कैसे पड़ा भगवान शिव का नाम भीमशंकर

82_571680a4d7ff4एजेंसी/ शास्त्रों के अनुसार कुंभकर्ण का एक भीम नामक पुत्र था. ये पुत्र कुंभकर्ण और कर्कटी नाम की एक महिला का था जो कुंभकर्ण को पर्वत पर मिली थी. उसे देखकर कुंभकर्ण उस पर मोहित हो गया और कुंभकर्ण नें कर्कटी से विवाह कर लिया. विवाह के बाद कुंभकर्ण लंका लौट आया, लेकिन कर्कटी पर्वत पर ही रही. कुछ समय बाद कर्कटी को एक पुत्र हुआ जिसका नाम भीम था.  जब श्रीराम ने कुंभकर्ण का वध कर दिया तो कर्कटी ने फैसला किया की वो अपने पुत्र को देवताओं के छल से हमेशा दूर रखेगी.

बड़े होने पर जब भीम को अपने पिता की मृत्यु का कारण पता चला तो उसने देवताओं से अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने का सोचा. इसके लिए भीम ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करके उनसे बहुत ताकतवर होने का वरदान प्राप्त कर लिया. कामरूपेश्वप नाम के राजा भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे. एक दिन भीम ने राजा को शिवलिंग की पूजा करते हुए देख लिया तो भीम ने राजा से कहा की वो भगवान शिव की पूजा छोड़ उसकी पूजा करे. राजा के बात न मानने पर भीम ने उन्हें बंदी बना लिया. राजा ने बंदी होने पर भी कारागार में ही शिवलिंग बनाया और उनकी पूजा करने लगा.  जब भीम ने यह देखा तो उसने अपनी तलवार से राजा के बनाए शिवलिंग को तोड़ने का प्रयास किया. उसके इतना करते ही शिवलिंग में से स्वयं भगवान शिव प्रकट हो गए. भगवान शिव और भीम के बीच घोर युद्ध हुआ, जिसमें भीम की मृत्यु हो गई. फिर देवताओं के द्वारा भगवान शिव से प्रार्थना की गई की शिव हमेशा के लिए उसी स्थान में विराजित हो जाये. देवताओं के कहने पर शिव लिंग के रूप में उसी स्थान पर स्थापित हो गए. इस स्थान पर भीम से युद्ध करने की वजह से ही इस ज्योतिर्लिंग को भीमशंकर नाम से पुकारा गया.

ऐसा बनाया गया हैं मंदिर 
बहुत ही प्राचीन है भीमशंकर मंदिर, लेकिन यहां के कुछ भाग का निर्माण नवनिर्मित भी है. इस मंदिर के शिखर का निर्माण में कई प्रकार के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया हैं. यह मंदिर को बनाने में नागर शैली का प्रयोग हुआ है. मंदिर में कहीं-कहीं इंडो-आर्यन शैली भी देखने को मिलती है.

माता पार्वती का कमलजा नामक मंदिर भी है यहां
भीमशंकर मंदिर की स्थापना से पहले ही शिखर पर देवी पार्वती का एक मंदिर है. इसे कमलजा मंदिर के नाम से जाना जाता हैं. शास्त्रों के अनुसार इसी स्थान पर देवी ने राक्षस त्रिपुरासुर से युद्ध में भगवान शिव की सहायता की थी. तथा युद्ध के बाद भगवान ब्रह्मा ने देवी पार्वती की कमलों से पूजा की थी.

कई कुंड स्थित है मंदिर के पास 
यहां के मुख्य मंदिर के पास कई कुंड भी स्थित हैं जिनमे मोक्ष कुंड, सर्वतीर्थ कुंड, ज्ञान कुंड, और कुषारण्य कुंड विशेष हैं.. इनमें से मोक्ष नामक कुंड को महर्षि कौशिक से जुड़ा हुआ माना जाता है और कुशारण्य कुंड से भीम नदी का उद्गम हुआ हैं.

कब जाएं
भीमशंकर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए साल का कोई भी समय चुना जा सकता है. किन्तु यहाँ महाशिवरात्रि पर्व में जाना ज्यादा शुभ हैं यहाँ शिवरात्रि के समय विशेष मेला लगता है.

भीमशंकर ज्योतिर्लिंग के आस-पास देखने लायक कई स्थान हैं
1. हनुमान तालाब- भीमशंकर मंदिर से कुछ दूरी पर हनुमान तालाब नामक स्थान है.
2. गुप्त भीमशंकर- गुप्त भीमशंकर मंदिर, भीमशंकर मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित है.
3. कमलजा देवी- भीमशंकर मंदिर से पहले देवी पार्वती का कमलजा नामक एक मंदिर है.

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