बाजार में फ्री कैश फ्लो देखकर लगाएं बाजी
कोई कंपनी अच्छी है या नहीं, इसे परखने के लिए मार्केट एनालिस्ट मुनाफे में बढ़ोतरी की रफ्तार देखते हैं। नेट प्रॉफिट का संबंध अर्निंग पर शेयर (ईपीएस) और प्राइस टु अर्निंग (पीई) रेशियो से भी होता है, जिनसे किसी शेयर के सस्ता या महंगा होने का पता लगाया जाता है।
हालांकि नेट प्रॉफिट से यह पता नहीं चलता कि किसी कंपनी के पास कितना कैश है। हो सकता है कि कोई कंपनी उधार लेकर बिजनस बढ़ा रही हो और वह ग्राहकों के भुगतान करने से पहले इनकम स्टेटमेंट में आमदनी और नेट प्रॉफिट दिखा रही हो।
इसलिए इनकम स्टेटमेंट में नेट प्रॉफिट दिखाने के बावजूद कंपनी को कैश की कमी हो सकती है, जिससे उसके वर्किंग कैपिटल मैनेजमेंट पर असर पड़ सकता है। इसलिए अगर आप सिर्फ नेट प्रॉफिट के भरोसे रहे तो किसी कंपनी की सॉल्वेंसी और फाइनेंशियल स्ट्रेंथ की वास्तविक तस्वीर पता नहीं चलेगी।
फ्री कैश फ्लो (एफसीएफ) से पता चलता है कि किसी कंपनी के पास कितना सरप्लस कैश है। इससे नेट प्रॉफिट के बरक्स कंपनी की प्रॉफिटेबिलिटी की सही तस्वीर सामने आती है। यह वह पैसा होता है, जिसका इस्तेमाल कंपनी कर्ज घटाने, डिविडेंड देने और ग्रोथ के लिए कर सकती है।
कंपनी के ऑपरेटिंग कैश फ्लो में से कैपिटल एक्सपेंडिचर की रकम घटाने के बाद आपको एफसीएफ मिलता है। कैपिटल एक्सपेंडिचर वह रकम होती है, जिसका इस्तेमाल कोई कंपनी प्लांट, मशीनरी और दूसरे इक्विपमेंट में करती है। कहने का मतलब यह है कि कंपनी इससे फिक्स्ड एसेट्स तैयार करती है।
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नेट प्रॉफिट की तरह एक तय अवधि में एफसीएफ को देखकर किसी कंपनी की वित्तीय सेहत के बारे में राय बनानी चाहिए। एफसीएफ में बढ़ोतरी अच्छा संकेत होता है। इससे पता चलता है कि कंपनी सरप्लस कैश जेनरेट कर रही है, जिसे वह बिजनेस में लगा सकती है।
नेगेटिव एफसीएफ से पता चलता है कि कंपनी बिजनेस को सपोर्ट करने के लिए कैश जेनरेट नहीं कर पा रही है, लेकिन यह हमेशा बुरा नहीं होता। कई बार कंपनियां बड़ा निवेश करती हैं, जिसके चलते कुछ समय तक उनका एफसीएफ नेगेटिव हो सकता है।
हालांकि, इससे लॉन्ग टर्म में वह अच्छा रिटर्न जेनरेट कर सकती है। अगर एफसीएफ लंबे समय तक नेगेटिव है तो उसकी बारीक पड़ताल करनी चाहिए क्योंकि इससे कंपनी के वजूद पर सवालिया निशान लग जाता है।
हमने 500 करोड़ से अधिक मार्केट कैप वाली 900 से अधिक कंपनियों की पड़ताल की और 2013-14 के बाद अगले पांच साल में उनके प्रति शेयर एफसीएफ का पता लगाया। इसके बाद जिन कंपनियों का प्रति शेयर एफसीएफ पिछले चार साल की तुलना में वित्त वर्ष 2017-18 में सबसे अधिक था, उन्हें अलग किया गया।
उसके बाद जिन कंपनियों का 2017-18 में प्रति शेयर एफसीएफ पिछले चार साल के एवरेज प्रति शेयर एफसीएफ से अधिक था, उन्हें शॉर्टलिस्ट किया गया। इनमें से हमने उन कंपनियों पर विचार किया, जिनके प्रति शेयर एफसीएफ में पिछले पांच साल में लगातार बढ़ोतरी हुई थी। फाइनल फिल्टर में हमने सिर्फ उन कंपनियों को अलग किया, जिनका पिछले पांच साल में प्रति शेयर एफसीएफ पॉजिटिव रहा था।
सिर्फ 11 कंपनियां इस पर खरी उतरीं। इन कंपनियों ने पिछले एक, तीन और पांच साल में माइनस 3.05 पर्सेंट, 94.5 पर्सेंट और 664.6 पर्सेंट का एवरेज प्वाइंट टु प्वाइंट रिटर्न दिया है।
इनकी तुलना में इस बीच बीएसई 500 इंडेक्स का रिटर्न माइनस 5.4 पर्सेंट, 40.5 पर्सेंट और 87.2 पर्सेंट रहा है। 8 जनवरी 2019 तक के लिए यह रिटर्न कैलकुलेट किया गया। जिन कंपनियों के प्रति शेयर एफसीएफ में इस बीच बढ़ोतरी हुई, उन्होंने सभी टाइमफ्रेम में इंडेक्स से अधिक रिटर्न दिया।
आइए इन 11 में से चार कंपनियों पर नजर डालते हैं, जिनके प्रति शेयर एफसीएफ में बढ़ोतरी हो रही है और मार्केट एनालिस्टों से जिन्हें फेवरेबल रेटिंग मिली है। ब्लूमबर्ग के कंसेंसस एस्टिमेट के मुताबिक, अगले एक साल में इन कंपनियों से बढ़िया रिटर्न मिल सकता है।