काफी इंतजार के बाद आई इंसाफ की सुबह,तख्ते पर चढ़ते ही गिड़गिडाएं दरिंदे

शुक्रवार तड़के 3:30 बजे तिहाड़ जेल में एक पुलिसकर्मी ने मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाया। उसने तैयार हो जाने का कहा। कुछ ही देर में बाहर से आवाजें आने लगीं। करीब 4:30 बजे कई अफसर मेरे पास आए। हालचाल पूछा। डॉक्टर ने मेरा चेकअप किया। उसके बाद मैं फांसीघर पहुंचा तो जेल के अधिकारी एक निश्चित दूरी पर खड़े थे।पवन जल्लाद

पहले दो दरिंदों को एक साथ लाया गया। उनके चेहरे कपड़े से ढके थे। दोनों को दो अलग-अलग तख्तों पर खड़ा किया गया। उनके हाथ बंधे थे। फांसी का समय हुआ तो एक अफसर ने मुझे इशारा किया। मैं फांसी देने चला तो उनमें से एक गिड़गिड़ाने लगा, लेकिन मैंने अपना कर्म निभाया। दोनों को फांसी के फंदे पर लटका दिया। डॉक्टरों के चेक करने के बाद उन्हें फंदे से उतारा गया। उसके बाद दो अन्य दरिंदों को भी फांसी पर लटकाया।

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निर्भया के साथ दरिंदगी करने वाले चारों दोषियों को फांसी पर लटकाने के बाद शुक्रवार रात मेरठ लौटे पवन जल्लाद ने यह बातें बताईं। पवन कांशीराम कॉलोनी स्थित अपने घर पहुंचे तो उनसे मिलने वालों का तांता लग गया। हर कोई उनसे जानने के लिए उत्सुक था कि उन्होंने दरिंदों को कैसे फांसी दी।

17 को तिहाड़ जेल पहुंचे थे पवन
पवन ने बताया कि 17 मार्च को मेरठ से दिल्ली की तिहाड़ जेल ले जाया गया। था। वहां जेल अधिकारियों ने फांसीघर दिखाया। रहने को अलग कमरा दिया। कहा कि किसी भी सामान की जरूरत पड़े तो कभी भी मांग लेना। 18 और 19 मार्च को वहां खामोशी सी छाई थी। आते जाते कर्मचारी और अफसर यही कहते थे कि फांसी की तारीख 20 मार्च की सुबह है। 19 मार्च की शाम से जेल में सब कर्मचारी और अधिकारी चुपचाप नजर आने लगे।

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