आमलकी एकादशी पर इस विधि से करें पूजा-पाठ, पूरी होंगी हर अधूरी मनोकामना

आमलकी एकादशी 17 फ़रवरी को मनाई जाएगी. इस दिन आंवले के पेड़ के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. इसी दिन रंगभरनी एकादशी भी मनाई जाती है, जिसमें भगवान शिव को रंग लगाकर होली की तैयारियों की शुरुआत की जाती है. यही वजह है कि ये दिन शिव और विष्णु भक्तों दोनों के लिए महत्व रखता है.

आमलकी एकादशी

फाल्गुन शुक्ल की एकादशी को आमलकी एकादशी मनाई जाती है.
पद्म पुराण में ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के थूकने से आंवले का पेड़ बना. यही कारण है कि इस पेड़ में विष्णु जी का वास माना जाता है. आंवले के पेड़ की जड़ में भगवान विष्णु, बीच में भगवान शिव और ऊपर ब्रह्मा जी का वास होता है. इसकी पूजा से भक्तों को पुण्यलाभ होता है. परिवार में सुख-शांति के लिए आमलकी एकादशी का विशेष महत्व है.

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पूजा की विधि
आमलकी का मतलब है आंवला. इस एकादशी पर स्नान के बाद भगवान विष्णु एवं आंवले के वृक्ष की पूजा का विधान है. प्रसाद के रूप में भी आंवले को विष्णु भगवान् को चढ़ाया जाता है. घी का दीपक प्रज्जवलित कर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें. जो लोग व्रत नहीं करते हैं, वे भी विष्णु जी को आंवले का भोग चढ़ाकर फिर खुद इसका प्रसाद खाएं.

शिवपुराण में ऐसा उल्लेख है कि इस दिन देवी पार्वती का गौना हुआ था और वे शिव के पास आ गई थीं. देवी पार्वती के आने पर शिवभक्तों ने रंग खेलकर अपनी खुशी जताई थी. यही कारण है कि इसे रंगभरनी एकादशी भी कहते हैं. इस दिन काशी में भगवान शिव का विशेष श्रृंगार होता है और भक्त एक-दूसरे को गुलाल लगाकर खुशियां मनाते हैं.

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