जानें एक ऐसे फिल्म निर्माता के बारे में जिन्होंने अपने समय में सबसे कुशल व्यवसायिक फिल्मकार बनकर किया सबको हैरान

13 अप्रैल, 1898 को जन्में चन्दूलाल जयसिंह भाई शाह हिंदी फिल्मों के मशहूर निर्माता निर्देशक और पटकथा लेखक थे। भारतीय सिनेमा को शोहरत के शिखर तक ले जाने वाले लोगों में उन्हें भी गिना जाता है। अपने समय में उन्होंने सबसे कुशल व्यवसायिक फिल्मकार बनकर सबको हैरान कर डाला था। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि यदि उन्होंने हिंदी सिनेमा में एंट्री न की होती तो व्यावसायिक सिनेमा का बहुत बड़ा नुकसान होता।

जानें एक ऐसे फिल्म निर्माता के बारे में जिन्होंने अपने समय में सबसे कुशल व्यवसायिक फिल्मकार बनकर किया सबको हैरान

गुजरात के जामनगर में जन्में चन्दूलाल शाह ने अपनी शिक्षा कॉमर्स विषय के साथ स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। शिक्षा पूर्ण करने के बाद वह शेयर बाज़ार के कारोबार में लग गये। चन्दूलाल के बड़े भाई दयाराम शाह भी यद्पि शेयरों की खरीद फरोख्त का काम करते थे लेकिन उसके साथ ही वह फिल्मों के लिए कहानियां भी लिखा करते थे। बीच बीच में चन्दूलाल अपने बड़े भाई का हाथ बंटा दिया करते थे।

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चन्दूलाल शाह को सन 1925 में संयोग से एक फ़िल्म के निर्देशन का मौका मिला। दरअसल वह अपने बड़े भाई की लिखी कहानियों पर होने वाली शूटिंग को देखने स्टूडियो जाया करते थे। वहाँ वे निर्देशकों के साथ बड़े दोस्ताना स्वभाव से वक्त गुजारते थे। कभी-कभी अपने सुझाव भी देते, जो बेहद ताजगी भरे और पहली ही नजर में निर्देशकों को पसंद आने वाले होते थे। निर्देशक उनकी तारीफ़ करते, और कहते थे एक दिन वे ज़रूर बड़े निर्देशक बनेंगे।

यह वाक्य सच हुआ और जल्द ही वह दिन आ गया। ‘लक्ष्मी फ़िल्म कंपनी’ की ‘विमला’ नामक फ़िल्म की शूटिंग चल रही थी, अचानक फ़िल्म के निर्देशक मणिलाल जोशी बीमार पड़ गये। जोशी जी ने निर्माता को सुझाव दिया कि वह चन्दूलाल को निर्देशक के तौर पर रख लें। निर्माता ने ऐसा ही किया और चन्दूलाल शाह अपने से लगायी गई उम्मीदों पर पूरी तरह खरे उतरे। उन्होंने तय समय पर फ़िल्म पूरी कर दी। ‘लक्ष्मी फ़िल्म कंपनी’ को उनका काम बहुत पसंद आया और उसी वर्ष कंपनी ने उन्हें दो और फ़िल्में निर्देशन के लिए दे दीं।

अपनी इन दोनों फ़िल्मों के पूरा होते ही चन्दूलाल शाह फिर से वापस शेयर बाज़ार की दुनिया में लौट आये, किंतु उनकी किस्मत में तो फ़िल्म निर्देशक बनना ही लिखा था। दूसरी बार भी फ़िल्म निर्देशन में उनका आना संयोग से हुआ, लेकिन इस बार वे हमेशा के लिए इस क्षेत्र में आ गये। हुआ यह कि होमी मास्टर फ़िल्म ‘शीरी फ़रहाद’ का निर्देशन कर रहे थे।

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एक दिन जब वह कलाकारों को कुछ दृश्य समझा रहे थे, तभी फिसल कर गिर पड़े और उनकी टांग टूट गयी। उन्होंने दर्द में कराहते हुए चन्दूलाल शाह को याद किया और चन्दूलाल हाजिर हो गये। उन्होंने फ़िल्म का निर्देशन करना स्वीकार कर लिया, लेकिन उसकी पटकथा बदल दी। फ़िल्म हिट हुई और चन्दूलाल शाह भी फ़िल्मी क्षेत्र में स्थापित हो गये।

चन्दूलाल शाह बड़े माहिर निर्देशक सिद्ध हुए थे। उनके पास अपनी हर योजना का मजबूत आधार होता था। यही वजह है कि उनसे अभिनेता हमेशा संतुष्ट रहते थे, जिसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने उस जमाने के बड़े-बड़े अभिनेताओं, अभिनेत्रियों से छोटी-छोटी भूमिकाएँ तक करा लीं। 1926 में बनी फ़िल्म ‘टाइपिस्ट गर्ल’ में नायिका सुलोचना थीं। अभिनेत्री गौहर ने उस फ़िल्म में एक छोटी-सी भूमिका निभाई थी। जबकि इसके पहले गौहर ने नायिका के अलावा कभी दूसरी कोई भूमिका ही नहीं निभाई थी।

1929 में चन्दूलाल शाह और गौहर ने मिलकर अपने मित्र बिट्ठलदास ठाकुर के साथ ‘रणजीत फ़िल्म कंपनी’ की स्थापना की। दोनों की यह व्यावसायिक साझेदारी 35 सालों तक लगातार चलती रही। चन्दूलाल शाह बहुत नियमबद्ध तरीके से फ़िल्में बनाते थे। उनकी और गौहर की साझेदारी भी बहुत शानदार थी। उन दोनों ने बड़ी कुशलता से अपने व्यापार को आगे बढ़ाया। उनके स्टूडियो में उन दिनों 600 लोग काम करते थे, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कारोबार कितने बड़े पैमाने का रूप ले चुका था।

चन्दूलाल शाह मूलत: दो किस्म की फ़िल्में बनाते थे- पहला सामाजिक फ़िल्में, जो एक तरह से भावुकता से भरपूर होती थीं, और दूसरी स्टंट फ़िल्में, जिनमें मारधाड़ अधिक होती थी। स्टंट फ़िल्मों का बजट सामाजिक फ़िल्मों से ज़्यादा होता था, क्योंकि उन दिनों उनमें बड़ी संख्या में घोड़े, राजकुमार और राजकुमारियों की पोशाकें आदि की आवश्यकता पड़ती थी।

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चन्दूलाल शाह की व्यावसायिक कुशलता का अंदाज इससे भी हो जाता है कि ध्वनि के आगमन के बावजूद मूक युग का उनका साम्राज्य ढहा नहीं, बल्कि पूरी पहचान के साथ खड़ा रहा। 1931-1946 के बीच चन्दूलाल शाह ने 100 से भी ज़्यादा फ़िल्में बनायीं। भारत में किसी भी एक स्टूडियो द्वारा इतनी अधिक फ़िल्में नहीं बनायी गयी थीं। 25 नवंबर, 1975 को 77 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

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