंने बताया कि यह छोटे समय के लिए नहीं बल्कि लंबे समय तक जारी रहने वाली प्रक्रिया है और वे भी इसी काम में तब तक लगे रहेंगे जब तक यहां की सड़कें गड्ढा मुक्त नहीं हो जाती हैं।

इरफान के मुताबिक शायद उनके छोटे से प्रयास से हर कोई सीख ले सके और इस तरह के प्रयास से किसी को नया जीवन मिल सके। वहीं मुश्ताक कहते हैं कि यहां का प्रशासन इन गड्ढों की सुध लेता ही नहीं है और इसी के कारण हर साल सैकड़ों लोग या तो अपनी जान गंवा देते हैं, या फिर बुरी तरह चोटिल हो जाते हैं। उन्होंने यहां की सड़कों को कई बार गड्ढा मुक्त करने के लिए प्रशासन से अपील भी की है लेकिन कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला है।

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दुनिया भर में सबसे खराब है भारत का हाल

कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार के रवैये को लेकर एक टिप्पणी की थी, जिसमें उसने कहा था कि “देश की सरहद पर गोलीबारी में या आतंकवादी घटनाओं में जितने लोग मरते हैं, उससे कहीं ज्यादा लोग देश की सड़कों पर गड्ढ़ों के चलते होने वाली दुर्घटनाओं के कारण मर जाते हैं।” एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में सड़कों का सबसे ज्यादा बुरा हाल भारत की सड़कों का है, आंकड़ों के मुताबिक 2013-17 के दौरान गड्ढों के कारण दुर्घटना में जान गंवाने वाले लोगों की संख्या 14,926 थी।

वहीं इसके कुछ दिन बाद ही विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में ज्यादातर बच्चे और युवा बीमारी नहीं बल्कि सड़क दुर्घटना के कारण अपनी जान गंवाते हैं। वहीं रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में साल 2016 में सड़क दुर्घटना में 13.5 लोगों की मौत हुई थी। यह आंकड़ा साल 2013 में 12.5 लाख था। मरने वाले इन लोगों में प्रत्येक 9वां शख्स भारतीय था। जबकि बच्चों और वयस्कों की मौत की सबसे बड़ी वजह सड़क दुर्घटना में घायल होना है।

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ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि शायद मुश्ताक और इरफान का यह छोटा सा प्रयास मौत के इन आंकड़ों में कमी ला सकता है और इन हादसों के बाद भी सोए हुए प्रशासन को जगाने का काम कर सकता है। वहीं इस पर सोचने वाली बात यह भी है कि जब यह दोनो युवक यह काम कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं। हम शहर नहीं तो अपने आस-पड़ोसी की सड़कों की मरम्मत तो कर ही सकते हैं। सोचिए… जरा सोचिए… आपका एक कदम कई निर्दोष जिंदगियों को बचा सकता है।

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