शनिवार के दिन इस तरह से करें पूजा-पाठ, वरना इन राशियों पर शनि की पड़ेगी टेढ़ी नजर

भगवान शिव की साधना और अराधना के लिए प्रदोष व्रत काफी फलदायक है। यह व्रत प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी वाले दिन किया जाता है। जब यह व्रत जब शनिवार को पड़ता है तो उसे शनि प्रदोषम् कहा जाता है। शनिवार के दिन इस पावन व्रत को पुत्र की कामना से किया जाता है। प्रदोष काल में की जाने वाली साधना, व्रत एवं पूजन को प्रदोष व्रत या अनुष्ठान कहा गया है।

शनिदेव

तिथि के अनुसार शनिवार को रहेगा प्रदोष व्रत
जाने-माने ज्योतिषविद् पंडित जय गोविंद शास्त्री के अनुसार पौष शुक्ल त्रयोदशी 18 जनवरी के दिन केवल 8 मिनट तक है। त्रयोदशी रात 8 :23 मिनट से 8:31 मिनट तक ही है। 19 जनवरी को पूरे दिन सूर्योदय से प्रदोषकाल से कुछ पूर्व ही समाप्त हो रही है। अत: शुक्ल प्रदोषकाल दूसरे दिन 19 जनवरी को ही माना जायेगा।

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शनि प्रदोषम् का पौराणिक महत्व 
कहते हैं कि प्रदोषकाल में भगवान शिव कैलास पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते हैं। ऐसे में इस पावन तिथि पर भगवान शिव की पूजा करने से वे जल्दी प्रसन्न होकर अपने भक्तों को सुख-समृद्धि का वरदान देते हैं। धर्म और मोक्ष से जोड़ने वाले, अर्थ और काम से मुक्त करने वाले इस व्रत को शास्त्रों में आरोग्य और लंबी आयु प्रदान करने वाला बताया गया है।

शनि प्रदोषम् व्रत विधि
त्रयोदशी के दिन भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत पुत्र की कामना, कर्ज से से मुक्ति, सुख-समृद्धि-सौभाग्य और आरोग्य आदि की कामना से किया जाता है। इस व्रत के दिन साधक को सुबह उठकर स्नान-ध्यान के पश्चात् इस व्रत का संकल्प करना चाहिए। पूरे दिन व्रत रखते हुए सायंकाल सूर्यास्त के बाद एक बार फिर स्नान करने के पश्चात् भगवान शिव का विधि-विधान से पूजन एवं साधना करना चाहिए।

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शनि प्रदोषम् व्रत का फल
पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रदोष व्रत करने वाले साधक पर सदैव भगवान शिव की कृपा बनी रहती है और उसका दु:ख दारिद्रय दूर होता है और कर्ज से मुक्ति मिलती है। प्रदोष व्रत में शिव संग शक्ति यानी माता पार्वती की पूजा की जाती है, जो साधक के जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करते हुए उसका कल्याण करती हैं।

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