उन्नाव : सूखे तालाबों को भगीरथ प्रयास का इंतजार

उन्नाव। कभी बेजुबानों की हलक तर करने व सिंचाई के पर्याय रहे जलाशय आज रेगिस्तान की मारीचिका बनकर रह गये हैं। तपती दोपहरी में गला तर करने को आकुल बेजुबान, बेबसी भरी टकटकी लगाये कभी इंद्रदेव तो कभी इंसानी सरकारों की ओर बेबस भरी निगाहों से निहारते नजर आते हैं।

ज्येष्ठ मास की दुपहरिया में बढ़ते पारे व गिरते जलस्तर के चलते हलक तर करने को पानी दर्जनों फीट गहराई में समाता जा रहा है। नतीजा कभी बेजुबान पशु पक्षियों की प्यास बुझाने का पर्याय रहे जलाशय अपना अस्तित्व ही खोते जा रहे हैं। कभी नाते रिश्तेदारों को शुद्ध जल देने वाले कुओं संग देशी हैंण्डपाइप आज कराहते दिखाई दे रहे हैं।

अबकी बार बोरिंग से रबी की खेती करने में पम्पिंग सेटों से पानी निकालने में किसानों को पसीने आ गये। बीते वर्ष इंद्रदेव के पदचिन्हों पर ही चलकर सिंचाई तक को पर्याप्त पानी नहीं दे सका। नहरों से माइनरों के जरिये जलाशय भरने से बेजुबानों को गला तर करने के संकट से निजात मिलती थी। लेकिन बारह महीने में सिर्फ एक दो बार ऐसा पानी छोड़ा कि माइनरों की ही हलक तर न हो सकी, जिसका खामियाजा ही आज बेजुबानों संग क्षेत्र का किसान भुगतने को विवश हैंं।

प्रदेश में धरती पुत्र की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में प्रदेश के किसानों की कम भूमिका नहींं रही। “नहरों में पर्याप्त पानी मिलेगा” की आस में नाते रिश्तेदारों तक को कसमें वादों का वास्ता देकर अपने साथ लाकर, उन्हेंं भी अपनी ही बिरादरी का मानकर प्रदेश की निष्कंटक गद्दी सौंपी थी। लेकिन नतीजा आज सबके सामने है।

न नहरों में पानी है और नही जलाशयों में। बेजुबानों संग अन्नदाता का तमगा लिये किसानों का हश्र आज एक सा होकर रह गया है। आदर्श तालाबों पर लाखों खर्च करने के बाद आज उनमें पानी के बजाय धूल उड़ती नजर आ रही है। सबकुछ जानते हुए भी सरकारें कान में तेल डाले वातानुकूलित ब़गलों, दफ्तरों व गाड़ियों में फ्रिज व आरओ का पानी पीकर मस्त हैं।

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