वो जिंदा दिल औरत जो करती है ट्रक रिपेयर का काम ! कौन है वो ?…
मध्य प्रदेश में एक जिला है मंदसौर. वहां एक गांव है नयाखेड़ा. मंदसौर टाउन से 8 किलोमीटर दूर. वहां रहती हैं मैना. उम्र 52 के आसपास है. मंदसौर बाईपास हाईवे पर मैना की एक दुकान है. अब जो कोई भी इस हाईवे से गुजरता है, उसकी नजर मैना की दुकान पर अटक जाती है.
क्यों? क्योंकि मैना की दुकान कोई चॉकलेट-टॉफी की दुकान नहीं है, बल्कि टायर रिपेयरिंग की शॉप है. मैना हाईवे के किनारे बाइक, कार, जीप, जेसीबी मशीन और ट्रकों के टायरों को रिपेयर करती हैं.
वो भारी-भरकम टायरों को ट्रकों से निकालती हैं. उन्हें उठाती हैं. उन्हें ठीक करती हैं, वापस उन्हें ट्रकों में जोड़ती हैं. सुबह, दोपहर, शाम, रात… मैना के लिए सब एक बराबर है. चिलचिलाती गर्मी में जहां आप और हम एसी में बैठे रहते हैं, वो दोपहर भर धूप में काम करती हैx. मैना वो काम करती हैं, जो सोसायटी की नजरों में ‘मर्दों का काम’ है.
अब सवाल आता है कि मैना आखिर टायर रिपेयरिंग के रोजगार में पहुंची कैसे? तो जनाब, इसका जवाब है, तीन बच्चों को पालने की जिम्मेदारी. आपको बताते हैं मैना की कहानी-
मैना के पिता टायर रिपेयरिंग का काम किया करते थे. इसलिए जब वो छोटी थीं, तब पिता का काम देखा करती थीं, और थोड़ा हाथ भी बंटाया करती थीं. फिर बड़ी हुईं. शादी हो गई. शादी के बाद दो बेटियां हुईं. तीसरी बेटी पेट में थी. तभी मैना के पति की मौत हो गई. उसके एक साल पहले ही, मैना के पिता की भी मौत हो गई थी.
पति के जाने के बाद मैना अपने तीनों बच्चों के साथ मायके आ गईं. मां के साथ रहने लगीं. छोटे भाई-बहन की भी देखरेख करतीं. फिर टायर रिपेयरिंग का काम शुरू कर दिया. शुरुआत में साइकिल और बाइक्स के टायर रिपेयर करतीं.
धीरे-धीरे काम बढ़ने लगा. तब तक मायके में भाई-बहन और मां के साथ थोड़ी खटपट भी होने लगी. मैना ने फिर मां का घर भी छोड़ दिया. अपनी तीनों बेटियों को लेकर अलग रहने लगीं.
ज़मीन विवाद को लेकर लड़की और उसके परिवार को पेड़ से बांधकर की पिटाई !
हाईवे के किनारे एक छोटी सी झोपड़ी बनाई. वहीं पर अपना काम भी शुरू किया. कड़ी मेहनत के बाद धीरे से मैना का काम जम गया. उनके पास बाइक के टायर रिपेयर करने के अलावा, कारों और ट्रकों के टायर रिपेयरिंग का काम भी आने लगा.
मैना अपना काम करती गईं. अपनी बेटियों को भी पढ़ाया. उन्हें पढ़ाने के लिए हॉस्टल में रखा. अब मैना की बेटियां बड़ी हो गईं हैं. मैना चाहती है कि उनकी बेटियां और ज्यादा पढ़ें, और कुछ करें.
टायर रिपेयरिंग का काम करते हुए मैना को 20-25 साल हो गए हैं. वो बताती हैं कि मर्द उनका काम देखकर जलते हैं.
‘टायर बनाती हूं. सर्विस सेंटर भी नया खोला है. शुरुआत में मुझे ट्रकों के टायर रिपेयर करने में बहुत दिक्कत आई, लेकिन फिर भी किया. औरत कमजोर होती है क्या? क्या औरत खुद कमाकर नहीं खा सकती क्या? जब आदमी खुद कमाकर खा सकता है, तो औरत क्यों नहीं?
दो हाथ आदमी के भी हैं, दो हाथ अपने भी हैं. अनपढ़ हो चाहे पढ़ा-लिखा हो, खुद कमाकर खाना आना चाहिए. हौसला होना चाहिए. मेहनती होगा तो दूसरों का कभी नहीं खाएगा… अपना-अपना कमाओ खाओ. अगर बच्चे समझदार होंगे, तो वो यो समझ ही जाएंगे, कि मेरी मां ने इतनी कठिनाई देखी है, इतना दुख देखा है, तो वो समझेंगे.’
ऐसा नहीं है कि मैना को काम करने में कोई दिक्कत नहीं आई. बहुत दिक्कतें आईं. लोगों ने कई सवाल किए. कहा कि एक औरत होकर आदमियों वाला काम? लेकिन मैना ने तो ठान लिया था. अड़ी रहीं. रुकी नहीं. वो कहती हैं, ‘मेरा काम देखकर आसपास रहने वाले मर्द जलते हैं.’
मैना हाईवे के पास ही झोपड़ी में ही रहती थीं. अपने बच्चों के साथ. कुछ साल पहले प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उन्हें घर मिला. उसी झोपड़ी के पास. मैना के बच्चे अब बड़े हो गए हैं. लेकिन फिर भी वो काम करती हैं. उनका कहना है कि इंसान को खुद कमाकर खाना चाहिए. मैना की पीठ में भी बहुत दर्द रहता है. लेकिन वो रुकती नहीं हैं.