अनोखे बाबा… यहां मुरादों के लिए श्रद्धालु चढ़ाते हैं सिगरेट का प्रसाद

सिगरेट बाबाआस्था एक ऐसा भाव है जो किसी को भी भगवान का दर्जा दे सकता है। आस्‍था को किसी तर्क की जरूरत नहीं है। आस्‍थावान लोग तो सिर्फ भगवान और देवतुल्‍य में भरोसा रखते हैं। विज्ञान कितना ही आस्‍था को तर्क की कसौटियों पर कसे लेकिन भक्‍त कष्‍ट सहकर भी अपनी आस्‍था नहीं छोड़ता है। भारत देवों का देश है। यहां ईश्‍वर रूप राम, कृष्‍ण, गणेश आदि की तो पूजा होती ही है लेकिन उन भक्‍तों की भी पूजा होती है जिन्‍होंने ईश्‍वर भक्ति के फलस्‍वरूप अमर आत्‍मा का दर्जा हासिल कर लिया। यहां अनेक ईश्‍वर भक्‍तों के मंदिर और मजारे हैं जहां आस्‍था का मेला लगता है। इन मंदिरों और मजारों की अपनी कहानियां भी होती हैं मसलन गरीबों के मसीहा का मंदिर आदि आदि। लेकिन सिगरेट बाबा के नाम का देव स्‍थल जहां प्रसाद के रूप में कोई मीठा पदार्थ नहीं बल्कि सिगरेट चढ़ती हो। सुनने में जरा अटपटा लगता है लेकिन यह सच है ।

दरअसल उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ मे आस्था का यह बेजोड़ संगम देखने को मिलता है। यहां के मुसाबाग स्थित कैप्टेन वेल्स उर्फ़ कप्तान साहब उर्फ़ सिगरेट बाबा की मज़ार इसका जीता जागता उदाहरण है।

कैप्टेन वेल्स, एक ब्रिटिश क्रिश्चियन सैनिक थे, जिनकी कब्र हिन्दु और मुस्लिम भक्तों की आस्था का केंन्द्र है। भक्तों ने इन्हें एक सन्त दर्जा दिया है। यहां पर हर गुरुवार को बडी संख्या में श्रदालु आते हैं।

सिगरेट बाबा पर चढ़ती है महंगी सिगरेट

कहते हैं कैप्टन वेल्स को सिगरेट पीना बहुत पसंद था, इसलिए यहां आने वाले लोग इस कब्र पर प्रसाद के रूप में सिगरेट चढ़ाते हैं। उनकी मान्यता है सिगरेट चढ़ाने से बाबा प्रसन्न होगे और उनकी मुरादें पूरी करेंगे। इसलिए लोग इसे सिगरेट बाबा कब्र भी कहते हैं।

मूसाबाग का निर्माण अवध के नवाब आसिफुद्दौला ने 1775 में अपनी आरामगाह के रूप मे करवाया था।एक किंवदंती के अनुसार नवाब साहब ने यहां पर एक चूहे (मूषक) को मारा था। इसलिए इसका नाम मुसाबाग पड़ा। सन् 1857 के स्वंत्रता संग्राम मे मुसाबाग कि इमारतें अंग्रेज सैनिकों और भारतीय स्वंत्रता सेनानियों के बीच हुई गोलाबारी मे तहस-नहस हो गई थी। आज मूसाबाग़ के केवल खंडहर शेष हैं।

कैप्टन वेल्स ब्रिटिश सेना में कैप्टेन थे। 21 मार्च 1858 को मूसाबाग में अंग्रेज़ सैनिकों और अवध के स्वंत्रता सेनानियों के बीच युद्ध हुआ। अंग्रेज़ों का नेतृत्व कैप्टन वेल्स और अवध सेनानियों का नेतृत्व मौलवी अहमद उल्लाह शाह कर रहे थे।

वैसे तो यह लड़ाई ब्रिटिश सेना ने जीती थी पर इस लड़ाई मे कैप्टेन वेल्स मारे गये। बाद में उनके दोस्त कैप्टन एल. बी. जोन्स ने यहां पर उनकी कब्र बनवाई। कब्र पर अभी भी एक पत्थर लगा हुआ है जिस पर 21 मार्च 1858 की तारीख और कैप्टन वेल्स का नाम है।

किसी को भी नहीं मालूम कैप्टेन वेल्स को कब एक संतसिगरेट बाबा का दर्जा दे दिया गया और कब से यहां पर पूजा पाठ शुरु हुआ। लेकिन लोगों की यहां असीम आस्था है। वो यहां पर सिगरेट चढ़ाकर मुरादें मांगते हैं और जब मुराद पूरी हो जाती है तो वापस आकर महंगी शराब और सिगरेट चढ़ाते हैं।

LIVE TV