अवैध कब्जे का शिकार हुई गाजियाबाद के मोदीनगर की 600 बीघा सरकारी जमीन

रिपोर्ट:- जावेद चौधरी/गाजियाबाद

दिल्ली से सटे गाजियाबाद में आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त इस देश में कई ऐसे संपत्तियां थी. जिनके मालिक पाकिस्तान चले गए । जिनकी संपत्तियों को शत्रु संपत्ति करार दिया गया, जो खुद सारी जमीन सरकार में निहित कर दी गई थी।

लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि आजादी के बाद से अब तक गाजियाबाद के मोदीनगर तहसील इलाके में तकरीबन 600 बीघे जमीन ऐसी है जिसकी जानकारी ना तो स्थानीय तहसील को थी और ना ही प्रशासनिक अफसरों को,  जमीन के दबे होने की जानकारी गाजियाबाद डीएम को तब हुई जब मेरठ के रहने वाले एक शख्स ने नवंबर 2017 को एक शिकायती पत्र दिया था।

अवैध कब्ज़ा

जिसकी जांच की गई तो पता चला कि 1959 के बाद चकबंदी के बाद से इस जमीन को गलत तरीके से दूसरे के नाम दर्ज कर दिया गया था। जमीन मोदीनगर के सिकरी खुर्द गांव में है। इसकी मौजूदा कीमत तकरीबन 1000 करोड़ बताई गई है।

गलतियां यही नहीं की थी तहसीलदार ने 60 साल पुराने इस खाते में फिर से उस पाकिस्तानी शख्स का नाम जोड़ दिया जो कि कानूनी तरीके से बिल्कुल गलत था।

इसकी जानकारी जिले के डीएम स्तर के अधिकारियों को हुई तो डीएम ने 2 एडीएम की एक कमेटी बनाकर इस पूरे मामले की जांच कराई ।पता चला कि तहसीलदार के स्तर से भी गलती हुई है और तहसीलदार ने पाकिस्तानी  एक शख्स के नाम यह जमीन कर दी है।

इस पर मोदीनगर के नगर पालिका ने भी आपत्ति दर्ज कराई थी। जिसके बाद इस आदेश को पलट दिया गया। लेकिन जब जांच आगे बढ़ी तो जानकारी मिली कि 597 बीघे जमीन सीकरी खुर्द गांव में मौजूद है। और यह सरकार के नाम दर्ज की जानी थी।

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बताया जा रहा हैं कि जमीन चकबंदी के बाद लाहौर के रहने वाले अलाउदीन के नाम पर दर्ज कर दी गयी थी। जिसमे अलाउदीन का नाम गायब हो गया था ।तहसीलदार ने पहले पाकिस्तानी अलाउदीन का नाम खाते में चढ़ा दिया। जब इसका विरोध करते हुए मोदीनगर नगर पालिका ने आपत्ति जताई तो जनवरी 2019 में नाम खारिज कर दिया गया।और तहसीलदार में अपना आदेश भी वापस ले लिया।

उधर डीएम ने इस मामले में राजस्व विभाग को मोदीनगर के तहसीलदार राजबहादुर  के खिलाफ कार्रवाई करने की संस्तुति की है। वहीं दूसरी तरफ इस जमीन को सरकार में निहित कराने को भी प्रस्ताव भेजा है। हालांकि मौजूदा स्तर पर किसी को जानकारी नहीं है। वह जमीन कहां है और किस हालत में है। लेकिन यह जरूर माना जा रहा है कि सिकरी खुर्द गांव अब पूरी तरीके से आबादी से भर चुका है। ऐसे में जमीन को खाली कराना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती होगी।

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