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चीन को मुंहतोड़ जवाबनई दिल्ली। डोकलम विवाद को लेकर चीन लगातार अपने अड़ियल रवैये पर बरकरार है। भारत को आंख दिखाने के साथ चीन ने तब हद पार कर दी, जब चीनी सेना ने उत्तराखंड में घुसपैठ की। वे भारतीय सीमा में करीब एक किलोमीटर तक अन्दर घुस आए थे। अब यह बात सामने आ रही हैं कि इसके जवाब में देश के प्रधानमंत्री चीन की इस हरकत का मुंहतोड़ जवाब देने का प्लान बना रहे हैं। माना जा रहा है कि भारत का उठने वाला अगला कदम चीन को बहुत भारी पड़ने वाला है, जिसके बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं होगा।

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खबरों के मुताबिक़ चीन के इस आक्रामक रवैये के चलते भारत की उस कंपनी के अधिग्रहण पर रोक लगाई जा सकती है, जिसका अधिग्रहण चीन की एक कंपनी करने वाली है।

इस मामले से जुड़े एक व्यक्ति ने नाम न बताने की शर्त पर कहा है कि अभी तक दोनों में से किसी भी कंपनी को इस कदम के बारे में नहीं बताया गया है।

चीन की कंपनी शंघाई फोसुन फार्मास्युटिकल ग्रुप कंपनी भारत की एक दवा निर्माता कंपनी का 1.3 अरब डॉलर में अधिग्रहण करने जा रही है, जो देश में अब तक का सबसे बड़ा चीनी अधिग्रहण होगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने फैसला किया है कि इस चीनी कंपनी द्वारा भारत की ग्लैंड फार्मा लिमिटेड कंपनी के अधिग्रहण पर रोक लगाई जाए।

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फोसुन फार्मा चीन के अरबपति गुओ गुआंगचांग की कंपनी है, जिसने पिछले साल जुलाई में केकेआर एण्ड कंपनी और अन्य कुछ निवेशकों के ग्रुप की कंपनी ग्लैंड फार्मा के अधिग्रहण को लेकर डील की थी।

बता दें इन दिनों डोकलाम को लेकर भारत और चीन के बीच सीमा विवाद चल रहा है। दोनों ही देशों की सेनाएं सीमा पर हैं।

एक अगस्त यानी आज चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के गठन के 90 साल पूरे हो गए हैं। चीनी सेना ने रविवार को जमकर शक्ति प्रदर्शन किया था।

इसी दौरान यह भी खबर आई कि झुरिहे मिलिट्री बेस पर एक बड़ी मिलिट्री परेड भी निकाली गई। इस परेड के दौरान चीन ने अपनी ताकत दिखाने के लिए कंवेंशनल मिसाइल, न्यूक्लियर मिसाइल और इसके अलावा कंवेंशनल और न्यूक्लियर दोनों ही हमलों की मिसाइल का प्रदर्शन किया।

राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने खुद ही एक खुले छत वाली जीप से सैन्य शक्ति का मुआयना किया। परेड के दौरान पीपल्प लिबरेशन आर्मी की स्थापना को 90 साल पूरे होने को दिखाते हुए हेलिकॉप्टर से आसमान में 90 अंक का भी प्रदर्शन किया गया। शी जिनपिंग ने सेना को संबोधित करते हुए यह भी कहा था कि हमेशा जंग के लिए तैयार रहो।

इतना ही नहीं आसार यह भी हैं कि जिनपिंग पाकिस्तान की सीमा पर भी तनाव पैदा करने की चाहत रखते हैं। लेकिन अपने इन नापाक मंसूबों को अंजाम तक पहुचाने की हिम्मत चीन में नहीं है।

विशेषज्ञों का दावा है कि युद्ध के लिए ललकार कर और दबाव बना कर चीन भले ही अपनी हेकड़ी दिखा रहा हो पर कहीं न कहीं वह भी युद्ध का बिगुल बजाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। वजह वे वाकिफ हैं कि यदि युद्ध हुआ तो उन्हें कई क्षेत्रों में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

गौरतलब है कि चीनी मीडिया बार-बार भारत को 1962 के युद्ध का सबक याद रखने के लिए कहता रहा है। वहीं भारतीय रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने चीन को जवाब देते हुए कहा कि भारत 1962 वाला नहीं है।

राजनीतिज्ञों और मीडिया से इतर विशेषज्ञों की राय भी दोनों देशों की राय को लेकर बंटी हुई है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन ने अपनी सीमा के आसपास संचार तंत्र पिछले कुछ सालों में काफी विकसित कर लिया है इसलिए युद्ध की स्थिति में वो बेहतर स्थिति में होगा। लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के खिलाफ युद्ध से चीन ही घाटे में रहेगा।

देश की एक मशहूर पत्रिका में इंडिया टुडे में छपे एक लेख में प्रभाष के दत्ता ने दावा किया है कि चीन कभी भी भारत के खिलाफ युद्ध का जोखिम मोल नहीं लेगा।

बताया गया 1962 के बाद से भारत और चीन की सीमा रेखा पर कभी एक भी गोली नहीं चली है। चीन कई वजहों से भारत के खिलाफ युद्ध नहीं छेड़ सकता। इन वजहों में सबसे अहम है ऊर्जा की जरूरत।

चीन की ईंधन आपूर्ति मलाक्का की खाड़ी से होती है। चीन सबसे अधिक ईंधन का आयात पश्चिमी एशिया और अफ्रीका से करता है।

चीनी मीडिया के हवाले से लिखा गया है कि उसके देश का 80 प्रतिशत ईंधन हिन्द महासागर या मलक्का की खाड़ी के रास्ते पहुंचता है।

मलक्का की खाड़ी भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह से बहुत दूर नहीं है जहां भारतीय नौसेना के सबसे बड़े सैन्य अड्डों में एक है।

भारत आसानी से मलक्का की खाड़ी या हिन्द महासागर में चीन को होने वाली ईंधन आपूर्ति रोक सकता है।

तेज औद्योगिक विकास के लिए लालायित चीन ये जोखिम नहीं उठा सकता। इसी डर से चीन ने कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तान की मदद नहीं की थी।

चीन ने धमकी दी है कि अगर डोकलाम विवाद बढ़ता है तो भारत को सिक्किम के अलावा समूची नियंत्रण रेखा पर संघर्ष के लिए तैयार रहना चाहिए।

साफ है कि चीन भारत-पाकिस्तान सीमा पर भी तनाव को बढ़ावा देना चाहता है लेकिन इसमें भी उसके लिए बड़ा जोखिम है।

चीन अरबों डॉलर खर्च करके चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) बना रहा है। इस परियोजना की मौजूदा लागत 62 खरब डॉलर (करीब चार लाख करोड़ रुपये) बतायी जा रही है। अगर भारत और चीन के बीच बड़े पैमाने पर युद्ध होगा तो सीपीईसी की सुरक्षा की भी कोई गारंटी नहीं होगी।

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