कुरान से निकला था रमजान के पाक महीने में ‘ईश्वरीय प्रकाश’

रमजान के महीने को इस्लाम में सबसे पाक माना गया है। अरबी भाषा में रोजे को ‘सौम’ भी कहा जाता है। सौम का मतलब है रुकना य संयम रखना। जो इसके अर्थ को समझ लेता है वो खुद ही अपने अंदर की बुराइयों को नाश कर लेता है।

रमजान

रोजा तब ही सफल होगा जब आप अपने मन को अपने नियंत्रण में रखेंगे। बाहर की सुख,सुविधा को त्याग कर रखा गया रोजा हमेशा सार्थक सिद्ध होता है। अगर हमारी इंद्रियां हमारे कंट्रोल में न हो तो हमारा मन भटकता रहता है, अशांत रहता है, संयम के अभाव में हमारी सोचने और समझने की शक्ति कमजोर हो जाती है। हम हर काम के गलत निर्णय लेने लगते हैं।

रमजान शब्द रम्ज से निकला है। इसका मतलब है- छोटे पत्थरों पर पड़ने वाली सूर्य की तेज गर्मी। जिस तरह सूरज की तेज धूप पत्थरों को तपा देती है, उसी तरह इस महीने पालन किए जाने वाले नियम व अनुशासन मन को तपा देते हैं। भारतीय परंपरा में यही ‘तप’ कहलाता है – यानी अपने अंतस को तपाना। सम्यक रूप से किया यह तप उस प्रत्येक वृत्ति का नाश कर देता है जो अंत:करण को दूषित करती है।

कहते हैं कि रमजान के महीने में किसी को भी गलत नहीं बोलना चाहिए, गलत नहीं देखना चाहिए, किसी के खिलाफ कुछ गलत नहीं सुनना चाहिए, अपने मन से गलत विचारों को निकाल देना चाहिए। ये करने से ही जो प्रकाश रमजान के महीने में कुरान से निकला था उसका फल आप तक पहुंचेगा। वरना कुरान से निकला प्रकाश धरती पर तो आता है लेकिन मानव तक पहुंच नहीं पाता है। इस ईश्वरीय प्रकाश को पाने के लिए संयम बनाए रहना बहुत जरूरी है।

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