इस छोटे से डिवाइस के है बड़े फायदे और नुकसान, जानें इससे बचने के उपाय 

क्या आपको अपने सबसे खास दोस्त का या फिर अपने चाचा, मामा या बुआ के घर का लैंडलाइन फोन नंबर या फिर मोबाइल नंबर याद है। शायद नहीं होगा। स्मार्टफोन के युग में भला कौन किसी का नंबर याद रखता है। यह छोटी सी डिवाइस हमारी जिंदगी का बेहद खास हिस्सा बन गई है। इसके बिना कई काम तो मानो असंभव ही हो गए हैं।

इस छोटे से डिवाइस के है बड़े फायदे और नुकसान, जानें इससे बचने के उपाय 

लेकिन जिंदगी की इस बेहद महत्वपूर्ण डिवाइस के जितने फायदे हैं, उससे ज्यादा नुकसान हैं। क्या आपने कभी महसूस किया है कि जब से मोबाइल फोन स्मार्टफोन में तब्दील हुआ है, तब से लोग देर रात तक जागने लगे हैं। खबरें तो तेजी से पहुंचती ही हैं, अफवाहें भी तूफानी रफ्तार पकड़ लेती हैं। लेकिन मोबाइल का उपयोग दिन दूनी गति से बढ़ रहा है।

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अब से बीस साल पहले तक बच्चे कैरम, लूडो, शतरंज और सांप-सीढ़ी जैसे खेल खेलते थे। लेकिन अब इन खेलों का स्थान मोबाइल गेम्स ने ले लिया है। मोबाइल पर 3डी खेल खेले जाते हैं। पारंपरिक खेलों का डिजिटल संस्करण इस पर उपलब्ध है, साथ ही ऐसे खेल भी मौजूद हैं, जिनके पीछे दुनियाभर के युवा पागल हो रहे हैं। पोकेमोन गो, पबजी, व्लूव्हेल, नीड फॉर स्पीड और कई हिंसक खेल इस फेहरिस्त में शामिल हैं।

हिंसक मोबाइल गेम्स वाली खबर पढ़ने पर आपको इनसे हो रहे नुकसान की जानकारी भी मिल जाएगी। लेकिन मोबाइल या स्मार्टफोन की वजह से स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसकी वजह से कई ऐसी बीमारियां भी होने लगी हैं, जो पहले नहीं होती थीं। थंब अर्थराइटिस या अंगूठे के अर्थराइटिस के बारे में आपने सुना है क्या। अर्थराइटिस के बारे में तो आप जानते होंगे, लेकिन ज्यादा मोबाइल उपयोग करने से अंगूठे में भी यह बीमारी हो जाती है।

आइए आपको बताएं कि आपका प्यार मोबाइल आपको कैसे नुकसान पहुंचाता है:

थंब अर्थराइटिस होने का खतरा ज्यादा

थंब अर्थराइटिस यानि अंगूठे के अर्थराइटिस का खतरा मोबाइल फोन के ज्यादा इस्तेमाल से हो सकता है। इसके कारण आपके अंगूठे के निचले हिस्से में दर्द और सूजन की समस्या हो सकती है। थंब अर्थराइटिस आपकी कलाइयों को भी प्रभावित कर सकता है और इससे आपके अंगूठों की शक्ति क्षीण हो सकती है। थंब अर्थराइटिस होने पर आपको चीजों को पकड़ने में और अंगूठे के उपयोग में परेशानी हो सकती है।

कैंसर का खतरा

कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि मोबाइल फोन से पैदा होने वाले रेडिएशन की वजह से कई तरह के ट्यूमर्स और कैंसर का खतरा होता है। इसलिए इसके ज्यादा इस्तेमाल की सलाह नहीं दी जा सकती है। रेडिएशन के प्रभाव से बचना तो आजकल मुश्किल है लेकिन इसके प्रभाव को कम जरूर किया जा सकता है। जैसे, रात में सोते समय मोबाइल को ऑफ करके सोएं और मोबाइल पर बात करते हुए स्पीकर मोड पर फोन रखें या ईयरप्लग्स का इस्तेमाल करें। इसके अलावा मोबाइल फोन को अपने ऊपर की जेब में यानि दिल के करीब न रखें।

डायबिटीज, दिल की बीमारियां और मोटापा

मोबाइल आपको डायबिटीज, मोटापा और दिल की कई गंभीर बीमारियां दे सकता है। दरअसल लाइटिंग स्क्रीन वाले गैजेट्स का देर रात तक इस्तेमाल करने से आपकी आंखों पर प्रभाव पड़ता है और आपकी नींद भी प्रभावित होती है। इससे आपको दिल की बीमारियों के साथ-साथ मोटापा की समस्या भी हो सकती है और आंखों को ग्लूकोमा या लो नाइट विजन की समस्या हो सकती है। शोध के मुताबिक आंखों के लिए सबसे हानिकारक स्मार्ट फोन की ब्लू यानि नीली लाइट होती है।

टेक्स्ट नेक सिंड्रोम

मोबाइल फोन के इस्तेमाल में ज्यादातर समय आप गर्दन झुकाकर नीचे देखते हैं। इससे गर्दन की मांसपेशियों में खिंचाव हो सकता है और ये अकड़ सकती हैं। ये छोटी सी गलती कई बार आपके कमर और कंधों तक या उसके भी नीचे पहुंच जाती है। इसी बीमारी को टेक्स्ट नेक सिंड्रोम कहते हैं। अगर आप लंबे समय तक मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते ही हैं तो कम से कम 20 मिनट में एक बार आंखों को स्क्रीन से हटाकर शरीर को थोड़ा सा स्ट्रेच कर लीजिए। कई योगासनों की मदद से भी आप इस बीमारी से बच सकते हैं।

अंधेरे में यूज करते हैं स्मार्टफोन, तो हो सकती है ये बीमारी

आज हर व्यक्ति चाहे वो युवा हो या फिर बुजुर्ग, सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक मोबाइल फोन उपयोग करता है। लेकिन इसके अधिक प्रयोग के कारण कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। इसलिए जरूरी है कि फोन को अपनी जिंदगी में अधिक दखल देने से बचाया जाए।

डिप्रेशन का है बड़ा कारण

रात को सोने से पहले 99 प्रतिशत लोग फोन पर कुछ न कुछ कर रहे होते हैं। कुछ चैटिंग करते हैं तो कुछ लोग गेम्स खेलते हैं। अंधेरे में फोन का अधिक इस्तेमाल करने से सिर दर्द, बेचैनी, कंपन, आंखें कमजोर और डिप्रेशन जैसी बड़ी बीमारियां हो सकती हैं। वैसे तो फोन से दूर ही रहना चाहिए। लेकिन अगर आप अंधेरे में फोन का इस्तेमाल करते हैं तो कोशिश करें कि कम से कम छोटी लाइट जरूर जला दें।

नींद का है दुश्मन

अक्सर लोगों की आदत होती है कि जब वो सोने के लिए लेटते हैं तो फोन का इस्तेमाल करने लगते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपका मोबाइल फोन आपकी नींद का दुश्मन होता है? दरअसल, आपके स्मार्टफोन से निकलने वाला कृत्रिम प्रकाश अंधेरे में आपके शरीर की मेलाटोनिन उत्पादन करने के क्षमता को प्रभावित करता है। मेलाटोनिन आपको नींद दिलाने वाला रसायन होता है। तो जब आप सोने के समय फोन का इस्तेमाल कर रहे होते हैं तो इसके प्रकाश के कारण आपकी नींद भाग जाती है।

कील-मुंहासों की समस्या

लगातार गाल से फोन के चिपकाए रखने से त्वचा पर दाने व मुंहासे हो जाते हैं, फिर चाहे आपका फोन साफ और बैक्टीरिया मुक्त ही क्यों हो या न हो। दरअसल इसकी वजह से गर्मी और घर्षण उत्पन्न होता है, जिसकी वजह से मुंहासे निकल आते हैं।

झुर्रियों को देता है निमंत्रण

स्मार्टफोन हो और चैटिंग न की जाए, यह शायद युवाओं के लिए असंभव है। नए-नए ऐप्स और फिर इंटरनेट पर उपलब्ध टेक्स्ट को पढ़ना अब आम बात है। इस तरह के टेक्स्ट का फोंट अमूमन छोटा होता है। छोटे फोंट की वजह से लोग फोन को इस तरह से देखते हैं कि उनकी भौंहों के बीच झुर्रियां पड़ जाती हैं। इस समस्या से बचने के लिए अपने मोबाइल फोन का फोंट बड़ा रखना चाहिए, साथ ही इसकी ब्राइटनेस को भी बढ़ाकर रखना चाहिए।

पर्यावरण के लिए हानिकारक

साल 2040 तक स्मार्टफोन्स और डाटा सेंटर जैसी इंफर्मेशन और कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाएंगी। कनाडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अध्ययन में ऐसा दावा किया गया है। इस शोध में 2005 तक के स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट, डेस्कटॉप के साथ-साथ डाटा सेंटर्स और कम्यूनिकेशन नेटवर्क जैसी डिवाइसेज के कार्बन फुटप्रिंट का अध्ययन किया गया है।

इससे यह पता लगा है कि न सिर्फ सॉफ्टवेयर के कारण इंफर्मेशन और कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी (आईसीटी) की खपत बढ़ रही है बल्कि हमारे अंदाजे से कहीं ज्यादा आईसीटी का प्रदूषण पर प्रभाव है। ज्यादातर प्रदूषण उत्पादन और संचालन से हो रहा है।

मैकमास्टर के असोसिएट प्रोफेसर लॉफी बेलखिर के मुताबिक, ‘अभी प्रदूषण में इसका योगदान 1.5 फीसदी है लेकिन अगर यही गति रही तो 2040 तक कुल वैश्विक कार्बन फुटप्रिंट में आईसीटी का योगदान 14 फीसदी हो जाएगा। यह दुनियाभर के यातायात क्षेत्र का लगभग आधा होगा। आप जब भी कोई टेक्स्ट मैसेज, फोन कॉल, वीडियो अपलोड या डाउनलोड करते हैं तो यह सब एक डाटा सेंटर के कारण ही संभव हो पाता है।’

उन्होंने कहा, ‘दूरसंचार नेटवर्क और डाटा सेंटर को काम करने के लिए काफी बिजली की जरूरत होती है और ज्यादातर डाटा सेंटर्स को जीवाश्म ईंधन के जरिए ऊर्जा की सप्लाई की जाती है। यह ऊर्जा की खपत है जो हमें नहीं दिखाई देती है।’ जर्नल ऑफ क्लीनर प्रॉडक्शन में प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 तक पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान स्मार्टफोन की वजह से होगा।

हालांकि ये डिवाइस बहुत कम ऊर्जा पर चलती हैं लेकिन इनके उत्पादन में 85 फीसदी तक प्रदूषण होता है। ये डिवाइस काफी कम समय चलते हैं जिसके कारण इनका उत्पादन दोबारा किया जाता है और जिससे ज्यादा प्रदूषण बढ़ता है। प्रोफेसर ने कहा कि 2020 तक स्मार्टफोन द्वारा की जाने वाली ऊर्जा खपत पर्सनल कंप्यूटर और लैपटॉप से ज्यादा हो जाएगी।

नींद न आने की हो सकती है बीमारी

वैज्ञानिक शोध निष्कर्षों में पाया गया है कि मोबाइल से जो रेडिएशन निकलता है वह बहुत हानिकारक होता है। इससे पाचन शक्ति कमजोर और नींद कम आने की बीमारी हो सकती है।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के एक शोध के अनुसार मोबाइल को वाइब्रेशन मोड पर ज्यादा देर तक इस्तेमाल करने से कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए मोबाइल को साइलेंट या फिर वाइब्रेशन मोड में तकिये के नीचे रखकर नही सोना चाहिए। क्योंकि मोबाइल से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन निकलती है, जो दिमाग की कोशिकाओं को वृद्धि करने में प्रभावित करती है जिससे ट्यूमर विकसित हो सकता है। युवाओं के सर को 25%, 10 से 5 साल तक के बच्चों के सर को 50% और 5 साल के कम उम्र के बच्चों को 75% तक प्रभावित करता है।

  • दिमाग में द्रव्य की मात्रा ज्यादा होती है और मोबाइल की रेडिएशन इस द्रव्य की मात्रा को असंतुलित करती है जिससे बीमारियां होती है और इसी के साथ मोबाइल नपुंसकता को भी बढ़ाता है।
  • मोबाइल से निकलने वाली रेडियो फ्रीक्वेंसी से डीएनए के नष्ट होने का खतरा हो सकता है।
  • अल्जाइमर, डाइबिटीज, हृदय रोगों की संभावनाओं जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ा देता है।
  • हाथ की मांसपेशियों में तनाव, डिप्रेशन भी हो सकता है क्योंकि ये रेडिएशन दिमाग की कोशिकाओं को संकुचित करती हैं, जिसकी वजह से मस्तिष्क में ऑक्सीजन सही मात्रा में नहीं पहुंच पाती है।

गर्भवती महिलाओं पर ज्यादा पड़ता है प्रभाव

मोबाइल का इस्तेमाल गर्भवती महिलाओं द्वारा कम करना चाहिए क्योंकि इसका रेडिएशन गर्भस्थ शिशु को प्रभावित कर सकता है। इससे शिशु के दिमाग पर नकारात्मक असर पड़ सकता है और उसका विकास भी प्रभावित हो सकता है।

कई बार मोबाइल इस्तेमाल करते वक्त यह गरम भी हो जाता है और तब यह सेहत के लिए काफी नुकसानदायक होता है। इतना ही नहीं मोबाइल का अत्यधिक इस्तेमाल करने से विद्युत चुंबकीय क्षेत्र फ्री रेडिकल की संख्या में इजाफा कर देता है जिससे बायोलॉजिकल सिस्टम के बिगड़ने की संभावना काफी बढ़ जाती है।

मोबाइल फोन को जेब या फिर बेल्ट के पास रखना हानिकारक हो सकता है। इससे इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विकिरणों का प्रभाव हड्डियों पर पड़ता है और उनमें मौजूद मिनरल लिक्विड समाप्त हो सकता है।

इससे बचने के उपाय

  • मोबाइल को तकिये के नीचे पास में रख कर ना सोएं और इसका प्रयोग अलार्म लगाने के लिए ना करें।
  • कॉल और रिसीव करने के लिए हेडसेट का इस्तेमाल करें।
  • मोबाइल को शरीर से दूर रखे और जो कॉल जरूरी हो तब ही करें।
  • हो सके तो पॉकेट में फोन को ना रखे और अगर फोन गरम हो जाए तो इस्तेमाल ना करें।

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