निर्जला एकादशी व्रत से मिलते हैं चारों पुरुषार्थ

निर्जला एकादशी व्रतसनातन धर्म में भगवान श्री हरि अर्थात विष्‍णु को सर्वाधिक प्रिय है एकादशी का व्रत। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। लेकिन जब कभी अधिकमास या मलमास होता है, तब इनकी संख्या 26 हो जाती है। इसमें सबसे कठिन ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है, जिसे निर्जला एकादशी कहते हैं। प्रचंड गर्मी में आने वाले निर्जला एकादशी व्रत में पानी पीना मना है। जननाशौच और मरणाशौच में भी एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए।

निर्जला एकादशी व्रत आज

कथा है कि एक बार महर्षि व्यास से भीम ने कहा,  ‘भगवन! युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुंती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते हैं। मुझसे भी व्रत रखने को कहते हैं, परंतु मैं तो बिना खाए रह नहीं सकता। मेरे उदर में तो वृक नामक अग्नि है। इसलिए चौबीस एकादशियों में निराहार रहना मेरे बस का नहीं। मुझे तो कोई ऐसा व्रत बताइए, जिसे करने में मुझे असुविधा न हो। स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो।’

तब व्यास जी ने कहा, ‘कुंतीनंदन, धर्म की यही विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, वरन सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की सहज और लचीली व्यवस्था भी करता है। ज्येष्ठ मास में सूर्य के वृष या मिथुन राशि पर रहने पर शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एकादशी का तुम व्रत करो। इसे करने से तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल भी प्राप्त होगा और तुम इस लोक में सुख, यश प्राप्त कर मोक्ष-लाभ प्राप्त करोगे। केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो। इसके अलावा जल पीने से व्रत भंग हो जाता है। एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्यादय तक जल का त्याग करना चाहिए।’

भीम ने बडे़ साहस के साथ निर्जला एकादशी का व्रत किया। द्वादशी को स्नान आदि कर भगवान केशव की पूजा कर व्रत सम्पन्न किया। इसी कारण इसे भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है। निर्जल रह कर जरूरतमंद आदमी को हर हाल में शुद्ध पानी से भरा घड़ा यह मंत्र पढ़ कर दान करना चाहिए-
देवदेव हृषिकेश संसारार्णवतारक।
उदकुंभप्रदानेन नय मां परमां गतिम्॥

अर्थात संसार सागर से तारने वाले देवदेव हृषिकेश! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइए।
निर्जला एकादशी व्रत में भगवान विष्णु के मंत्र- ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय:’ का जाप दिन-रात करते रहना चाहिए। गोदान, वस्त्र दान, छत्र, जूता, फल आदि का दान करना चाहिए।

निर्जला एकादशी व्रत के दिन सुबह उठकर दांतों को साफ करने के लिए ब्रश-पेस्ट की जगह दातून का इस्तेमाल करना चाहिए। नित्य कर्मों से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की मन से पूजा-अर्चना करें। भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करें। चूंकि, इस दिन तुलसी तोड़ना सही नहीं माना जाता, इसलिए आप एक दिन पहले ही सूर्य डूबने से पहले 108 दल तोड़कर रख लें और एकादशी के दिन यह भगवान पर चढ़ाएं।

मन में किसी के लिए भी क्लेश न आने दें और अपने मन को पवित्र रखने की भरसक कोशिश करें। रात्रि में भगवान की पूजा-अर्चना के बाद ही सोएं। सुबह उठकर सर्वप्रथम नित्य क्रिया से निवृत्त होकर भगवान की पूजा-अर्चना करें। इसके बाद शर्बत से भरे बर्तन, मिश्री और खरबूजा, आम, पंखा, मिष्ठान्न आदि चीजों का दान करना चाहिए।

दान के बाद मुंह में सर्वप्रथम तुलसी का दल लेकर फिर पानी पीएं और इसके बाद भोजन करना चाहिए। कहते हैं विधि-विधान के अनुसार जो यह व्रत करता है उसे साल भर के एकादशी जितना पुण्य मिल जाता है। यह व्रत अक्षय पुण्य देने वाला और सभी इच्छाओं की पूर्ति करता है यह।

निर्जला एकादशी व्रत के दिन मांसाहार वालों के लिए इस दिन से एक दिन पहले और एक दिन बाद ऐसे भोजन का सेवन साफ वर्जित है। यहां तक कि मान्यता के अनुसार लोग एक दिन पहले चावल तक खाना छोड़ देते हैं, ताकि शरीर में इस अनाज के दाने को कोई अंश न रह जाए।

निर्जला एकादशी व्रत करने के अतिरिक्त जप, तप गलता स्नान, गंगा स्नान आदि कार्य करना शुभ रहता है।  इस व्रत में सबसे पहले श्री विष्णुजी की पूजा कि जाती है तथा व्रत कथा को सुना जाता है।

पूजा-पाठ के पश्चात सामर्थ अनुसार ब्राह्माणों को दक्षिणा, मिष्ठान आदि देना चाहिए। संभव हो सके तो व्रत की रात्रि में जागरण करना चाहिए।

निर्जला एकादशी व्रत का महत्व 

निर्जला एकादशी व्रत का व्रत करना सभी तीर्थों में स्नान करने के समान है। निर्जला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्ति पाता है।

जो मनुष्य़ निर्जला एकादशी का व्रत करता है उनको मृत्यु के समय मानसिक और शारीरिक कष्ट नही होता है। इस व्रत को करने के बाद जो व्यक्ति स्नान, तप और दान करता है, उसे करोड़ों गायों को दान करने के समान फल प्राप्त होता है।

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