उन्नाव में नमाजियों ने क दूसरे को गले मिलकर दी ईद उल अजहा की मुबारकबाद
REPORT-Prasoon Shukla/Unnao
आज उन्नाव में भी ईद उल अजहा कि नामज के बाद नमाजियों ने गले मिल कर एक दूसरे को ईद उल अजहा की मुबारकबाद दी। उन्नाव की जामा मस्जिद में नमाजियों ने नमाज अता कर अमन चैन की दुआ की।
हज़ारों की संख्या में नमाजियों ने एक दूसरे को गले लगा कर बकरीद की मुबारकबाद दी। वहीं सुरक्षा व्यवस्था की बात की जाए तो जिला प्रशासन ने सभी मस्जिदों के आस पास सुरक्षा के कड़े इंतेजाम किये। इस दौरान मौलवी फैज हसन ने बकरीद के त्योहार मनाए जाने के पीछे की पूरी परंपरा को बताया।
कुर्बानी का त्योहार बकरीद भारत में 12 अगस्त को यानी कि आज मानाया जा रहा है। इस्लाम धर्म में इस त्योहार का बहुत महत्व है। इस त्योहार को ईद-उल-अजहा के नाम से भी जाता है। यह त्योहार हर साल इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार जिलहज्जा महीने के 10वें दिन मनाया जाता है।
इसे मुसलमानों के सबसे पवित्र त्योहारों में से एक माना जाता है। बकरीद के दिन जानवरों की कुर्बानी की परंपरा है। मुसलमान इस दिन अल सुबह की नमाज पढ़ते हैं नमाज अदा करने के बाद फिर खुदा की इबादत में जानवरों की कुर्बानी देते हैं।
बकरीद के मौके पर कुर्बानी की देने की परंपरा पैगंबर हजरत इब्राहिम से शुरू हुई। कहते हैं कि एक दिन उनके ख्वाब में आकर अल्लाह ने उनसे उनकी सबसे पसंदीदा चीज की कुर्बानी मांगी। हजरत इब्राहिम ऐसे में अपने बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हो गए।
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इसके बाद इब्राहिम ने बेटे की कुर्बानी देने के समय अपने आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि उन्हें दुख न हो। कुर्बानी के बाद जैसे ही उन्होंने अपनी पट्टी खोली, अपने बेटे को उन्होंने सही-सलामत सामने खड़ा पाया।
दरअसल, अल्लाह ने चमत्कार किया था कुर्बानी का समय जैसे ही आया तो अचानक किसी फरिश्ते ने छुरी के नीचे स्माइल को हटाकर दुंबे (भेड़) को आगे कर दिया। ऐसे में दुंबे की कुर्बानी हो गई और बेटे की जान बच गई।
मान्यता है कि यही से इस्लाम में बकरीद के मौके पर कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई। बकरे की कुर्बानी के बाद उसके गोस्त को तीन भागों में बाटने की परंपरा है गोस्त का एक भाग गरीबों को दिया जाता है। दूसरा भाग रिश्तेदारों में बांटा जाना चाहिए जबकि तीसरे भाग को अपने परिवार के लिए रखा जाता है।