
जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) ने मंगलवार को पुणे पुलिस की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें मई 2024 में हुए पुणे पोर्श हादसे के नाबालिग आरोपी को वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने की मांग की गई थी।

यह निर्णय सुनिश्चित करता है कि 17 वर्ष और 8 माह की आयु का यह नाबालिग, जिसे कानून में ‘चाइल्ड इन कॉन्फ्लिक्ट विद लॉ’ (CCL) कहा गया है, जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) एक्ट, 2015 के तहत नाबालिग के रूप में मुकदमे का सामना करेगा।
19 मई 2024 को पुणे के कल्याणी नगर क्षेत्र में 17 वर्षीय नाबालिग ने कथित तौर पर नशे की हालत में तेज रफ्तार पोर्श कार चलाते हुए दो आईटी पेशेवरों, अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्टा, को टक्कर मार दी थी, जिससे उनकी मौके पर ही मृत्यु हो गई थी। दोनों मध्य प्रदेश के रहने वाले 24 वर्षीय इंजीनियर थे और मोटरसाइकिल पर सवार थे। पुलिस ने तर्क दिया था कि यह एक “जघन्य अपराध” था, क्योंकि न केवल दो लोगों की जान गई, बल्कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ की कोशिशें भी की गईं। जांच में पता चला कि नाबालिग ने हादसे से पहले दो पब में शराब पी थी, और उसकी मां ने सबूतों को छिपाने के लिए उसके ब्लड सैंपल को अपने सैंपल से बदल दिया था।
JJB का निर्णय और कानूनी प्रक्रिया
पुणे पुलिस ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 15 के तहत नाबालिग को वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने की मांग की थी, जिसमें 16 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों को जघन्य अपराधों के लिए वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने का प्रावधान है। इसके लिए JJB को नाबालिग की मानसिक और शारीरिक क्षमता, अपराध के परिणामों को समझने की योग्यता, और अपराध की परिस्थितियों का प्रारंभिक आकलन करना होता है। बोर्ड ने मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन, डी-एडिक्शन रिपोर्ट्स, और अन्य विशेषज्ञों की राय के आधार पर यह फैसला लिया कि नाबालिग को वयस्क के रूप में नहीं, बल्कि जुवेनाइल प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाया जाएगा।
प्रारंभिक जमानत और विवाद
हादसे के कुछ घंटों बाद, 19 मई 2024 को JJB ने नाबालिग को जमानत दे दी थी, जिसमें उसे 300 शब्दों का सड़क सुरक्षा पर निबंध लिखने, येरवडा पुलिस के साथ 15 दिन काम करने, और शराब की लत के लिए काउंसलिंग जैसी शर्तें शामिल थीं। इस “हल्की” जमानत ने देशभर में आक्रोश पैदा किया, जिसके बाद पुलिस ने जमानत रद्द करने और नाबालिग को वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने की अपील की। 22 मई 2024 को JJB ने जमानत रद्द कर दी और नाबालिग को 5 जून 2024 तक येरवडा के नेहरू उद्योग केंद्र ऑब्जर्वेशन होम में भेज दिया।
बॉम्बे हाई कोर्ट का हस्तक्षेप
25 जून 2024 को, बॉम्बे हाई कोर्ट ने नाबालिग की चाची की याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे ऑब्जर्वेशन होम से तत्काल रिहा करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि JJB का उसे हिरासत में भेजने का आदेश “गैरकानूनी” था और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के उद्देश्यों का पूरी तरह पालन किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि नाबालिग को पुनर्वास (रेहैबिलिटेशन) की प्रक्रिया से गुजरना होगा, जिसमें मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग शामिल है।
सबूतों के साथ छेड़छाड़ का मामला
जांच में खुलासा हुआ कि नाबालिग के माता-पिता और ससून अस्पताल के कर्मचारियों ने उसके ब्लड सैंपल को उसकी मां के सैंपल से बदलने की कोशिश की थी ताकि नशे में गाड़ी चलाने का सबूत मिटाया जा सके। इस मामले में नाबालिग की मां, शिवानी अग्रवाल, को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन अप्रैल 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत दे दी। नाबालिग के पिता, विशाल अग्रवाल, पर भी जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 75 (बच्चे की जानबूझकर उपेक्षा) और 77 (नाबालिग को शराब उपलब्ध कराना) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
वर्तमान स्थिति और सामाजिक बहस
JJB के इस फैसले ने भारत में जुवेनाइल जस्टिस कानूनों पर फिर से बहस छेड़ दी है। पीड़ितों के परिवार और जनता ने इसे “हल्का” निर्णय बताते हुए कड़ी सजा की मांग की है, जबकि बचाव पक्ष का तर्क है कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का प्राथमिक उद्देश्य पुनर्वास है, न कि दंड। नाबालिग को अब ऑब्जर्वेशन होम में रखा गया है, जहां उसका मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन और काउंसलिंग जारी है। पुलिस ने उसके खिलाफ IPC की धारा 304 (गैर-इरादतन हत्या), 304A (लापरवाही से मृत्यु), 279 (लापरवाह ड्राइविंग), और मोटर व्हीकल एक्ट की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है।