हजारों किसानों की चेतावनी: मांगें माने सरकार, वरना तख्ता पलट देंगे

नई दिल्ली। देशभर के किसान अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाने एक बार फिर हजारों मील का सफर तय कर राष्ट्रीय राजधानी में आकर मोर्चा संभाले हुए हैं। चार बार आकर गच्चा खा चुके किसान अब धैर्य खोने लगे हैं। वे दो टूक कहने लगे हैं- “अगर अब भी सरकार नहीं जागी तो 2019 के चुनाव में हम अपनी ताकत का अहसास करा देंगे।”

किसान

किसानों का यह ‘मुक्ति मोर्चा’ पिछले कुछ किसान आंदोलनों से थोड़ा अलग है। यही वजह है कि राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, सीताराम येचुरी से लेकर मेधा पाटकर, जिग्नेश मेवाणी तक कई विपक्ष के जानेमाने चेहरे यहां किसानों को समर्थन देने पहुंचे।

किसान नेता और सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर ने आईएएनएस को फोन पर बताया, “2019 के चुनाव से पहले किसानों का यह आंदोलन बहुत अहम है और अगर सरकार इसे पिछले कुछ किसान आंदोलनों की तरह हल्के में लेने की सोच रही है तो यह उसकी सबसे बड़ी भूल होगी, क्योंकि इस बार सीधा सरकार का तख्तापलट होगा।”

आमतौर पर इस तरह के आंदोलनों के प्रायोजित होने की अफवाहों पर आशीष टका सा जवाब देकर कहते हैं, “हमेशा किसान आंदोलनों को ही प्रायोजित कहा जाता है, मगर किसान सिर्फ अन्नदाता नहीं हैं, किसानों में तख्तापलट करने से लेकर सरकार की ईंट से ईंट बजाने तक की हिम्मत होती है। मैं बुंदेलखंड से हूं, इस वक्त खेती का जो मौसम है, जिस तरह बुवाई छोड़कर दिल्ली में डेरा जमाए हैं, उससे समझा जा सकता है कि किसानों की हालत कितनी दयनीय है और अब वह अपना हक मांगने से पीछे नहीं हटने वाले।”

बुंदेलखंड के भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष शिवनारायण सिंह कहते हैं, “राहुल गांधी से लेकर अरविंद केजरीवाल, सीताराम येचुरी, योगेंद्र यादव, मेधा पाटकर, जिग्नेश मेवाणी यहां मौजूद हैं, ये संकेत है कि केंद्र सरकार हर बार की तरह किसानों को हल्के में नहीं ले।”

आशीष किसानों की आवाज हुक्मरान और जनता तक पहुंचाने में मीडिया की कोताही पर बरसते हुए कहते हैं, “किसानों के मुद्दों को मीडिया कितनी तवज्जो देता है, यह अखबारों से पता चलता है। कल ही के एक राष्ट्रीय दैनिक अखबार में किसान मुक्ति मोर्चा की खबर को कोने में एक कॉलम में जगह दी गई थी, जबकि दीपिका, रणवीर की शादी को इससे ज्यादा कवरेज मिलती है।”

वह कहते हैं, “अगर ये सरकार किसानों की नहीं सुनेगी तो बेशक हाथ-पैर जोड़कर अगली बार भी सत्ता पा ले, लेकिन बहुमत तो शायद ही मिल पाए। सरकार हर बार किसान बीमा योजना की दुहाई देकर हमें बहलाने की कोशिश करती है, लेकिन इसका फायदा किसानों के बजाय बीमा कंपनियों को मिल रहा है। किसान मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार पी.साईंनाथ ने मुझसे कहा था कि यह बहुत बड़ा घोटाला है।”

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देश में अब किसान आंदोलन इतने सफल क्यों नहीं होते? इसका कारण बताते हुए आशीष कहते हैं, “किसान अब पूरी तरह से वोटबैंक बन गया है। सभी पार्टियां एक ही थाली के चट्टे-बट्ट हैं, किसी को किसानों की चिंता नहीं है, सब अपनी रोटियां सेंकने में लगे हैं। ये जब सरकार में नहीं होंगे तो दूसरे पर आरोप लगाएंगे और जब खुद सरकार में होंगे तो चुप्पी साधकर बैठ जाएंगे।”

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किसानों की मांग है कि कर्जमाफी के साथ एक कठोर नीति भी बननी चाहिए। किसानों के कर्ज और उपज की लागत को लेकर पेश दो प्राइवेट मेंबर्स बिल संसद में पारित हों।

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