भोले की पूजा में होता है इसका इस्तेमाल, इंसानों के लिए इसमें हैं 11 ‘वरदान’
इंसान बीमारी से निजात पाने के लिए हर उपाय अपनाता है। दवा से लेकर झाड़फूंक तक कराता है। पैसा तो पानी की तरह खर्च कर देता है। आखिर में या तो बिल देखकर हालत खराब कर हो जाती है या खराब हालत में ही तकलीफ दूर का बहाना बनाकर किनारे हो जाता है। लेकिन खुद के आस पास ही मिलने वाले इलाज को अपनाने से ही कतराता है।
इलाज के लिए हम दुनिया भर के डॉक्टरों की चौखट हो आते हैं लेकिन अगर हम अपने घर की चौखट पर ही एक ऐसा पेड़ लगा दें तो बीमारी घर में प्रवेश ही न करने पाए।
आक का पौधा, आम बोलचाल में इसे मदार भी कहा जाता है। भोले बाब की पूजा के समय इसका इस्तेमाल भी होता है। लेकिन यह सिर्फ पूजा में ही नहीं इस्तेमाल होता। इसनें इंसानों के लिए 9 वरदान हैं जो हमें घातक बीमारी से बचा सकते हैं।
इसके बारे में आम लोग सिर्फ एक ही धारणा पाले हुए हैं। वो यह कि ये पौधा जहरीला होता है। हां, यह सच है लेकिन थोड़ा सा सच। यदि इसका सेवन अधिक मात्रा में कर लिया जाए तो, उलटी दस्त होकर मनुष्य की मौत तक हो सकती है। आयुर्वेद संहिताओं मे भी इसकी गणना उपविषों में की गई है।
इसके विपरीत यदि आक का सेवन उचित मात्रा में, योग्य तरीके से, चतुर वैद्य की निगरानी में किया जाये तो अनेक रोगों में इससे बडा फायदा होता है। इसका हर अंग दवा है, हर भाग उपयोगी है एवं यह सूर्य के समान तीक्ष्य।
वैसे तो ये पौधा हर जगह देखने को मिल जाता है लेकिन इसके उपयोग की जानकारी कम लोगो को है। तो यहाँ हम आपको इसके प्रयोग की जानकारी दे रहे है।
इसके 11 वरदान-
आक के पौधे की पत्ती को उल्टा कर के पैर के तलवे से सटा कर मोजा पहन लें। सुबह और पूरा दिन रहने दे रात में सोते समय निकाल दें। एक सप्ताह में आपका शुगर लेवल सामान्य हो जायेगा। साथ ही बाहर निकला पेट भी कम हो जाता है।
आक की जड की राख में कडुआ तेल मिलाकर लगाने से खुजली अच्छी हो जाती है। आक की सूखी डंडी लेकर उसे एक तरफ से जलावे और दूसरी ओर से नाक द्वारा उसका धुंआ जोर से खींचे सिर का दर्द तुरंत अच्छा हो जाता है।
आक की जड का चूर्ण गरम पानी के साथ सेवन करने से उपदंश (गर्मी) रोग अच्छा हो जाता है। उपदंश के घाव पर भी आक का चूर्ण छिडकना चाहिये। आक ही के काडे से घाव धोवे।
आक की जड को पानी में घिस कर लगाने से नाखूना रोग अच्छा हो जाता है। आक की जड़ छाया में सुखा कर पीस लें और उसमें गुड मिलाकर खाने से शीत ज्वर शांत हो जाता है।
आक की जड 2 सेर लेकर उसको चार सेर पानी में पकावे जब आधा पानी रह जाय तब जड निकाल ले और पानी में 2 सेर गेहूँ छोडे जब जल नहीं रहे तब सुखा कर उन गेहुंओं का आटा पिसकर पावभर आटा की बाटी या रोटी बनाकर उसमें गुड और घी मिलाकर प्रतिदिन खाने से गठिया बाद दूर होती है। बहुत दिन की गठिया 21 दिन में अच्छी हो जाती है।
आक का दूध पांव के अंगूठे पर लगाने से दुखती हुई आंख अच्छी हो जाती है। बर्रे काटे में लगाने से दर्द नहीं होता। चोट पर लगाने से कुछ ही देर में दर्द दूर हो जाता है।
जहां के बाल उड़ गये हों वहां पर आक का दूध लगाने से बाल उग आते हैं। लेकिन ध्यान रहे इसका दूध आंख में नहीं जाना चाहिए वर्ना आंखें खराब हो जाती है।
आक के कोमल पत्ते मीठे तेल में जला कर अण्डकोश की सूजन पर बाँधने से सूजन दूर हो जाती है। तथा कडुवे तेल में पत्तों को जला कर गरमी के घाव पर लगाने से घाव अच्छा हो जाता है।
आक का पत्ता और ड्ण्ठल पानी में डाल रखे उसी पानी से आबद्स्त ले तो बवासीर अच्छी हो जाती है। इसके कोमल पत्तों के धुंए से भी बवासीर शांत होती है। बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से जाते रहते हैं।
आक के पत्तों को गरम करके बाँधने से चोट अच्छी हो जाती है। सूजन दूर हो जाती है।
आक की जड के चूर्ण में काली मिर्च पिस कर मिला ले और छोटी छोटी गोलियाँ बना कर खाने से खांसी दूर होती है।
उपरोक्त कोई भी उपाय अपनी ज़िम्मेदारी पर सावधानी से ही करें।