अयोध्या हनुमानगढ़ी : बिना हनुमान जी के दर्शन के नहीं पूरे होंगे श्रीराम के दर्शन !…

रिपोर्ट – आशुतोष पाठक

अयोध्या :  वह पावन नगरी है | जहां हनुमान जी आज भी विराजमान हैं | ऐसा शास्त्रों में वर्णन है | यहां पर पवन पुत्र हनुमान आज भी वास करते हैं | कहा जाता है कि  भगवान राम तक पहुंचने की सीढ़ियां हनुमान जी से होकर गुजरती हैं |

बिना हनुमान जी इजाज़त के राम तक पहुंचना असंभव है | हनुमान चालीसा की चौपाई भी इस कथन को चरितार्थ करती हैं -*राम दुआरे तुम रखवारे* । *होत न आज्ञा बिनु पैसारे*   |

अयोध्या आने वाले श्रद्धालुओं को  राम लला के  दर्शन के पहले बजरंगबली का दर्शन कर उनसे आज्ञा लेना होता है और बजरंगबली की शरण तक पहुंचने  के लिए 84 सीढ़ियों का सफर तय कर भक्त पवनपुत्र के सबसे छोटे रूप के दर्शन करते हैं |

अयोध्या नगरी में आज भी भगवान श्रीराम का राज चलता है | मान्यता है कि भगवान राम जब लंका जीतकर अयोध्या लौटे, तो उन्होंने अपने प्रिय भक्त हनुमान को रहने के लिए यहीं स्थान दिया |

साथ ही हनुमान जी को यह वरदान भी दिया कि जो कोई भी आपके दर्शन के बिना हमारे दर्शन करेगा उसको हमारे दर्शन का फल प्राप्त नहीं होगा | यही कारण है कि  अयोध्या आने वाले हर भक्तों को पहले हनुमान का दर्शन-पूजन करना होता है |

रामकाल के इस हनुमान मंदिर के निर्माण के कोई स्पष्ट साक्ष्य तो नहीं मिलते हैं लेकिन कहते हैं कि अयोध्या न जाने कितनी बार बसी और उजड़ी, फिर भी ये एक स्थान हमेशा अपने मूल रूप में ही रहा |

 

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यही वह हनुमान टीला है, जो आज हनुमानगढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है | जो कि यह पूरा महल 4 कुओं पर बना हुआ है और पांच कुआं महल के अंदर है | जिससे हनुमान जी महाराज का भोग लगता है | इस टीले तक पहुंचने के लिए भक्तों को पार करना होता है 84 सीढ़ियों का सफर | जिसके बाद दर्शन होते है पवनपुत्र हनुमान की 6 इंच प्रतिमा के | जो हमेशा फूल-मालाओं से सुशोभित रहती है |

अंजनीपुत्र की महिमा से परिपूर्ण हनुमान चालीसा और सुंदरकांड की चौपाइयां हृदय के साथ-साथ मंदिर की दीवारों पर सुशोभित हैं| कहते हैं कि हनुमानजी के इस दिव्य स्थान का महत्व किसी धर्म विशेष में बंध कर नहीं रहा, बल्कि जिस किसी ने भी यहां जो भी मुराद मांगी, हनुमंत लला ने उसे वही दिया |

तभी तो अपने इकलौते पुत्र के प्राणों की रक्षा होने पर अवध के नवाब मंसूर अली ने इस मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया | कहा जाता है कि एक बार नवाब का पुत्र बहुत बीमार पड़ गया | पुत्र के प्राण बचने के कोई आसार न देखकर नवाब ने बजरंगबली के चरणों में माथा टेक दिया |

संकटमोचन ने नवाब के पुत्र के प्राणों को वापस लौटा दिया | जिसके बाद नवाब ने न केवल हनुमानगढ़ी मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया, बल्कि इस ताम्रपत्र पर लिखकर यह घोषणा की कि कभी भी इस मंदिर पर किसी राजा या शासक का कोई अधिकार नहीं रहेगा और न ही यहां के चढ़ावे से कोई टैक्स वसूल किया जाएगा |

हनुमानगढ़ी मंदिर के पास ही जामवंत किला, सुग्रीव किला और रामलला का भव्य महल भी था | उसी राम कोट क्षेत्र के मुख्य द्वार पर स्थापित हनुमान लला का भव्य रूप देखते ही बनता है |

 

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