इंसानों के लिए वरदान से कम नही हैं जानवरों के जहर से बनी ये… दवाएं

जब तक मेडिकल साइंस का आविष्कार नहीं हुआ था, इंसान पेड़-पौधों और जड़ी बूटियों से ही इलाज करता था। निएंडरथल्स मानवों ने भी चिनार के पेड़ की छाल का इस्तेमाल दर्द निवारक के रूप में किया था। जानवरों का भी उनके औषधीय गुणों के लिए शोषण किया जाता रहा है।

मिसाल के लिए चीन की पारंपरिक चिकित्सा (TCM) में जानवरों की 36 तरह की प्रजातियों का इस्तेमाल होता रहा है। इसमें भालू, गैंडे, बाघ और समुद्री घोड़े तक शामिल हैं। इनमें से कई तो अब खत्म होने के कगार पर हैं। अभी पैंगोलिन को कोविड-19 के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। लेकिन हाल के कुछ समय तक चीन में पारंपरिक चिकित्सा के लिए पैंगोलिन पालन होता था।

आयुर्वेदिक चिकित्सा में गठिया के इलाज के लिए सांप के जहर का इस्तेमाल किया जाता है। इसी तरह, अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका और एशिया में टेरेंटुला नाम की जहरीली मकड़ी का इस्तेमाल कई तरह की बीमारियां ठीक करने में किया जाता है। इसमें दांत का दर्द और कैंसर जैसे मर्ज भी शामिल हैं।

हालांकि इन पारंपरिक उपचारों के समर्थन में कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं है। इसी हफ्ते वैज्ञानिकों ने खबरदार भी किया है कि अगर जंगली जानवरों का शोषण अभी भी बंद नहीं किया गया तो भविष्य में और भी कई महामारियों का सामना करना पड़ सकता है।

इंसान हजारों वर्षों से पेड़ पौधों से दवाएं बनाता रहा है। लेकिन जानवरों के संदर्भ में ऐसा करना जरा मुश्किल है। लेकिन तकनीक की मदद से इस काम को भी आसान बना लिया जाएगा। बहुत-सी बीमारियां इंसान को जानवरों से मिल रही हैं तो इनका इलाज भी उन्हीं की मदद से किया जाएगा।

हमें शुक्रगुजार होना चाहिए क्रमिक विकास का, जिसकी वजह से हमें जानवरों में ऐसे अणु मिल जाते हैं। जो इंसान के शरीर में भी पाए जाते हैं। इन अणुओं को ‘पेप्टाइड्स’ कहते हैं। घोंघे और मकड़ियों से लेकर सैलामैंडर और सांपों तक में ये पेप्टाइड्स मिल जाते हैं।

पेप्टाइड्स प्रोटीन के रूप में ही होते हैं लेकिन बहुत छोटी श्रृंखला में। इन्हें हम ‘मिनी प्रोटीन’ कह सकते हैं। चूंकि वो एस्पिरिन जैसी दवाओं की तुलना में 10 से 40 गुना बड़े होते हैं। इसलिए, वो अपने टारगेट पर सक्रियता से काम करते हैं। इनके साइड इफेक्ट भी नहीं होते। तकनीक की मदद से आज वैज्ञानिक बहुत आसानी से पता लगा सकते हैं कि किस जानवर के कौन से अणु से दवा बनाई जा सकती है।

बाजार में आज ऐसी सैकड़ों दवाएं मौजूद हैं, जो जानवरों के जहर से ही तैयार की गई हैं। मिसाल के लिए टाइप-2 शुगर के मरीजों की दी जाने वाली दवा एनैक्सेटाइड गिला मॉन्सटर की लार से तैयार होती है। पुराने दर्द में आराम के लिए जिकोनिटाइड दवा दी जाती है। ये दवा घोंघे के जहर से तैयार होती है।

जानवरों के अणुओं से बनने वाली सभी दवाओं में उनका जहर शामिल होता है। लेकिन सभी पशुओं के पास दुर्लभ प्रकार का जहर नहीं होता। ये केवल 2 लाख 20 हजार प्रजातियों में ही पाया जाता है। जो धरती पर पाए जाने वाली जीवों की प्रजातियों का 15 फीसदी है।

हार्ट अटैक के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा मौत स्ट्रोक से होती हैं। हर साल करीब 60 लाख लोग इसी बीमारी से मरते हैं। 50 लाख लोग ब्रेन डेड होकर बिस्तर पर पड़े रहते हैं। ऐसे लोगों को खतरनाक जहर वाली दवाएं दी जाती हैं। ऐसे मरीजों के लिए बहुत ज्यादा दवाएं अभी तक नहीं हैं। टिशू प्लासमीनो एक्टिवेटर ही ऐसी दवा है, जिसे अमेरिकी एफडीए से मान्यता मिली हुई है।

बायोकेमिस्ट ग्लेन किंग दुनिया के सबसे बड़े भौतिक संग्रह के साथ काम करते हैं। यहां ऐसे 700 तरह के रीढ़ विहीन जीवों के जहर के नमूने से लिए गए पेप्टाइड्स हैं, जिसमें बिच्छू, मकड़ी, खतरनाक कीड़े और गोजर शामिल हैं। स्ट्रोक ठीक करने के लिए उन्हें यहां महज एक ही अणु मिला जिसका नाम है Hi1a। ये ऐसे खतरनाक जहर का अणु है, जो ऑस्ट्रेलियाई फेनेल वेब स्पाइडर हाइड्रोनिक इनफेन्सा से लिया गया है।

किंग कहते हैं ये दुनिया का सबसे जटिल रासायनिक नुस्खा है। वो कहते हैं कि अगर स्ट्रोक के 8 घंटे बाद इस दवा की एक छोटी-सी भी खुराक मरीज को दी जाए तो बड़े पैमाने पर दिमाग को नुकसान पहुंचने से बचाया जा सकता है। और अगर चार घंटे बाद ही दे दी जाए तो 90 फीसद तक नुकसान रोका जा सकता है।

इस दवा के साइट इफेक्ट भी नहीं के बराबर हैं। ग्लेन किंग कहते हैं कि हर जहर उतना जहरीला नहीं होता, जितना हम समझते हैं। मिसाल के लिए दुनिया में मकड़ियों की एक लाख से ज्यादा प्रजातियां हैं। लेकिन इनमें से मुठ्ठी भर ही इंसान को नुकसान पहुंचाने वाली हैं।

टोज्युलेरिस्टाइड एक ऐसी दवा है जिससे दिमाग में कैंसर के ट्यूमर को आसानी से देखा जा सकता है। इसे बिच्छू के जहर से तैयार किया गया है। ये सिर्फ दिमाग के ट्यूमर की पहचान के लिए ही इस्तेमाल की जाने वाली दवा है। लेकिन अब ब्रेस्ट कैंसर और स्पाइन कैंसर की पहचान के लिए भी इस पर रिसर्च की जा रही है।

टोज्युलेरिस्टाइड एक ऐसी दवा है जिससे दिमाग में कैंसर के ट्यूमर को आसानी से देखा जा सकता है। इसे बिच्छू के जहर से तैयार किया गया है। ये सिर्फ दिमाग के ट्यूमर की पहचान के लिए ही इस्तेमाल की जाने वाली दवा है। लेकिन अब ब्रेस्ट कैंसर और स्पाइन कैंसर की पहचान के लिए भी इस पर रिसर्च की जा रही है।

रिसर्चर मारिया का कहना है कि मेलानोमा नाम के स्किन कैंसर में ये बहुत कारगर है। ब्रिटेन में ये पांचवें नंबर की बड़ी बीमारी है और दुनिया में हर साल एक लाख 32 हजार लोग इस बीमारी का शिकार होते हैं। दवाओं में जो जहर इस्तेमाल किया जाता है, उसका बड़ा हिस्सा सांप से आता है।

धरती पर सांप ही ऐसा जीव है, जो सबसे ज्यादा जहर का उत्पादन करता है। लेकिन जो जानवर कम जहर पैदा करते हैं, उनके विष का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। मकड़ी एक दिन में 10 मिलीलीटर जहर पैदा करती है। बिच्छू सिर्फ दो मिलीलीटर जहर बनाता है। लेकिन रिसर्चर इनके जहर से भी काम के अणु निकाल कर इस्तेमाल कर रहे हैं।

पशुओं के पेप्टाइड में कई तरह की ऑटो इम्यून बीमारियां और दर्द ठीक करने की क्षमता है। अब वैज्ञानिक जानवरों के बायोलॉजिकल मूल्यों का इस्तेमाल कोविड-19 जैसी महामारियों का इलाज तलाशने में भी कर रहे हैं।

 

 

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