‘हॉलीवुड’ फिल्मों का मक्का है : गोविन्द नामदेव

गोविन्द नामदेवमराठी फिल्में हो, हॉलीवुड हो या बॉलीवुड। तीनों में ही इन्होंने अपनी अदायकी का लोहा मनवाया है और हर जगह दमदार प्रदर्शन दिया। जी हाँ हम बात कर रहे हैं एक्टर गोविन्द नामदेव की जो एक कार्यक्रम में शिरकत होने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पहुंचे। अपने अब तक के सफर और आने वाले प्रोजेक्ट्स के बारे में गोविन्द नामदेव ने लाइव टुडे की संवाददाता शालू अवस्थी से खास बातचीत की–

जो हूँ एनएसडी की वजह से हूँ

गोविन्द नामदेव कहते हैं कि मैंने शुरुआत थिएटर से की और लगभग 13 साल थिएटर से जुड़ा रहा। वो कहते हैं कि मैं आज जो भी हूं उसका श्रेय मैं सिर्फ थिएटर को ही देता हूँ। थिएटर में काम करने के बाद इंडस्ट्री में मेरी काफी जान पहचान हो गयी थी और फिल्ममेकर्स मुझे पहचानने लगे थे और धीरे धीरे फिल्मों में काम करने के ऑफर्स आने लगे थे, तो मुझे फिल्मों के लिए ज्यादा भागदौड़ नहीं करना पड़ा। मुझे ख़ुशी इस बात की है आज भी भारत की जनता मुझे पसन्द करती है।

हॉलीवुड में जाने का सपना था

गोविन्द बताते हैं कि हर एक्टर की तरह मेरा भी सपना था कि मैं हॉलीवुड में जाऊं। हर कलाकार चाहता है कि वह इंटरनैशनली दिखे जो हॉलीवुड में ही सम्भव हो पाता है क्योंकि हॉलीवुड तो फिल्मों का मक्का है। इसलिए जब मुझे हॉलीवुड से ऑफर आया तो मैंने तुरन्त हाँ कर दी, ये फिल्म फ्रीडम स्ट्रगल के अंतिम पोर्शन पर आधारित है, फिल्म का नाम सोलर एक्लिप्स है जो हॉलीवुड बॉलीवुड कंबिनेशन है, इसमें मैंने मोरारजी देसाई का किरदार निभाया है। मुझे इस फिल्म की रिलीज का बेहद इन्तजार है, ये जनवरी में रिलीज होगी।

स्वतन्त्रता सेनानी के रोल करना चुनौतीपूर्ण

वो कहते हैं कि स्वतन्त्रता सेनानी का किरदार निभाना बहुत मुश्किल होता है; हालाँकि ऐसे किरदार निभाने में गर्व भी बहुत होता है। ऐसे किरदार करना चुनौतीपूर्ण इसलिए होता है क्योंकि ये रियल किरदार होते हैं, इसमें ज्यादा छेड़छाड़ नहीं कर सकते। इसमें आपको काफी रिसर्च करना पड़ता है, उनके जैसी आवाज, उनकी स्पीच को कॉपी करना पड़ता है। दिक्कत ये आती है कि इनके स्पीच ढूंढने में बहुत मशक्कत करनी पड़ती है। वो कहते हैं कि हाल ही में मेरी अन्ना हजारे फिल्म रिलीज हुई है जिसमें मैंने एक बार फिर से निगेटिव किरदार निभाया है।

लखनऊ का सौंदर्यीकरण होना जरूरी था

लखनऊ के बारे में उनका कहना है कि मैं 1985 में लखनऊ आया था, तबसे अब तक यहाँ बहुत बदलाव हुआ है और यहाँ के सौंदर्यीकरण से लखनऊ और खूबसूरत हो गया है। लखनऊ की पहचान अंतरराष्ट्रीय है और इसीलिए इसका सौंदर्यीकरण की जरूरत भी थी। वो कहते हैं कि यहाँ भीड़ भाड़ बहुत है, लखनऊ में और सुधर की जरूरत है ताकि जो यहाँ एक बार आये वो बार बार आने की चाहत रखे।

LIVE TV