
मंगलवार की आधी रात से बुधवार की अहले सुबह तक चंद्रग्रहण लगा रहा। 149 वर्षों के बाद ऐसा दुर्लभ संयोग और विशेष योग बन पाया। विशेष योग भी बना है। 12 जुलाई 1870 को भी गुरु पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण लगा था तब उस समय चंद्रमा शनि और केतु के साथ धनु राशि में स्थित था, जबकि सूर्य राहु के साथ मिथुन राशि में था। मंगलवार देर रात करीब 1:31 बजे चंद्रग्रहण लगा, जोकि सुबह 4:29 बजे तक रहा।
इस दौरान पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच रही है और देश के विभिन्न हिस्सों में लोग करीब तीन घंटे तक इस आंशिक चंद्रग्रहण का गवाह बने।
चंद्रग्रहण से पहले कोलकाता के एमपी बिड़ला तारामंडल के शोध एवं अकादमिक निदेशक देबीप्रसाद दुआरी ने पीटीआई को बताया था कि इस आंशिक चंद्रग्रहण का सबसे स्पष्ट रूप सुबह तीन बजे नजर आएगा जब चंद्रमा का ज्यादातर हिस्सा ढक जाएगा और ऐसा हुआ भी।
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दुआरी के अनुसार, आकाशीय गतिविधियों में दिलचस्पी रखने वालों यह अवसर खास रहा, क्योंकि 2021 तक फिर ऐसा स्पष्ट रूप से दिखने वाला कोई चंद्रग्रहण नहीं लगेगा। उन्होंने बताया कि दक्षिण अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया के सिवाय यह देश के हर हिस्से से नजर आने वाली खगोलीय घटना रही।
चंद्रमा पर बुधवार सुबह 4:29 बजे तक आंशिक ग्रहण लगा रहा। मंगलवार की रात चंद्रमा का केवल एक हिस्सा धरती की छाया से गुजरा, जबकि बुधवार सुबह 3:01 बजे चंद्रमा का 65 प्रतिशत व्यास धरती की छाया के तहत रहा। देश में अगला चंद्रग्रहण 26 मई, 2021 को लगेगा जब यह पूर्ण चंद्रग्रहण होगा।
विज्ञान के अनुसार पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है जबकि चंद्रमा पृथ्वी के चारो ओर घूमती है। पृथ्वी और चंद्रमा घूमते-घूमते एक समय पर ऐसे स्थान पर आ जाते हैं जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा तीनो एक सीध में रहते हैं। जब पृथ्वी धूमते-धूमते सूर्य व चंद्रमा के बीच में आ जाती है। चंद्रमा की इस स्थिति में पृथ्वी की ओट में पूरी तरह छिप जाता है और उस पर सूर्य की रोशनी नहीं पड़ पाती है इसे चंद्र ग्रहण कहते है। वहीं जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाती है और वह सूर्य को ढ़क लेता है तो इसे सूर्य ग्रहण कहते है।
सूतक का समय
चन्द्र ग्रहण होने की स्थिति में ग्रहण प्रारंभ होने से 9 घंटे पहले सूतक होता है। सूतक को अशुभ माना जाता है। 16 जुलाई की शाम को 4:31 शुरू हो जाएगा और ग्रहण के साथ ही खत्म हो जाएगा। शुभ काम सूतक काल से पहले ही कर लेने चाहिए।