
चंद्रमा मन का स्वामी है। मनोबल बढ़ाने एवं पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए प्रत्येक अमावस्या को श्रद्धा व्यक्त करनी चाहिए। सूर्य की हजारों किरणों में सबसे प्रमुख किरण का नाम अमा है। इसी अमा तिथि में चंद्रमा निवास करते हैं, लिहाजा अमावस्या धर्म कार्य का अक्षय फल देने वाली बताई गई है।
श्राद्ध कर्म में इसका विशेष महत्व है। यजुर्वेद का एक मंत्र पितरों के लिए गाया जाता है। सार यह है कि पूज्य और आदरणीय व्यक्ति यथाशक्ति प्रदक्षिणा के योग्य हैं। प्रदक्षिणा साधारण एवं सरल उपाय है।
देव और पितर सत्ताएं अपनी परिक्रमा करने वालों को अपने तेज कण स्वभावतः ही देते हैं। उनका यह तेजोदान विघ्नों और संकटों का नाश करने में समर्थ है। पीपल विष्णु का स्वरूप है। गीता में भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूं।
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पीपल में देवी-देवता निवास करते हैं। पीपल में शनि का भी वास है और पीपल में ही पितरों का निवास है, इसलिए इसके सानिध्य में किया गया धर्म-कर्म अवश्यमेव फलीभूत होता है।
सर्वप्रथम पीपल पर दूध मिला जल अर्पित करें और भगवान विष्णु को नमस्कार करें। इसके बाद दाईं तरफ घी का और बाईं तरफ तेल का दीपक और धूप जलाएं। तेल के दीपक के नीचे उड़द और काले तिल रखें, घी के दीपक के नीचे चने की दाल और गुड़ रखें।
इसके बाद पीपल में ही गणपति का ध्यान करें और पापों से छुटकारे के लिए संकल्प करें। फिर पीपल की जड़ में ही सूक्ष्म गणपति पूजन करें और पीपल को विष्णुमय समझते हुए षोडशोपचार से पूजन, प्रार्थना और परिक्रमा प्रारंभ करें।
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परिक्रमा में एक घी की बत्ती जलाकर रखें, एक मिठाई, एक फल रखें और सूत (मौली) लपेटते हुए परिक्रमा करें। परिक्रमा करते हुए ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जाप कर पीपल से प्रार्थना करें। परिक्रमा के समय द्वादश अक्षर मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। अंत में संकल्प पूर्वक चावल, श्वेत वस्त्र, कपूर, चांदी, चीनी, दही, मोती या सफेद फूल दान करें।