कांग्रेस को नहीं बचा पाया प्रियंका का ग्लैमर, फेल हो गया राहुल का सियासी आकलन

कांग्रेस की एकला चलो की रणनीति चारों खाने चित हो गई। कांग्रेस के लिए तुरुप का पत्ता मानी जाने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा के जरिए यूपी में जीत का भरोसे से अतिउत्साहित कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी है।
21 राज्यों में कांग्रेस पूरी तरह साफ हो गई है। मोदी-शाह की जोड़ी को हलके में लेना करीब 135 वर्ष पुरानी पार्टी को बेहद भारी पड़ा है। एक बार फिर कांग्रेस के समक्ष लोकसभा में विपक्षी पार्टी का दर्जा मिलना मुश्किल हो गया है। कांग्रेस की सामने आगे कुआं पीछे खाई वाली स्थिति हो गई है।
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दरअसल बीते चुनाव में सबसे करारी हाल झेलने के बावजूद कांग्रेस मोदी-शाह के रूप में सामने आई चुनौती का सही सियासी आकलन नहीं कर पाई।

भाजपा सबसे बड़ी जीत हासिल होने के बावजूद जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करने में जुटी रही तो इतिहास से उम्मीद लगाए बैठी रही। पार्टी इस भ्रम में रही कि हमेशा की तरह विपक्ष के बाद घूम फिर कर सत्ता उसके पास ही आएगी।
यूपी जैसे बड़े राज्य में गठबंधन नहीं हुआ और जहां हुआ भी वह भी कांग्रेस की नैय्या पार नहीं कर सकी। बीते साल मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता हाथ में आने के बाद कांग्रेस को लगा कि वह पुराने रंग में आ गई है। लेकिन यह उसका भ्रम ही साबित हुआ।

प्रियंका के लिए जुटी भीड़  पर वोट में नहीं हुई तब्दील 

इस चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन को देखकर कहा जा सकता है कि वह वोटकटवा पार्टी बन गई है। बीच चुनाव में प्रियंका का वोटकटवा वाला बयान भी अब यही साबित कर रहा है। रोड शो और सभाओं में प्रियंका के लिए भीड़ तो जुटती थी लेकिन वह वोट में तब्दील नहीं हो सकी। वह यूपी में भी खूब घूमीं और दूसरे राज्यों में भी गईं लेकिन जिन 44 लोकसभा सीटों पर उन्होंने भीड़ जुटाई, उनमें से छह सीटें ही वोट में बदलती दिखीं।
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