अलजाइमर के रोगियों के लिए वरदान हैं आयुर्वेद के ये ‘पंचकर्म’

अलजाइमरअलजाइमर एक ऐसी बीमारी है जिसमें व्यक्ति अपनी सोचने-समझने की शक्ति धीरे-धीरे खोने लगता है। यह रोग डीमेंसिया (पागलपन) के सबसे सामान्य लक्षणों में से एक है। इस बीमारी के बारे में मरीज से पहले उसके परिवार और आसापास के लोगों को पता चलता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अलजाइमर दिमाग की बिमारी है और इसकी गिरफ्त में आते ही व्यक्ति अपने रोजमर्रा के कामों से भी बेखबर होने लगता है। लोगों और वस्तुओं की पहचान करने में भी परेशानी होती है।

अलजाइमर होने का कारण

अलजाइमर होने का एक सबसे बड़ा कारण शारीरिक रूप से अस्वस्थ होना भी है। जो लोग कम उम्र में ही शारीरिक रूप से पीड़ित रहते हैं उनमें अलजाइमर होने के चांस ज्यादा होते हैं। क्योंकि ऐसे लोगों के मस्तिष्क तंतु वक्त से पहले ही सिकुड़ने लगते हैं। जबकि स्वस्थ लोगों के मस्तिष्क तंतु हमेशा स्वस्थ और क्रियाशील रहते हैं।

अलजाइमर के लक्षण

-काम ना करने पर भी ऐसा लगना कि वह काम हमने कर दिया है,

-एक ही बात को बार बार दोहराना,

-जानी पहचानी जगहों या अपने ही घर में खो जाना,

-देर रात को निकल कर घूमना,

-खुद से बात करना,

-बात करते वक्त सामने वाले व्यक्ति को घूरना,

-रोजाना के आसान कामों को करने में भी दिक्कत महसूस होना,

-छोटी-छोटी बातों पर चौंक जाना,

-खुद ही चीजों को रखकर भूलना।

आयुर्वेद से दूर होता है अलजाइमर

आयुर्वेद के अनुसार तीनों दोषों में उत्पन्न विकृति से यह रोग उत्पन्न होता है। प्रधान रूप तंत्रिका तंत्र में वात के असंतुलित होने से मस्तिष्क के रोग पैदा होते हैं। स्व-प्रतिरक्षक रोग है जिसमें अनेक कारणों से मस्तिष्क की कोशिकाएँ आपस में ही उलझकर, प्लॅक्स (plaques) का निर्माण कर देती हैं। ये प्लॅक्स मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में अवरोध उत्पन्न करते हैं।

अलजाइमर के लिए आयुर्वेदीय प्रणाली से शरीर में मौजूद जीव विष को बाहर निकाला जाता है। इस क्रिया में पाँच प्रकार से शरीर की शुद्धि एवं मस्तिष्क की कोशिकायों की पुष्टि की जाती है।

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शिरोधारा: इस क्रिया में औषधियों से सीधा तेल को एक पात्र द्वारा धारावॅट रोगी के मस्तिष्क पर प्रवाहित किया जाता है। इस प्रक्रिया से मस्तिष्क में ऑक्सिजन, रक्त तथा ग्लुकोस की मात्रा बढ़ती है जिससे नवीन उर्जा का निर्माण होता है।

नास्य: इस प्रयोग में औषधि को नाक के माध्यम से दिया जाता है। फलस्वरूप औषधि का विस्तार पूरे मस्तिष्क तथा दिमाग़ में हो जाता है और रोगग्रस्त क्षेत्रों पर दवाई सीधा असर करती है।

शिरो बस्ती: यह प्रणाली अत्यंत लाभकर है और इसमें एक टोपी के मध्यम से औषधीय तेल को रोगी के मस्तक पर रखा जाता है। यह प्रयोग पारकिनसन रोग (Parkinson’s disease), अधरंग, सेरेब्रल अट्रोफी (cerebral atrophy) में लाभदायक सिद्ध होता है।

शिरो लेप: इस प्रयोग में औषधि का लेप बनाकर रोगी के सिर में लगाया जाता है। यह विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों का उपचार करने में सहायक विधि है।

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पौष्टिक भोजन: पौष्टिक भोजन लेना तथा परिपक्व जीवन शैली का निर्वाह करना, शरीर और मन दोनो के लिए लाभदायक है। विवेक शक्ति का यथोचित प्रयोग करना और उचित निर्णय के साथ विधायक कर्म करना भी आयुर्वेद की दृष्टि में महत्वपूर्ण कारक हैं। प्राणायाम और योगाभ्यास से दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा जमा जीवववीश भी निष्कासित होतें हैं।

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