कांग्रेस को पंजाब में उठाना पड़ा इतना नुकसान, अब कौन और कैसे करेगा इसकी भरपाई
लोकसभा चुनाव 2019 जीतने के बाद कांग्रेस को पंजाब में एक बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। ऐसे में पार्टी के लिए टेंशन की बात है कि इसकी भरपाई कैसे होगी। दरअसल, कांग्रेस ने एक बार फिर अपना परंपरागत दलित वोट बैंक गवां दिया है। लोकसभा चुनाव में दोआबा के दलित वोट बसपा को गए, जो पार्टी नेतृत्व के लिए चिंता की बात हो सकती है। एक दिन पहले दिल्ली में हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में भी यह मुद्दा उठा था कि पार्टी को सबसे पहले अपने परंपरागत वोट बैंकों पर फोकस करना चाहिए।
पंजाब में दलित वोट बैंक केसहारे ही कांग्रेस सत्ता में आती है। 2007 में दलितों की नाराजगी के चलते कांग्रेस दस साल सत्ता से दूर रही। 2017 में दोआबा का दलित वोट बैंक पार्टी के पास वापस लौटा तो कांग्रेस की भी सत्ता में वापसी हुई। लेकिन इस लोकसभा चुनाव में वे वोट एक बार फिर कांग्रेस से खिसक कर बसपा को चले गए। अगर ये वोट नहीं लौटे तो 2022 की राह पार्टी केलिए आसान नहीं है। कांग्रेस के साथ समस्या यह है कि वह नई दलित लीडरशिप विकसित नहीं कर सकी है।
पहले दोआबा में चौधरी जगजीत जैसे नेता केकारण दलित वोट पार्टी के साथ जुड़े रहते थे। लेकिन अब वैसा कद्दावर नेता नहीं है। जबकि, शिरोमणि अकाली दल में कई दलित नेता है। शिअद ने पवन टीनू जैसे नए चेहरों को भी विकसित किया है। लेकिन कांग्रेस अब तक ऐसा नहीं कर सकी है। कांग्रेस के पास सुखविंदर डैनी, डॉ. राजकुमार चब्बेवाल, सुशील रिंकू जैसे युवा दलित नेता हैं। पर पार्टी ने इन्हें बड़ी जिम्मेदारी नहीं सौंपी है। पहले दलित नेताओं को कांग्रेस ने हमेशा बड़ी जिम्मेदारियां दी थीं।
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मोहिंदर सिंह केपी और शमशेर दूलो को प्रदेश प्रधान बनाया। वहीं, चौधरी जगजीत सिंह का रुतबा कैप्टन अमरिंदर सिंह की कैबिनेट में नंबर दो का था। इस बार कांग्रेस ने दलितों को बनता प्रतिनिधित्व नहीं दिया है। साधू सिंह धरमसोत को मंत्री बनाया है, पर पंजाब में उनका खास प्रभाव नहीं है। अगर कांग्रेस 2022 का चुनाव जीतना चाहती है तो उसे दोआबा में दलित नेतृत्व विकसित करना होगा।