चैत्र नवरात्रि कल से, जानिए कलश स्थापित करने का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और मंत्र

नई दिल्ली : आदि शक्ति की आराधना का पावनपर्व चैत्र नवरात्र 6 अप्रैल शनिवार से आरम्भ हो रहा हैं, जो 14 अप्रैल तक चलेगा। वहीं नवरात्र के आरंभ से ही  जप-तप-पूजा-पाठ श्राद्ध-तर्पण आदि सभी कार्यों से संकल्प के समय वर्तमान रूद्र विंशति के ‘परिधावी’ नामक संवत्सर का प्रयोग किया जाएगा।

कलश

बता दें की नवरात्र का अर्थ है, नया और रात्र का अर्थ है अनुष्ठान, अर्थात् नया अनुष्ठान। शक्ति के नौ रूपों की आराधना नौ अलग-अलग दिनों में करने के क्रम को ही नवरात्र कहते हैं। मां जीवात्मा, परमात्मा, भूताकाश, चित्ताकाश और चिदाकाश में सर्वव्यापी है। ये ही मां ब्रह्मशक्ति हैं।

 

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वहीं चैत्र नवरात्रि के शुभारंभ पर कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त अभिजित है, जो दोपहर 12 बजकर 04 मिनट से 12 बजकर 52 मिनट तक है। देवी के सभी साधकों को इसी इसी अवधि के दौरान कलश स्थापना करने का प्रयास करना चाहिए। नवरात्र के दिन देवी के साधक मां जगदंबे की की पूजा के लिए सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर कलश, नारियल-चुन्नी, श्रृंगार का सामान, अक्षत, हल्दी, फल-फूल पुष्प आदि यथा संभव सामग्री साथ रख लें।

लेकिन माता की पूजा का कलश सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का होना चाहिए। लोहे अथवा स्टील का कलश पूजा मे प्रयोग नहीं करना चाहिए। जहां कलश के ऊपर रोली से ‘ॐ’ और स्वास्तिक आदि लिखें। पूजा आरम्भ के समय ‘ॐ पुण्डरीकाक्षाय’ नमः’ कहते हुए अपने ऊपर जल छिड़के।

ध्यान दे अपने पूजा स्थल से दक्षिण और पूर्व के कोने में घी का दीपक जलाते हुए यह मंत्र पढ़ें –

ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्र जनार्दनः।
दीपो हरतु में पापं पूजा दीप नमोस्तु ते।।

दरअसल दीपक जलाने के बाद मां दुर्गा की मूर्ति के बाईं तरफ श्री गणेश की मूर्ति रखें। इसे पश्चात् पूजा स्थल के उत्तर-पूर्व भाग में पृथ्वी पर सात प्रकार के अनाज नदी की रेत और जौ ‘ॐ भूम्यै नमः’ कहते हुए डालें। इसके उपरांत कलश में जल-गंगाजल, लौंग, इलायची,पान, सुपारी, रोली, मोली, चन्दन, अक्षत, हल्दी, रुपया पुष्पादि डालें। अब कलश में थोड़ा और जल-गंगाजल डालते हुए ‘ॐ वरुणाय नमः’ मंत्र पढ़ें और कलश को पूर्ण रूप से भर दें।

जहां इसके बाद आम की टहनी (पल्लव) डालें। यदि आम की पल्लव न हो तो पीपल, बरगद, गूलर अथवा पाकर का पल्लव भी कलश के ऊपर रखने का विधान है। जौ अथवा कच्चा चावल कटोरे मे भरकर कलश के ऊपर रखें। उसके ऊपर चुन्नी से लिपटा हुआ नारियल रखकर कलश को माथे के समीप लाएं और वरुण देवता को प्रणाम करते हुए रेत पर कलश स्थापित करें। पूजा से पहले एक एक बात का ध्यान अवश्य रखें कि आराधना के लिए श्रद्धा-विश्वास और समर्पण का होना अति आवश्यक है। अगर इन दोनों के साथ समर्पण भी है, तो आप की सभी बिघ्न-बाधाएं दूर होंगी। पुष्प लेकर मन में ही संकल्प लें कि  मां मैं आज नवरात्र की प्रतिपदा से आप की आराधना अमुक कार्य के लिए कर रहा-रही हूं, मेरी पूजा स्वीकार करके ईष्ट कार्य को सिद्ध करो।

वहीं पूजा के समय यदि आप को कोई भी मन्त्र नहीं आता हो तो केवल दुर्गा सप्तशती में दिए गए नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे।’ से सभी पूजन सामग्री चढाएं। माँ शक्ति का यह अमोघ मंत्र है। साथ ही आप के पास जो भी यथा संभव सामग्री हो उसी से आराधना करें। प्रयास करें कि माता को श्रृंगार का सामान और नारियल-चुन्नी जरुर चढ़ाएं। सर्वप्रथम मां का ध्यान, आवाहन, आसन, अर्घ्य, स्नान, उपवस्त्र, वस्त्र, श्रृंगार का सामन, सिन्दूर, हल्दी, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, मिष्ठान, ऋतुफल, नारियल आदि जो भी सुलभ हो, उसे अर्पित करें।

 

 

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