सत्ता में परिवारवाद लोकतंत्र से खिलवाड़
समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया मुलायम यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव की राजनीति में इंट्री के साथ मुलायम सिंह यादव का सियासी कुनबा और बढ़ गया है। इसके साथ ही लोकतंत्र में परिवारवाद को लेकर देश भर में नई बहस छिड़ गई है। इस पर विभिन्न वर्गों की अलग-अलग प्रतिक्रिया है लेकिन सबका यही मानना है कि सत्ता में परिवारवाद लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। पंचायत से लेकर प्रदेश सरकार तक राजतंत्र हावी नजर आ रहा है।
‘परिवारवाद लोकतंत्र की प्रकृति के खिलाफ है। यह चलन सामंती दौर में था, जब राजा की सत्ता उसके परिवार के लोग चलाते थे। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती थी लेकिन लोकतंत्र में यह गलत है। इससे पारदर्शिता और विश्वसनियता दोनों की हानि होती है। सरकार में जब परिवारवाद को महत्व दिया जाता है तो इससे इससे जनता की उम्मीदों और विश्वास को क्षति पहुंचती है। राजेंद्र कुमार, साहित्यकार
‘प्रजातंत्र में सभी को राजनीति में आने का अधिकार है मगर एक ही परिवार का वर्चस्व होगा तो वह राजशाही हो जाएगी और राजशाही लोकतंत्र के लिए घातक है। एक ही परिवार के इतने सदस्यों का राजनीति में होना लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।’ राधाकांत ओझा, अध्यक्ष हाईकोर्ट बार एसोसिएशन
‘जनप्रतिनिधि तो कोई योग्य व्यक्ति ही होना चाहिए। किसी भी परिवार में योग्य लोग हो सकते हैं लेकिन परिवार के आधार पर जनप्रतिनिधि का चुनाव किसी भी तरह से उचित नहीं है। सिर्फ परिवार का सदस्य होने के नाते बिना अनुभव किसी को आगे करना लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ है। परिवारवाद और लोकतंत्र दो अलग-अलग धुरी हैं। परिवारवाद राजतंत्र का हिस्सा है। यह लोकतंत्र के भविष्य के लिए ठीक नहीं है।’ प्रोफेसर जटाशंकर, इविवि, दर्शनशास्त्र
‘समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को सोचना होगा कि वे किसी पार्टी के लिए काम करे हैं या फिर किसी परिवार के लिए। क्या यही लोकतंत्र है। समाजवाद का अर्थ क्या होता है। उस पर भी पार्टी नेताओं को विचार करने की जरूरत है। रही बात मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू के राजनीति में आने की तो उनका स्वागत है।’ केशव प्रसाद मौर्य, भाजपा सांसद
‘जहां तक परिवारवाद का सवाल है तो लगभग सभी दलों में यह बात आम हो गई है। निर्णय परिवार के मुखिया और राजनीति में आने वाले उस परिवार के सदस्य को लेना है। साथ ही उचित और अनुचित पर फैसला जनता को करना है।’ प्रमोद तिवारी, राज्यसभा सदस्य एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता
‘कोई भी दल हो, उसमें परिवारवाद को बढ़ावा देना जनता और पार्टी कैडर के साथ विश्वासघात करने जैसा है। सत्ता में एक ही परिवार का दबदबा लोकतंत्र के लिए घातक है। मुलायम सिंह यादव के परिवार में तो बीडीसी से लेकर सत्ता के तमाम पदों पर परिवार के सदस्य ही काबिज हैं।’ पूजा पाल, बसपा विधायक
ये है मुलायम का सियासी कुनबा
मुलायम सिंह यादव देश के इकलौते नेता हैं जिनका बेटा मुख्यमंत्री है। मुलायम सिंह खुद तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं। वह छठी बार के सांसद हैं और इस समय आजमगढ़ से सांसद हैं। परिवार में कुल छह सांसद हैं। इनमें खुद मुलायम सिंह यादव और उनकी बहू एवं सीएम अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव शामिल हैं। मुलायम सिंह यादव के चचेरे भाई रामगोपाल यादव राज्यसभा सदस्य हैं जबकि परिवार के मुलायम, उनकी बहू सहित परिवार के पांचों लोग लोकसभा सदस्य हैं। सीएम अखिलेश यादव विधान परिषद सदस्य हैं। इसके अलावा सपा मुखिया के भाई शिवपाल यादव प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। शिवपाल के बेटे पीसीएफ के चेयरमैन और पत्नी जिला सहकारी बैंक इटावा की निदेशक हैं। परिवार के कुछ सदस्यों को पार्टी में महत्वपूर्ण ओहदा दिया गया है। साथ ही परिवार के तीन सदस्य जिला पंचायत अध्यक्ष, तीन सदस्य ब्लॉक प्रमुख, दो जिला पंचायत सदस्य और एक सदस्य स्थानीय प्राधिकारी क्षेत्र से एमएलसी हैं।