आजादी के सात दशक बाद भी मूलभूत सुविधा यातायात, स्वास्थ्य, शिक्षा और पेयजल की किल्लत से परेशान हैं ग्रामीण

इसे गांव का दुर्भाग्य कहें या शासन-प्रशासन की लापरवाही। लेकिन, यह सच है आजादी के सात दशक बाद भी सीमांतवर्ती जिले के कामरा, सांखाल और मटियालौड़ गांव में ग्रामीण मूलभूत सुविधा यातायात, स्वास्थ्य, शिक्षा और पेयजल किल्लत से परेशान हैं। इन गांवों में ग्रामीण विकटता में जीवन जी रहे हैं।

देहरादून जनपद की सीमा पर उत्तरकाशी जनपद के पुरोला ब्लॉक के कामरा, सांखाल और मटियालौड़ गांव पड़ते हैं। इन गांवों में सभी परिवार अनुसूचित जाति के हैं। यातायात की बात करें तो यह ग्रामीण पुरोला से 46 किमी दूर गढ़सार तक वाहन से आवागमन करते हैं। उसके बाद ग्रामीण यहां से करीब 12 से 15 किमी पगडंड़ियों के सहारे अपने गांव पहुंचते हैं। यहां से यातायात की सुविधा नहीं होने से ग्रामीण घोड़े, खच्चरों से अपने घरों तक सामान पहुंचाते हैं। 

शिक्षा की बात करें तो आठवीं तक के शिक्षा के बाद यहां के ग्रामीण अपने बच्चों को पुरोला में किराए के मकानों में रहकर पढ़ाने को मजबूर हैं। स्वास्थ्य की बात करें तो इन गांवों के ग्रामीण आपातकाल में डंड़ी-कंड़ी की मदद से मरीजों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पुरोला या फिर बर्नीगाड़ पहुंचाते हैं। पेयजल की स्थिति भी बेहद ही बदहाल है। इन गांवों के ग्रामीण आज भी प्राकृतिक स्रोतों से पानी ढोने को मजबूर हैं। जलसंस्थान ने दो दशक पहले इन गांव में पेयजल लाइन बिछाई थी, लेकिन, देखरेख और विभाग की लापरवाही के कारण विभाग की यह योजना भी धरातल पर दम तोड़ गई। 

आलम यह है कि सात दशक से इन गांवों के ग्रामीण विकास की बाट जोह रहे हैं। प्रधान जगदीश कुमार, पूर्व प्रधान सुनीता देवी, सुरेश कुमार, संजय राजू, गोपाल,जगत,सैजराम बताया कि वर्तमान में कामरा गांव में 30 परिवार, सांखाल में 35 और मटियालोड़ में सात परिवार निवास करते हैं। इन तीनों गांवों की आबादी 480 के करीब है।

गजब यह है कि सरकार अनुसूचित जाति के परिवारों के लिए विकास के बड़े-बड़े दावे करती हैं, लेकिन आज भी गांव में यदि कोई बीमार होता है तो सड़क न होने के कारण उसे ग्रामीण अपनी पीठ पर या चारपाई पर ढ़ोने को मजबूर हैं। गांव के पास कोई भी अस्पताल नहीं है। यही नहीं पोस्ट आफिस के लिए भी ग्रामीणों को 14 किलोमीटर की पैदल दूरी तय कर भंकोली जाना पड़ता है।

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