केशव मौर्या की रणनीति का असर

keउत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य की रणनीति ने चंद दिनों में ही प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया है। उन्होंने पार्टी के भीतर और विरोधी दलों से संबंधित अलग-अलग संदेश दिये हैं। पार्टी में जहां केवल चाटुकारिता से आगे बढ़ने वालों के सपनों पर विराम लगा, वही सपा और बसपा पर एक साथ हमला बोलकर मौर्या ने अपनी भावी दिशा स्पष्ट कर दी है। वस्तुतः केशव प्रसाद मौर्या ने शीर्ष नेतृत्व के मनोभाव व निर्देशों को बखूबी समझा है। उनके प्रारम्भिक कदमों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के राजनीतिक अन्दाज की स्पष्ट छाप है। मोदी और शाह दोनों को अपने लक्ष्य के प्रति कभी असमंजस नहीं रहा। वह अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझते रहे हैं। यही कारण है कि गुजरात में उन्होंने सुशासन की स्थापना के साथ ही उसके कांग्रेस मुक्त रखने में सफलता प्राप्त की थी। पार्टी के भीतर चाटुकारिता करने वालों को नसीहत दी। अपने दायित्वों का ईमानदारी और मेहनत से निर्वाह करने वालों को वरीयता मिली। उस समय गुजरात में माना जाता था कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह उन कार्यकर्ताओं को अधिक महत्व देते थे, जो उन्हें अपना चेहरा कम दिखाते थे। वह उन कार्यकर्ताओं के संबंध में पूरी जानकारी रखते थे, जो बिना समय बर्बाद किए जनता के बीच कार्य करते थे। अनावश्यक चेहरा दिखाने वालों के विषय में माना जाता था कि वह समय बर्बाद कर रहे हैं, तथा अपनी जिम्मेदारियों के प्रति गंभीर नहीं है। मोदी और शाह की इस रणनीति ने भाजपा को गुजरात में नम्बर वन की पार्टी बनाए रखा। जब इन नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदारी मिली, उस समय कांग्रेस के नेतृत्व में केन्द्र की सरकार चल रही थी। मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया। लक्ष्य निर्धारित किया। उसमें बड़ी सफलता मिली।यह कहना गलत नहीं होगा कि जिम्मेदारियों के प्रति पूरी सजगता की प्रवृत्ति के कारण केशव प्रसाद मौर्या पर पार्टी हाईकमान ने विश्वास किया। प्रदेश अध्यक्ष पद हेतु अनेक नाम चर्चा में थे। लेकिन इनके बीच केशव प्रसाद का नाम किसी ने नहीं सुना था। इसका कारण था कि वह इलाहाबाद और फूलपुर में अपनी जिम्मेदारियों के प्रति लगातार सक्रिय थे। लोकसभा से लेकर जमीनी स्तर तक वह अपने दायित्वों को अंजाम दे रहे थे। बताया जाता है कि चुनावी राजनीति में आने के पहले वह संगठन के कार्यों में सक्रिय थे। दिल्ली में उनके संगठन कार्यों को लोग आज भी याद करते हैं। केशव प्रसाद मौर्या इलाहाबाद में प्रतियोगी छात्रों की न्यायपूर्ण मांगों को सदैव शिद्दत से उठाते रहे। उनके साथ धरना-प्रदर्शन में शामिल रहे। उनकी इस कार्यशैली को ही हाईकमान ने पसन्द किया।

इसी के अनुरूप मौर्या ने प्रारम्भ में ही कार्य संस्कृति को महत्व दिया। उन्होंने अपने को कृष्ण रूप में दिखाने वाले पोस्टर की निन्दा की। विरोधी इसको मुद्दा बना रहे थे। लेकिन मौर्या ने बड़ी होशियारी से उनकी हवा निकाल दी। उन्होंने कहा कि मैं साधारण कार्यकर्ता हूं। यह भाजपा में ही संभव है कि किसी साधारण कार्यकर्ता को बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। व्यक्ति और परिवार आधारित पार्टियों में किसी कार्यकर्ता को ऐसा महत्व नहीं मिलता। मौर्या ने ईश्वर रूप में दिखाने वाले कार्यकर्ता को नसीहत दी। यह घृणित किस्म की चाटुकारिता थी। हिन्दू धर्म की उदारता का, इस प्रकार निहित स्वार्थ के लिए फायदा उठाना वैसे भी घोर निन्दनीय था। ऐसा भोंड़ा प्रदर्शन किसी अन्य मजहब में संभव नहीं। वस्तुतः इस प्रवृत्ति के कार्यकर्ता किसी भी पार्टी के लिए समस्या पेश करते हैं। मौर्या ने इस प्रवृत्ति पर लगाम कसी है। जिस प्रकार नरेन्द्र मोदी और अमित शाह कार्य को महत्व देते हैं, उसी प्रकार केशव प्रसाद मौर्या ने भी पार्टी कार्यकर्ताओं को अपरोक्ष रूप से संदेश दे दिया है।

उत्तर प्रदेश में प्रभारी के रूप में अमित शाह ने सपा-बसपा मुक्त भारत का नारा दिया था। यह उत्तर प्रदेश में उनका लक्ष्य निर्धारण था। यहां कांग्रेस मुकाबले में नहीं थी। इसलिए उसका नाम लेने की आवश्यकता नहीं समझी गयी। जबकि उस समय केन्द्र में उसकी सरकार थी। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस मुक्त देश का नारा दिया गया। इस प्रकार लोकसभा चुनाव में मोदी राष्ट्रीय दायित्व और शाह बतौर प्रभारी उत्तर प्रदेश में अपने लक्ष्य निर्धारित करके उस दिशा में बढ़ रहे थे। केशव प्रसाद मौर्या ने भी उसी प्रकार लक्ष्य निर्धारित किये हैं। इसी के साथ विपक्ष की आक्रामक रणनीति भी तैयार की है। सपा-बसपा मुक्त उत्तर प्रदेश का उन्होंने नारा दिया है। इसका मंसूबा बनाया है। पार्टी को एक स्पष्ट लक्ष्य और दिशा दी है।

केशव प्रसाद मौर्या ने शुरुआत में विपक्षी हमलों का जिस प्रकार जवाब दिया, उससे उनकी रणनीतिक कुशलता देखने को मिली। उन्होंने ऐसे सभी मुद्दों को सामान्य चर्चा से ही ध्वस्त कर दिया। विरोधियों ने उनके खिलाफ दर्ज मुकदमों को मुद्दा बनाया। मौर्या ने कहा कि जनता के पक्ष में संघर्ष करते हुए ग्यारह क्या वह ग्यारह हजार मुकदमों के लिए तैयार हैं। इसके बाद उनके खिलाफ उठे मुद्दे का महत्व नहीं रह गया। उनके खिलाफ बनारस के पोस्टर, कानपुर में सिक्कों से तौलने को मुद्दा बनाया गया। दोनों पर मौर्या ने अपने कार्यकर्ताओं को अति उत्साह से बचने की हिदायत दी। इसका असर हुआ और यह मुद्दा भी विपक्षियों के हाथ से निकल गया। सपा, बसपा ने राम मंदिर मुद्दे पर मौर्या को घेरने का प्रयास किया। मौर्या के जवाब से यह मुद्दा सपा-बसपा के लिए बैक फायर साबित हुआ, इतना कि यह दल कोई प्रतिक्रिया भी नहीं दे सके। मौर्या का कहना था कि राम मंदिर उनके लिए आस्था का विषय है।

विरोधियों को इतनी परेशानी है तो वह इसे मुद्दा बनाकर देख लें, भाजपा उनका समर्थन करेगी। भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव सबका साथ सबका विकास मुद्दे पर लड़ेगी। यह मुद्दा भाजपा की केन्द्रीय नीति के अनुरूप है। इसी पर उत्तर प्रदेश में अमल किया जाएगा। जाहिर है कि मौर्या ने जो बयान दिया, उसका सपा-बसपा के पास कोई जवाब नहीं था। इस प्रकार यह मुद्दा भी उनके हाथ से निकल गया।

यह भी उल्लेखनीय है कि केशव प्रसाद मौर्य सपा-बसपा मुक्त प्रदेश के आह्वान के वास्तविक हकदार हैं। क्योंकि उनकी इन पार्टियों के नेताओं से कभी किसी प्रकार की सियासी हमदर्दी नहीं रही। वह भाजपा-बसपा गठबंधन सरकार मंे शामिल नहीं रहे। लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के प्रयासों से स्थिति बदली थी, अन्यथा भाजपा की यह छवि बन चुकी थी कि वह अवसर मिलने पर बसपा के साथ सरकार बना लेगी। बसपा के साथ गठबंधन सरकार में शामिल नेताओं की एक सीमा थी। मायावती के विरोध में उनकी सरकार में शामिल रहने के समय की छवि आड़े आ जाती थी। वहीं ऐसे प्रदेश अध्यक्ष हुए जिन पर सपा सरकार के दौरान लाभ उठाने के आरोप थे। किसी ने उनसे विशेष सुरक्षा ली, कोई भाजपा कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न की शिकायत लेकर पहुंचा, लेकिन सपा प्रमुख की नाश्ते की मेज पर उनका पिघलना चर्चा में आ गया। भाजपा को इन सब बातों का भारी नुकसान हो गया। वह मुकाबले से बाहर हो गयी थी।

मौर्या को कमान सौंपने के साथ ही पार्टी की यह कमजोरी दूर हो गयी। पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ ही आज जनता को लगा कि वह सपा-बसपा से उचित मुकाबला कर सकते हैं। इसलिए मौर्या जब सपा-बसपा मुक्त प्रदेश का आह्वान करते हैं, तो उस पर लोग विश्वास करते हैं। इसका असर भी दिखने लगा है। कुछ दिन पहले ही बसपा की बढ़त दिखाई जा रही थी, अब ऐसा नहीं है। सपा पर भी प्रभाव हुआ। आकस्मिक फैसले के तहत शिवपाल सिंह यादव को प्रदेश प्रभारी बना दिया गया। जाहिर है मौर्या के प्रारम्भिक कदमों ने असर दिखाना शुरू कर दिया है। (हिफी)

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