अपने-आप में भी तलाशें ईश्वरत्वः श्री श्री रविशंकर

एक विचार को विचार के रुप में ही देखें, एक भावना को भावना के रुप में ही देखे तब आप खुल जायेगें अपने आप में ईश्वरत्व को देख पायेंगे। देखना इन्हें अलग-अलग परिणाम देता है। जब आप नकारात्मकता को देखते हैं तो ये तुरंत समाप्त हो जाती है और जब आप सकारात्मकता को देखते हैं तो वे बढ़ने लगती हैं। जब आप क्रोध को देखेंगे तो यह समाप्त हो जायेगा और जब आप प्रेम को देखेंगे तो यह बढ़ जायेगा।

ईश्वरत्व

अच्छे, बुरे, सही, गलत, ऐसा करना चाहिये, ऐसा नही करना चाहिए ये सब आपको बांध लेता हैं। हर विचार किसी ना किसी स्पंदन या भावना से जुड़ा है। स्पंदनों को देखे और शरीर में अनुभव को देखे। भावना की लय को देखे – यदि आप देखेंगे तो आप कोई गलती नही करेंगे। आपके पास एक ही तरह की भावनाओं का पथ है, लेकिन आप इन भावनाओं को अलग कारणों से, अलग अलग वस्तुओं से , अलग अलग लोगों से, स्थिति-परिस्थितियों से जोड़ लेते हो।

यही सर्वोत्तम और एकमात्र उपाय है। आने वाले हर विचार को देखें और उन्हें जाते हुये देखें। नकारात्मक विचारों के आने का एकमात्र कारण तनाव है। यदि आप किसी दिन बहुत तनाव में हों तो उसके अगले दिन या उस से अगले दिन आप में नकारात्मक विचार आने लगेंगे और आप परेशान हो जायेंगे।

इन विचारों से, जिनका कोई अर्थ नही है, पीछा छुड़ाने के स्थान पर आप उन बिंदुओं को, कारणों को खोजें जिनके कारण ये विचार आ रहें हैं। यदि स्रोत स्वच्छ है तो मात्र सकारात्मक विचार ही आएंगे। यदि नकारात्मक विचार आते है तो आप ये मान ले, ‘‘तो क्या। ‘‘वे आयेंगे और तुरंत गायब हो जायेगें। हमें जो जैसा है उसे वैसा ही देखने की आवश्यकता है, विषय और पूर्णता के साथ। यह जीवन के लिये सारभूत है।

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