
भाजपा की पहली लिस्ट में 184 नामों की घोषणा के साथ ही चुनावी दंगल में कुछ सुपरहिट मुकाबलों की तस्वीर खुद ब खुद बनने लगी है। ऐसे ही कुछ मुकाबलों पर नजर, जो आने वाले दिनों में मौसमी गर्मी के साथ चुनावी गर्मी भी बेहद बढ़ाने वाले हैं:
अमेठी
अमेठी में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने एक बार फिर भाजपा की राज्यसभा सांसद और मंत्री स्मृति ईरानी होंगी। साल 2014 में भी दोनों एक दूसरे को टक्कर दे चुके हैं। हालांकि, तब जीत राहुल के हाथ ही लगी थी। लेकिन मुकाबला बेहद कड़ा रहा था। राहुल को जहां 4 लाख 8 हजार वोट मिले थे वहीं स्मृति को 3 लाख वोट।
शायद, यही वजह है कि पार्टी ने स्मृति पर ही दांव लगाना बेहतर समझा। यूं तो अमेठी सीट, गांधी परिवार की परंपरागत सीटों में शुमार है लेकिन 2019 का रण, 2014 से काफी अलग रहने वाला है। स्मृति भी पांच साल का अनुभव बटोर चुकी हैं। ऐसे में ये मुकाबला सुपरहिट से कम नहीं रहने वाला।
मुजफ्फरनगर
उत्तर प्रदेश की बेहद संवेदनशील लोकसभा सीटों में आता है मुजफ्फरनगर। यहां से भाजपा के संजीव बाल्यान एक बार फिर मैदान में हैं। लेकिन उन्हें चुनौती देने उतर रहे हैं, राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष और दिग्गज अजित सिंह। 2014 में संजीव बाल्यान इस सीट पर करीब 59 फीसदी वोटों के साथ 4 लाख वोट के बड़े अंतर से जीते थे। उन्होंने बसपा के कादिर राणा को मात दी थी। लेकिन, इस बार मुकाबला आसान नहीं होगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश को रालोद का गढ़ माना जाता है। इस इलाके में उनकी अच्छी पैठ है। अजित सिंह खुद कद्दावर और तजुर्बेकार नेता हैं। तो इस सीट पर भी मुकाबला कड़ा रहेगा।
बागपत
मुजफ्फरनगर में पिता अजित सिंह, संजीव बाल्यान को संभालेंगे तो सत्यपाल सिंह से लड़ने की जिम्मेदारी रहेगी उनके बेटे जयंत चौधरी पर। मुंबई पुलिस कमिशनर रहे सत्यपाल सिंह ने पहली बार 2014 में चुनाव लड़ा और पहली ही बार में दो लाख वोटों से जीतकर लोकसभा पहुंचे। दिलचस्प बात ये है कि 2014 में इस सीट से लड़ने वाले अजित सिंह तीसरे स्थान पर रहे थे। लेकिन इस बार मामला सपा-बसपा-रालोद गठबंधन का है। आंकड़ों की बाजीगरी में जाएं और 2014 के सपा, बसपा और रालोद के वोटों को मिला दिया जाए तो वो भाजपा से कहीं आगे ठहरता है।
शायद, यही वजह है कि जाट समुदाय के बीच ठीकठाक पकड़ रखने वाले जयंत चौधरी 2014 के उलट, सत्यपाल सिंह के लिए चुनौती खड़ी कर सकते हैं।
बदायूं
बसपा से भाजपा में आई संघमित्रा मौर्य को बदायूं से टिकट दिया गया है। उनके सामने चुनावी महासंग्राम में होंगे- समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव। ये मुकाबला कई वजहों से बेहद दिलचस्प बन गया है। संघमित्रा, बसपा के कद्दावर नेता रहे स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी हैं और पिछले कई साल से सक्रिय राजनीति का हिस्सा हैं। 2014 में उन्होंने मैनपुरी से चुनाव लड़ा और तीसरे स्थान पर रहीं।
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2014 की मोदी लहर में भी बदायूं वो सीट थी जो सपा बचाने में कामयाब रही। और इसे बचाने वाले थे धर्मेंद्र यादव जिन्होंने भाजपा के वागीश पाठक को करीब डेढ़ लाख वोट से मात दी। धर्मेंद्र यादव, मुलायम सिंह के भतीजे हैं। क्या 2019 के चुनाव में संघमित्रा कोई कमाल कर पाएंगी या 2014 की तरह धर्मेंद्र अपनी सीट बचा लेंगे, ये देखना खासा दिलचस्प होगा।