उत्तर प्रदेश: IAS अफसर नहीं दे रहे अपनी संपत्ति का ब्यौरा- बना रहे अनोखे बहाने, अब प्रमोशन में हो सकती है कठिनाई
उत्तर प्रदेश के 100 से अधिक आईएएस अधिकारी अपनी अचल संपत्ति का ब्यौरा (आईपीआर) केंद्र सरकार को नहीं दे रहे हैं। राज्य सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए आईपीआर को पदोन्नति से जोड़ने पर विचार कर रही है। केंद्र सरकार ने आईएएस अधिकारियों के लिए प्रति वर्ष अपनी अचल संपत्ति का ब्योरा देना अनिवार्य किया है। इसमें उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त संपत्ति, स्वयं से अर्जित संपत्ति या परिवार के किसी सदस्य या अन्य के लिए ली गई संपत्ति का ब्योरा देना होता है।
प्रावधान है कि यदि ऑनलाइन आईपीआर दाखिल न किया गया तो संबंधित को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए ‘इम्पैनल’ नहीं किया जाएगा और न ही उसे विजिलेंस क्लीयरेंस दी जाएगी। इसके बावजूद प्रदेश के 78 आईएएस अधिकारियों ने 2018 के लिए व 68 ने 2019 के लिए अचल संपत्ति का ब्योरा ऑनलाइन नहीं दिया। इनमें कई ने दोनों वर्ष का ब्योरा नहीं दिया है। इनमें कई रिटायर हो चुके हैं। केंद्र ने प्रदेश सरकार को इस स्थिति की जानकारी दी है।
शासन के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने बताया कि प्रदेश सरकार ने आईपीआर दाखिल न करने की प्रवृत्ति को बेहद गंभीरता से लिया है। इस बार वार्षिक मूल्यांकन प्रविष्टि (एसीआर) तय सीमा तक न होने पर कई अफसरों की पदोन्नति स्थगित कर दी गई। अब पदोन्नति के समय आईपीआर का भी संज्ञान लेने पर विचार हो रहा है। इससे आईपीआर दाखिल न करने वाले अफसरों की पदोन्नति अटक जाएगी।
आईपीआर दाखिल न करने के कई कारण और बहाने
सिर्फ केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के इम्पैनलमेंट के लिए आईपीआर अनिवार्य है। पदोन्नति पर इसका असर नहीं पड़ता। जिन्हें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर नहीं जाना होता है, वे रुचि नहीं लेते।
कई अधिकारी यह बहाना बनाते हैं कि आईपीआर भरने की अवधि में शासकीय कार्य से व्यस्त थे, ऑफलाइन भेजा गया है।
कई यह कहकर बचने की कोशिश करते हैं कि पूर्व में दाखिल आईपीआर के बाद उनकी संपत्ति बढ़ी ही नहीं।
वहीं इस मामले पर उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी का कहना है कि पदोन्नति के समय एसीआर की अनिवार्यता की व्यवस्था पहले से है। उस पर अमल किया गया है। अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के लिए आईपीआर दाखिल करना अनिवार्य है। आगे की पदोन्नतियों में इसका भी संज्ञान लिया जाएगा।