कुंभ, अर्द्धकुम्भ और सिंहस्थ कुंभ के बीच का अंतर जान आप हो जाएंगे हैरान…

इसी महीने की 15 तारीख से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कुंभ मेले की शुरुआत होने वाली है। कुंभ के बारे में आपलोग हर तीन साल के बाद सुनते रहते होंगे और ये अलग-अलग जगहों पर भी होता है।

वैसे तो भारत में कई तरह के कुंभ होते हैं जिनके अलग अलग नाम होते हैं। बता दें कि अलग-अलग कुंभ मेलों का अपना अलग महत्व होता है ऐसे में आज हम आपको इनके नाम और इनके बीच के अंतर के बारे में बताने जा रहे हैं।

कुंभ

कुंभ: दरअसल कुंभ का मतलब कलश होता है और इस मेले का नाम कुंभ इसलिए रखा गया है क्योंकि इस पर्व का संबंध समुद्र मंथन के बाद निकले अमृत कलश से जुड़ा है।

बता दें देवताओं और असुरों की लड़ाई के दौरान जब अमृत कलश से कुछ बूंदें धरती की तीन नदियों पर गिरीं तबसे ही उस उन स्थानों पर कुंभ का आयोजन किया जाता है।

बता दें कि देवताओं और असुरों की लड़ाई में अमृत की बूँदें गंगा, गोदावरी और क्षिप्रा नदी में गिरी थीं। कुंभ हर तीन सलों पर होता है।

अर्धकुंभ: दो कुंभ पर्वों के बीच 6 सालों का अंतराल होता है जिसमें अर्धकुंभ का आयोजन होता है। कुंभ पर्व हर 3 साल के अंतराल पर हरिद्वार से शुरू होता है। हरिद्वार के बाद कुंभ पर्व प्रयाग नासिक और उज्जैन में मनाया जाता है।

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प्रयाग और हरिद्वार के कुंभ के बीच में प्रयाग और हरिद्वार के कुंभ और प्रयाग और नासिक में मनाए जाने वाले कुंभ पर्व के बीच में 3 सालों का अंतर होता है।

सिंहस्थ: सिंहस्थ कुंभ का ये नाम रखने का मतलब सिंह राशि से है, दरअसल जब सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होता है तो सिंहस्थ कुंभ का आयोजन किया जाता है। इस कुंभ का आयोजन मध्यप्रदेश के उज्जैन में किया जाता है।

इसके अलावा जब सिंह राशि में बृहस्पति का प्रवेश होता है तब कुंभ पर्व का आयोजन गोदावरी के तट पर नासिक में होता है। इसे महाकुंभ भी कहते हैं, क्योंकि यह योग 12 वर्ष बाद ही आता है।

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