यहां प्रकृति के गर्भ में छुपे हैं अध्यात्मर के रहस्य

मध्‍य प्रदेश में यूं तो अनेक मनोहारी प्राकृतिक जगहें हैं लेकिन  कुछ जगहें अध्यात्म और धर्म की इस नगरी में एक खास आयाम जोड़ते हैं। यह ऐसी जगह भी है, जो दो बड़ी नदियों नर्मदा और सोन का उद्गम स्थल भी है। इनके उद्गम को देखेंगे, तो लगेगा ही नहीं कि छोटे-छोटे कुंडों से निकलकर काफी दूर तक बहुत पतली धारा में बहने वाली ये नदियां देश की संस्कृति और धार्मिकता और विकास में खास जगह रखती हैं। यहां अमरकंटक जो न सिर्फ प्रकृति का वरदान है बल्कि यहां अनेक आधात्मिक रहस्‍य छुपे हैं

अमरकंटक

पहाड़ों पर बसा अमरकंटक ऊंचे पहाड़ों और घने जंगलों के बीच बसी सुंदर-सी जगह है। यह खुद काफी ऊंचाई पर है। प्रकृति की तमाम संपदाओं से युक्त। यहां खदानें भी हैं और जलप्रपात भी। जल के अदृश्य स्रोत भी और सुंदर आश्रम व मंदिर भी। अब यहां नए-नए मंदिर और बन गए हैं। इस नगरी के मंदिरों के आसपास टहलिए या फिर नर्मदा और सोन के करीब जाइए, अलग महसूस होता है। पहाड़ों के अदृश्य स्रोतों से नर्मदा और सोन का निकलना किसी अचरज से कम नहीं लगता है। वैसे, यहां एक और नदी भी निकलती है, उसका नाम जोहिला है। कुछ लोग जब यहां आते हैं और इन नदियों के उद्गम में जल की हल्की- फुल्की कुलबुलाहट के बीच इन्हें देखते हैं तो एकबारगी सोच नहीं पाते कि ये वो नदियां हैं, जो हजारों किमी. का सफर तय करती हैं।

सोनमुदा नर्मदाकुंड से 1.5 किमी. की दूरी पर मैकाल पहाड़ियों के किनारे पर है। सोन नदी 100 फीट ऊंची पहाड़ी से एक झरने के रूप में यहां से गिरती है।

यहां का धार्मिक महत्व

पहले अमरकंटक शहडोल जिले में था। अब यह अनूपपुर जिले में है। समुद्र तट से कोई 1065 मीटर की ऊंचाई पर। विंध्य व सतपुड़ा की पर्वत शृंखला और मैकाल पर्वत शृंखला के बीचों बीच बसा हुई। यहां पर्वत, घने जंगल,

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मंदिर, गुफाएं जल प्रपात हैं। यहां आते ही हवा में ताजगी और शुद्धता का अहसास होने लगता है। यहां के जंगलों के बारे में कहा जाता है कि ये जड़ी-बूटियों का खजाना हैं। यहां का शांत वातावरण आमतौर पर सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देता है। यहां के अपने आंचलिक लोकगीत भी हैं। कालिदास भी यहां आए और यहां के कायल हो गए।

उनके मेघदूत के बादल इसी नगरी के ऊपर से गुजरते हैं। धार्मिक पर्यटकों को नर्मदाकुंड मंदिर, श्रीज्वालेश्वर महादेव, सर्वोदय जैन मंदिर, सोनमुदा, कबीर चबूतरा कपिलाधारा, कलचुरी काल के मंदिर पर आना अच्छा लगेगा। नर्मदा कुंड के पास भी कई मंदिर हैं। सबका अपना महत्व है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान

आदिनाथ ने भी यहां आकर तप किया था। कंबीरपंथियों को भी यह जगह खासी प्रिय है, क्योंकि वे इसे कबीर से जोड़कर भी देखते हैं, यहां एक कबीर चबूतरा भी है। कबीर चबूतरे के ठीक नीचे एक जल कुंड है जिसके बारे में कहा जाता है कि सुबह की किरणों के साथ ही यहां के जलकुंड का पानी दूध की तरह सफेद हो जाता है।

कैसे पहुंचे

यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन शहडोल 80 किलोमीटर दूर है और लगातार बसें और टैक्सियां चलती रहती हैं, तो पेंड्रा रोड रेलवे स्टेशन 45 किमी. दूर है। जबलपुर हवाई अड्डा सबसे करीब एयरपोर्ट है, जहां से अमरकंटक की दूरी करीब 200 किलोमीटर है। यहां जाने का एक फायदा यह भी है कि आप बांधवगढ़ भी घूम सकते हैं।

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अमरकंटक में बरसता है प्रकृति का वरदान

अमरकंटक की यात्रा बगैर कपिलधारा देखे अधूरी रहेगी। यहां 100 फीट की ऊंचाई से पानी गिरता है। धर्मग्रंथों में कहा गया है कि कपिल मुनि यहां रहते थे। कपिल मुनि ने सांख्य दर्शन की रचना इसी स्थान पर की थी। कपिलधारा के निकट की कपिलेश्वर मंदिर भी बना है। इस जगह के आसपास कई गुफाएं हैं, जहां अब भी साधु-संत ध्यानमग्न देखे जा सकते हैं। यहां धुनी पानी यानी गर्म पानी का झरना भी है। इसके बारे मे कहा जाता है कि यह झरना औषधीय गुणों से भरपूर है। ऐसा ही एक और झरना है दूधधारा, जो काफी लोकप्रिय है। ऊंचाई से गिरते इस झरने का जल दूध के समान प्रतीत होता है, इसीलिए इसे दूधधारा या दुग्धधारा के नाम से जाना जाता है।

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